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________________ श. ६ : उ. ६: सू. १२०-१२७ जहा पुरत्थिमे णं मंदरस्स पव्वयस्स आलावओ भणिओ, एवं दाहिणे णं, पच्चत्थिमे णं, उत्तरे णं, उड्ढे, अहे ॥ जहा पुढविकाइया तहा एगिंदियाणं सव्वेसिं एक्के वकस्स छ आलावगा भाणिबच्चा । १२६. जीवे नं भंते! मारणंतियसमुग्याएणं समोहम्मद, समोहणिता जे भविए असंखे जे बेइंदियावाससयसहस्सेसु अण्णयरंसि बेदियावासंसि बेदियत्ताए उववज्जिए, से भंते! तत्यगए चेव आहारेज्ज वा? परि णामेज्ज वा ? सरीरं वा बंधेज्जा ? हारइया, एवं जाव अणुत्तरोववाइया । १२७. जीवे णं भंते ! मारणंतियसमुग्घाएणं समोहए, समोहणित्ता जे भविए पंचसु अणुत्तरेसु महतिमहालएसु महाविमाणेसु अण्णयरंसि अणुत्तरविमाणंसि अणुत्तरोववाइयदेवताए उनवज्जित्तर से णं भंते! तत्थगए चेव आहारेज्ज वा ? परिणामेज्ज वा? सरीरं वा बंधेज्जा ? तं चैव जान आहारेज्ज वा परिणामेज्ज वा, सरीरं वा बंधेजा। २८२ यथा पौरस्त्ये मन्दरस्य पर्वतस्य आलापकः भणितः, एवं दक्षिणे, पश्चिमे, उत्तरे, ऊ, अधः । Jain Education Intemational यथा पृथ्वीकायिका तथा एकेन्द्रियाणां सर्वेषाम् एकैकस्य षड् आलापका : भणि तव्या: । जीव भदन्त ! मारणान्तिकसमुद्घातेन समवहन्ति, समवहत्य यः भव्यः असंख्येयेषु द्वीन्द्रियावासशतसहस्रेषु अन्यतरस्मिन् द्वीन्द्रियावासे द्वीन्द्रियतया उपपम् सभदन्त तत्रगतश्चैव आहरेद् वा? परिणमवेद् वा? शरीरं वा वनीवाद? यथा नैरयिका:, एवं यावद् अनुत्तरौपपातिकाः। जीवः भदन्त ! मारणान्तिकसमुद्घातेन समवहतः, समवहत्य यः भव्यः पंचसु अनुत्तरेषु महतिमहत्सु महाविमानेषु अन्यतरस्मिन् अनुत्तरविमाने अनुत्तरौपपातिक देवतया उपपत्तुम्, सभदन्त ! तत्रगतश्चैव आहछेद वा? परिणमयेद् वा ? शरीरं वा बध्नीयात् ? तच्चैव यावद् आहरेद् वा, परिणमयेद् वा, शरीरं वा वस्नीयाता १. द्रष्टव्य भ. २/७४ का भाष्य २. Life after Death, pp. 51-53 ( Out of Body, Ch. III) १. सूत्र १२०-१२७ सात पृथ्वियों और अनेक आवासों का विस्तृत निरूपण शतक १, सूत्र २१२-२१५ में हो चुका है। प्रस्तुत प्रकरण में इनका पुनः उल्लेख मारणान्तिक समुद्घात के सन्दर्भ में किया गया है। १ मारणान्तिक समुद्घात करने वाला जीव अपने भावी जन्म स्थान तक पहुंचकर लौट आता है—यह परामनोविज्ञान का एक महत्त्वपूर्ण रहस्य है। इस रहस्य की चर्चा ईसा की बीसवीं शताब्दी में वैज्ञानिक स्तर पर बहुत हुई है। ''Life after Death" पुस्तक में वर्णित Dr. George Ritchie भाष्य भगवई जिस प्रकार मेरु पर्वत के पूर्व में इतने दूर जाने से सम्बन्धित) आलापक कहा गया है, इसी प्रकार दक्षिण, पश्चिम, उत्तर, ऊर्ध्व और अधो दिशा में वक्तव्य है। For Private & Personal Use Only जैसे पृथ्वीकायिक जीवों के आलापक कहे गए हैं, वैसे ही शेष सब एकेन्द्रिय जीवों में से प्रत्येक के छह-छह आलापक वक्तव्य हैं। ! १२६, भन्ते जीव मारणान्तिक समुद्घात से समवहत होता है। समवहत हो कर जो भव्य असंख्येय लाख द्वीन्द्रिय आवासों में से किसी एक द्वीन्द्रियावास में द्वीन्द्रिय के रूप में उपपन्न होता है, भन्ते ! वह वहां द्वीन्द्रियावास में जाते ही पुद्गलों का आहरण करता है ? उनका परिणमन करता है? उनसे शरीर का निर्माण करता है? नैरयिक जीवों की भांति वक्तव्यता। इस प्रकार यावत् अनुत्तरौपपातिक की वक्तव्यता । १२७. भन्ते ! जीव मारणान्तिक समुद्घात से समवहत होता है। समवहत होकर जो भव्य पांच अनुत्तर महति महान महाविमानों में से किसी एक अनुत्तर विमान में अनुत्तरौपपातिक देव के रूप में उपपन्न होता है, भन्ते ! वह वहां अनुत्तरौपपातिक विमान में जाते ही पुद्गलों का आहरण करता है? उनका परिणमन करता है? उनसे शरीर का निर्माण करता है? यह पूर्ववत् ज्ञातव्य है यावत् वह पुद्गलों का आहरण करता है, परिणमन करता है, उनसे शरीर का निर्माण करता है। २ की घटना इस सन्दर्भ में मननीय है। गौतम ने भगवान महावीर से पूछा- भंते! मारणान्तिक समुद्घात करने वाला जीव अपने भावी जन्मस्थान तक पहुंच कर क्या आहार ग्रहण करता है? उसका परिणमन करता है? नए शरीर का निर्माण करता है? इन तीनों प्रश्नों के उत्तर में भगवान ने कहा मारणान्तिक समुद्घात का प्रयोग जीवन में दो बार होता है। कुछ जीव मारणान्तिक समुद्घात का प्रयोग कर अपने उत्पत्ति-स्थान में जन्म ले लेते हैं। वे जन्म के पहले समय में आहार ग्रहण करते हैं, उसका परिणमन करते हैं और शरीर निर्माण का क्रम www.jainelibrary.org
SR No.003594
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02 Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2000
Total Pages596
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size20 MB
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