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भगवई
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श.६ : उ.५ : सू.७०-११९
वहां तमस्काय का आकार प्रारम्भ में एक प्रदेश-श्रेणी-रूपरेखात्मक है विवर का आकार पूर्ण वृत्त का होता है। और ऊपर उठ कर वह मुर्गे के पिंजरे की भांति आकार वाला अर्थात् देखें-कृष्णराजी व तमस्काय के चित्र-परिशिष्ट -६ चतुरस्रात्मक हो जाता है। वृत्ति के अनुसार प्रदत्त स्थापना से यह अनुमान
तमस्काय की जानकारी के लिए द्रष्टव्य-भगवई, १४। २५ से लगाया जा सकता है।
२७। वैज्ञानिक मान्यता के अनुसार स्थिर होने के पश्चात् कृष्ण
११९. सेवं भंते ! सेवं भंते! ति॥
तदेवं भदन्त ! तदेवं भदन्त ! इति।
११९. भन्ते! वह ऐसा ही है, भन्ते! वह ऐसा ही है।
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