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________________ भगवई २९९ श.६ : उ.८: सू.१४३-१५० १४३. अत्थि णं भंते ! इमीसे रयणप्पभाए अस्तिभदन्त! अस्या: रत्नप्रभायाः पृथिव्याः १४३. भन्ते ! इस रत्नप्रभा पृथ्वी के नीचे क्या चन्द्रमा, पुढवीए अहे चंदिम-सूरिय-गहगण-नक्ख- अध: चन्द्र-सूर्य-ग्रहगण-नक्षत्र-तारारूपा:? सूर्य, ग्रहगण, नक्षत्र और तारारूप हैं? त-तारारूवा? णो इणढे सम8।। नायमर्थ: समर्थः। यह अर्थ संगत नहीं है। १४४. अत्थि णं भंते ! इमीसे रयणप्पभाए अस्तिभदन्त ! अस्या: रत्नप्रभायाः पृथिव्याः १४४. भन्ते! इस रत्नप्रभा पृथ्वी के नीचे क्या चन्द्रमा पुढवीए अहे चंदाभा ति वा? सूराभा तिवा? अध: चन्द्राभा इति वा? सूराभा इति वा? की आभा है? सूर्य की आभा है? णो इणढे समढे। नायमर्थः समर्थः। यह अर्थ संगत नहीं है। एवं दोच्चाए पुढवीए भाणियव्वं, एवं तच्चाए एवं द्वितीयायाः पृथिव्याः भणितव्यम् , एवं इसी प्रकार दूसरी पृथ्वी के विषय में वक्तव्य है। इसी वि भाणियन्वं, नवरं-देवो वि पकरेति, तृतीयायाः अपि भणितव्यम्, नवरम्- प्रकार तीसरी पृथ्वी के विषय में भी वक्तव्य है। केवल असुरो वि पकरेति, नो नागो पकरेति। देवोऽपि प्रकरोति, असुरोऽपि प्रकरोति, नो इतना विशेष है—देव भी करता है, असुर भी करता चउत्थीए वि एवं, नवरं-देवो एक्को नाग: प्रकरोति। चतुर्थ्या: अपि एवं, नवर- है, नाग नहीं करता। चौथी पृथ्वी के विषय में भी पकरेति, नो असुरो, नो नागो। एवं हेछिल्लासु म्-देव: एक: प्रकरोति, नो असुरः, नो इसी प्रकार वक्तव्यता। केवल इतना विशेष हैसव्वासु देवो पकरेति॥ नागः। एवम् अधस्तनासु सर्वासु देवः अकेला देव करता है, असुर नहीं करता, नाग भी प्रकरोति। नहीं करता। इसी प्रकार नीचे की सभी पृथ्वियों में अकेला देव करता है। १४५. अत्थि णं भंते ! सोहम्मीसाणाणं कप्पाणं अहे गेहा इ वा? गेहावणा इवा? णो इणढे समहे॥ अस्तिभदन्त! सौधर्मेशानयो: कल्पयो: अधः १४५. भन्ते ! सौधर्म और ईशान कल्प के नीचे क्या गेहा: इति वा? गेहापणा: इति वा? घर हैं? घर की आपण हैं? नायमर्थः समर्थः। यह अर्थ संगत नहीं है। १४६. अत्थि णं भंते ! ओराला बलाहया? अस्ति भदन्त ! उदारा: बलाहका:? हंता अत्थि। हन्त अस्ति। देवो पकरेति, असुरो विपकरेति, नो नाओ। देव: प्रकरोति, असुरोऽपि प्रकरोति, नो नाग:। १४६. भन्ते ! वहां बड़े मेघ हैं? हाँ, हैं। उसे देव करता है, असुर भी करता है, नाग नहीं करता। इसी प्रकार गर्जन शब्द की वक्तव्यता। एवं थणियसद्दे वि॥ एवं स्तनितशब्दः अपि। १४७. अत्थि णं भंते ! बादरे पुढवीकाए? बादरे अगणिकाए? णो इणढे समढे, नन्नत्थ विग्गहगतिसमावनएणं॥ अस्ति भदन्त ! बादरः पृथिवीकाय:? बादरः १४७. भन्ते ! वहाँ क्या बादर पृथ्वीकाय है? बादर अग्निकाय:? अग्निकाय है? नायमर्थः समर्थः, नान्यत्र विग्रहगतिसमा- यह अर्थ संगत नहीं है, विग्रह गति करते हुए जीवों पन्नकात्। को छोड़ कर। १४८. अत्थिणं भंते ! चंदिम-सूरिय-गहगण-नक्खत्त-तारारूवा? णो इणहे समठे। अस्ति भदन्त ! चन्द्र-सूर्य-ग्रहगण-नक्षत्र- १४८. भंते ! वहाँ चन्द्रमा, सूर्य, ग्रहगण, नक्षत्र और -तारारूपा:? तारारूप हैं? नायमर्थः समर्थः। यह अर्थ संगत नहीं है। १४९. अत्थि णं भंते ! गामा इ वा? जाव सण्णिवेसा इवा? णो इणढे समहे॥ अस्ति भदन्त! ग्रामाः इति वा? यावत् सन्नि- १४९. भन्ते! वहाँ क्या गांव हैं? यावत् सन्निवेश हैं? वेशा: इति वा? नायमर्थः समर्थः। यह अर्थ संगत नहीं है। १५०. अत्थि णं भंते ! चंदाभा ति वा? सूराभा अस्ति भदन्त! चन्द्राभा इति वा? सूराभा इति १५०. भंते ! क्या वहाँ चन्द्रमा की आभा है? सूर्य की Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003594
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02 Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2000
Total Pages596
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size20 MB
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