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________________ सत्तमो उद्देसो : सातवां उद्देशक मूल संस्कृत छाया हिन्दी अनुवाद धन्नाणं जोणि-ठिइ-पदं धान्यानां योनि-स्थिति-पदम् धान्यों की योनि और स्थिति का पद १२९. अह भंते ! सालीणं, वीहीणं, गो- अथभदन्त! शालीनां, व्रीहीणां, गोधूमानां, १२९. 'भन्ते! शालि, व्रीहि, गेहूं, जौ तथा यवयवधूमाणं, जवाणं, जवजवाणं-एएसि णं यवानां, यवयवानाम् एतेषां धान्यानां इनधान्यों को कोठे, पल्य, मचान और माल में डाल धन्नाणं कोट्ठाउत्ताणं पल्लाउत्ताणं मंचा- कोष्ठागुप्तानां पल्यागुप्तानां मञ्चागुप्तानां कर उनके द्वार-देश को लीप देने, चारों ओर से लीप उत्ताणं मालाउत्ताणं ओलिताणं लित्ताणं मालागुप्तानाम् अवलिप्तानां लिप्तानां देने, ढक्कन से ढक देने, मिट्टी से मुद्रित कर देने पिहियाणं मुद्दियाणं लंछियाणं केवतियं । पिहितानां मुद्रितानां लाञ्छितानां कियन्तं । और रेखाओं से लांछित कर देने पर उनकी योनि कालं जोणी संचिट्ठइ? . कालं योनि: सन्तिष्ठते? (उत्पादक-शक्ति) कितने काल तक रहती है? गोयमा! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं गौतम ! जघन्येन अन्तर्मुहूर्त्तम्, उत्कर्षेण तिण्णि संवच्छराई। तेण परं जोणी पमिलायइ, त्रीणि संवत्सराणि। तत: परं योनि: प्रम्ला- तेण परं जोणी पविद्धंसइ, तेण परं बीए अबीए यति, ततः परं योनिः प्रविध्वंसते, तत: परं भवति, तेण परं जोणीवोच्छेदे पण्णत्ते सम- बीजम् अबीजं भवति, तत: परं योनि- णाउसो! व्युच्छेदः प्रज्ञप्त: आयुष्मन् श्रमण! गौतम ! जघन्यत: अन्तर्मुहूर्त, उत्कर्षत: तीन वर्ष। उसके बाद योनि म्लान हो जाती है, प्रविध्वस्त हो जाती है, बीज अबीज हो जाता है, योनि का विच्छेद हो जाता है, आयुष्मन् श्रमण! १३०. अह भंते ! कल-मसूर-तिल-मुग्ण- अथ भदन्त! कलाय-मसूर-तिल-मुद्ग- -मास-निप्फाव-कुलत्थ-आलिसंदग-सतीण- -मास-निष्पाव-कुलत्थ-आलिसं दग-पलिमंथगमाईण एएसिणं धन्नाणं कोट्ठा- -सतीण-परिमन्थकादीनाम्-एतेषां धा- उत्ताणं पल्लाउत्ताणं मंचाउत्ताणं माला- न्यानां कोष्ठागुप्तानां पल्यागुप्तानां मञ्चाउत्ताणं ओलित्ताणं लित्ताणं पिहियाणं मुद्दि- गुप्तानां मालागुप्तानाम् अवलिप्तानां याणं लंछियाणं केवतियं कालं जोणी संचि- लिप्तानां पिहितानां मुद्रितानां लाञ्छितानां कियन्तं कालं योनिः सन्तिष्ठते? गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं गौतम ! जघन्येन अन्तर्मुहूर्तम्, उत्कर्षेण पंच संवच्छराई। तेण परं जोणी पमिलायइ, पञ्च संवत्सराणिा तत: परं योनिः प्रम्ला- तेण परं जोणी पविद्धंसइ, तेण परं बीए अबीए यति, ततः परं योनिः प्रविध्वंसते, ततः परं भवति, तेण पर जोणीवोच्छेदे पण्णत्ते सम- बीजम् अबीजं भवति, ततः परं योनि- णाउसो! व्युच्छेदः प्रज्ञप्त: आयुष्मन् श्रमण! १३०. मटर, मसूर, तिल, मूंग, उड़द, निष्पाव (सेम), कुलथी, चवला, मटर का एक भेद और काला चना आदि-इन धान्यों को कोठे, पल्य, मचान और माल में डाल कर उनके द्वार-देश को लीप देने, चारों ओर से लीप देने, ढक्कन से ढ़क देने, मिट्टी से मुद्रित कर देने और रेखाओं से लांछित कर देने पर उनकी योनि कितने काल तक रहती है? गौतम ! जघन्यत: अन्तर्मुहूर्त, उत्कृष्टत: पाँच वर्ष। उसके बाद योनि म्लान हो जाती है, प्रविध्वस्त हो जाती है, बीज अबीज हो जाता है, योनि का विच्छेद हो जाता है, आयुष्मन् श्रमण! ठत १३१. अह भंते ! अयसि-कुसुंभग-कोद्दव- अथ भदन्त! अतसि-कुसुम्भक-कोद्रव- १३१. अलसी, कुसुम्भ, कोदव, कंगु, चीना धान्य, -कंगु-वरग-रालग-कोदूसग-सण-सरि- -क्वङ्गु-वरक-रालक-कोदूषक- सण- दाल, कोदव की एक जाति, सन, सरसों, मूलक सव-मूलाबीयमाईणं-एएसि णं धन्नाणं -सर्षप-मूलकबीजादीनाम् एतेषां धा- बीज-इन धान्यों को कोठे, पल्य, मचान और माल कोट्ठाउत्ताणं पल्लाउत्ताणं मंचाउत्ताणं माला- न्यानां कोष्ठागुप्तानां, पल्यागुप्तानां में डाल कर उनके द्वार-देश को लीप देने, चारों ओर Jain Education Interational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003594
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02 Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2000
Total Pages596
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size20 MB
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