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भगवई
श.३ : उ.१ : सू.४,५
हंसगर्भ-पुष्पराग, वैडूर्य का एक प्रकार।"
पुलक यह बीच में काला होता है । कौटिल्य अर्थशास्त्र में मणियां की अठारह जातियां बताई गई हैं। उनमें एक पुलक भी है।
सौगंधिक माणिक्य । कौटिल्य अर्थशास्त्र में माणिक्य की पांच जातियां बतलाई गई हैं। उनमें यह प्रथम जाति का है।
ज्योतिरस-सफेद और लाल रंग से मिश्रित एक मणि। अंजन-समोरक-रत्नविशेष।
अंजनपुलक-नीले और काले रंग से मिश्रित एक मणि। अंक-रत्न की एक जाति। स्फटिक-पारदर्शी मणि। रिष्ट-रलविशेष।
आकीर्ण स्पष्ट-देखें भ. १/४७-५० का भाष्य विषय-वैक्रिय करने की शक्ति का सामर्थ्य क्षेत्र। सम्प्राप्ति-उक्त अर्थ का संपादन।
वाली, महासुखी महान् युति वाल के सामानिक देव
५. जइ णं भंते! चमरे असुरिंदे असुरराया दि भदन्त ! चमरः असुरेन्द्रः असुरराजः ५. भन्ते ! यदि असुरेन्द्र असुरराज चमर इतनी महान् एमहिड्ढीए जाव एवइयं च णं पभू वि- इयन्महर्द्धिकः यावद् एतावच्च प्रभुः विकर्तुम्? ऋद्धि वाला है यावत् इतनी विक्रिया करने में समर्थ है, कुवित्तए, चमरस्य णं भंते ! असुरिंदस्स चमरस्य भदन्त! असुरेन्द्रस्य असुरराजस्य तो भन्ते ! असुरेन्द्र असुराज चमर के सामानिक देव असुररण्णो सामाणिया देवा केमहिढीया? सामानिकाः देवाः कियन्महर्द्धिकाः यावत् कियच् कितनी महान् ऋद्धि वाले यावत् कितनी विक्रिया करने जाव केवइयं च णं पभू विकुवित्तए? च प्रभुः विकर्तुम्?
में समर्थ हैं ? गोयमा ! चमरस्य असुरिंदस्स असुररण्णो गौतम! चमरस्य असुरेन्द्रस्य असुरराजस्य
गौतम ! असुरेन्द्र असुरराज चमर के सामानिक देव सामाणिया देवा महिढीया महज्जुतीया सामानिकाः देवाः महर्द्धिकाः महाद्युतिकाः महा- महान् ऋद्धि वाले, महान् द्युति वाले, महाबली, महामहाबला महायसा महासोक्खा महाणुभागा। बलाः महायशसः महासौख्याः महानुभागाः। ते यशस्वी, महासुखी और महान् सामर्थ्य वाले हैं। वे तेणं तत्थ साणं-साणं भवणाणं, साणं-साणं तत्र स्वेषां-स्वेषां भवनानां स्वेषां-स्वेषां वहां पर अपने-अपने भवनों का, अपने अपने सामाणियाणं, साणं-साणं अग्गमहिसीणं जाव सामानिकानां स्वेषां-स्वेषाम् अग्रमहिषीणां सामानिक देवों का और अपनी-अपनी पटरानियों का दिव्वाइं भोगभोगाई भुंजमाणा विहरंति। एम- यावद् दिव्यान् भोग्यभोगान् भुजानाः आधिपत्य करते हुए यावत् दिव्य भोगार्ह भोग भोगते हिड्ढीया जाव एवइयं च णं पभू विकुवित्तए। विहरन्ति। इयन्महर्द्धिकाः यावद् एतावच् च हुए रहते हैं। वे इतनी महान ऋद्धि वाले हैं यावत् से जहानामए-जुवतिं जुवाणे हत्थेणं हत्थे प्रभुः विकर्तुम्। तद् यथानाम-युवतिं युवा इतनी विक्रिया करने में समर्थ है। जैसे कोई युवक गेण्हेज्जा, चक्कस्स वा नाभी अरगाउत्ता हस्तेन हस्ते गृहीयात्, चक्रस्य वा नाभिः युवती का प्रगाढ़ता से हाथ पकड़ता हैअथवा गाड़ी के सिया, एवामेव गोयमा! चमरस्स असुरिंदस्स अरकायुक्ता स्याद्, एवमेव गौतम! चमरस्य चक्के की नाभि जैसे अरों से युक्त होती है उसी प्रकार असुररण्णो एगमेगे सामाणियदेवे वेउब्वियस- असुरेन्द्रस्य असुरराजस्य एकः एकः सामानि- गौतम! असुरेन्द्र असुरराज चमर का प्रत्येक सामानिक मुग्घाएणं समोहण्णइ जाव दोच्चं पिवेउब्बिय- कदेवः वैक्रियसमुद्घातेन समवहन्यते यावद् देव वैक्रिय समुद्घात से समवहत होता है यावत् दूसरी समुग्घाएणं समोहण्इ।
द्वितीयमपि वैक्रिसमुद्घातेन समवहन्यते। बार फिर वैक्रिय समुद्घात से समवहत होता है। पभू णं गोयमा ! चमरस्स असुरिंदस्स असुर- प्रभुः गौतम! चमरस्य असुरेन्द्रस्य असुर- गौतम ! असुरेन्द्र असुरराज चमर का प्रत्येक सामानिक रण्णो एगमेगे सामाणियदेवे केवलकप्पं जंबुद्दीवं राजस्य एकः एकः सामानिकदेवः केवलकल्पं देव सम्पूर्ण जम्बूद्वीप द्वीप को अनेक असुरकुमार देवों दीवं बहूहिं असुरकुमारेहिं देवेहिं देवीहि जम्बूद्वीपं द्वीपं बहुभिः असुरकुमारैः देवैः और देवियों से आकीर्ण, व्यतिकीर्ण।, उपस्तृत, संस्तृत, य आइण्णं वितिकिण्वत्थडं संथडं फुडं देवीभिश्च आकीर्ण व्यतिकीर्णम् उपस्तृतं स्पृष्ट और अवगाढावगाढ करने में समर्थ हैं। अवगाढावगाढं करेत्तए।
संस्तृतं स्पृष्टम् अवगाढावगाढं कर्तुम्। अदुत्तरं च णं गोयमा! पभू चमरस्स अ- 'अदुत्तरं' च गौतम! प्रभुः चमरस्य असु- और दूसरी बात, गौतम ! असुरेन्द्र असुरराज चमर सुरिंदस्स असुररण्णो एगमेगे सामाणियदेवे रेन्द्रस्य असुरराजस्य एकः एकः सामा- का प्रत्येक सामानिक देव तिर्यक् लोक के असंख्य तिरियमसंखेज्जे दीव-समुद्दे बहूहिं असुर- निकदेवः तिर्यग् असंख्येयान् द्वीप-समुद्रान् द्वीप-समुद्रों को अनेक असुरकुमार देवों और देवियों कुमारेहिं देवेहिं देवीहि य आइण्णे वितिकिण्णे बहुभिः असुरकुमारैः देवैः देवीभिश्च आकीर्णान् से आकीर्ण, व्यतिकीर्ण, उपस्तृत, संस्तृत, स्पृष्ट और उवत्थडे संथडे फुडे अवगाढावगाढे करेत्तए। व्यतिकीर्णान् उपस्तृतान् संस्तृतान् स्पृष्टान् अवगाढावगाढ करने में समर्थ है।
अवगाढावगाढान् कर्तुम्। एस णं गोयमा ! चमरस्स असुरिंदस्स असुर- एष गौतम! चमरस्य असुरेन्द्रस्य असुर- गौतम ! असुरेन्द्र असुरराज चमर के प्रत्येक सामानिक रण्णो एगमेगस्स सामाणियदेवस्स अयमेया- राजस्य एकैकस्य सामानिकदेवस्य अयम् देव की विक्रिया शक्ति का यह इतना विषय केवल रूवे विसए विसयमेत्ते बुइए, नो चेव णं एतद्रूपः विषयः विषयमात्रः उक्तः, नो चैव विषय की दृष्टि से प्रतिपादित है। उन देवों ने क्रियात्मक संपत्तीए विकुव्विंसु वा विकुव्वंति वा विकु- सम्प्राप्त्या व्यकार्युः वा विकुर्वन्ति वा वि- रूप में न तो कभी ऐसी विक्रिया की, न करते हैं और
३. वही, २/११/२६।
१. उत्तर. ३६/७१-७७ का टिप्पण द्रष्टव्य है। २. कौटिल्य अर्थशास्त्र, २/११/२६।
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