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भगवई
२७७
श.६: उ.५:सू.७०-११८
संग्रहणी गाथा
संगहणी गाहा पढम-जुगलम्मि सत्तओ, सयाणि बीयम्मि चउद्दससहस्सा। तइए सत्तसहस्सा , नव चेव सयाणि सेसेसु ॥१॥
प्रथम-युगले सप्त, शतानि द्वितीये चतुर्दशसहस्राणि तृतीये सप्तसहस्राणि, नव चैव शतानि शेषेषु ॥१॥
संग्रहणी गाथा प्रथम युगल में सात सौ, दूसरे युगल में चौदह हजार, तीसरे युगल में सात हजार और शेष में नौ सौ देवों का परिवार है।
११५. लोगंतिगविमाणा णं भंते! किंपइट्ठिया लोकान्तिकविमानानि भदन्त ! किंप्रतिष्ठि- ११५. भन्ते ! लोकान्तिक-विमान किस पर प्रतिष्ठित पण्णत्ता?
तानि प्रज्ञप्तानि? गोयमा! वाउपइट्ठिया पण्णत्ता। एवं नेयव्वं गौतम ! वायुप्रतिष्ठानि प्रज्ञप्तानि। एवं गौतम ! वे वायु पर प्रतिष्ठित हैं। इस प्रकार सभी विमाणाण पइट्ठाणं, बाहुल्लुच्चत्तमेव सं- ज्ञातव्यं विमानां प्रतिष्ठानं, बाहुल्योच्च- विमानों का प्रतिष्ठान वायु पर ज्ञातव्य है। इन विमानों ठाणं, बंभलोयवत्तव्वया नेयव्वा जाव- त्वमेव संस्थानं, ब्रह्मलोकवक्तव्यता ज्ञात- की मोटाई,ऊँचाई और संस्थान ब्रह्मलोक के विमानों व्या यावत्
की वक्तव्यता के अनुसार ज्ञातव्य है, यावत्
११६. लोयंतियविमाणेसु ण भंते ! सव्वे लोकान्तिकविमानेषु भदन्त ! सर्वे प्राणाः ११६. भन्ते ! लोकान्तिक विमानों में सब प्राण, भूत, पाणा भया जीवा सत्ता पुढविकाइयत्ताए, भूता: जीवा: सत्त्वा: पृथिवीकायिकतया जीव और सत्त्व पृथ्वीकायिक, अप्कायिक, तेजस्आउकाइयत्ताए,तेउकाइयत्ताए, वाउकाइय- ___ अप्कायिकतया तेजस्कायिकतया, वायु- कायिक, वायुकायिक, वनस्पतिकायिक, देव और ताए, वणप्फइकाइयत्ताए, देवत्ताए, देवि- कायिकतया, वनस्पतिकायिकतया, देव- देवी के रूप में उपपन्नपूर्व हैं? ताए उववण्णपुव्वा?
तया, देवीतया उपपन्नपूर्वा:? हंता गोयमा! असई अदुवा अणंतक्खुत्तो, हन्त गौतम! असकृद् अथवा अनन्तकृत्व:, हाँ, गौतम ! अनेक बार अथवा अनन्त बार । पर वे नो चे णं देवित्ताए। नो चैव देवीतया।
देवी के रूप में उपपन्न नहीं होते।
११७. लोगंतियदेवाणं भंते ! केवइयं कालं लोकान्तिकदेवानां भदन्त ! कियन्तं कालं ११७. भन्ते ! लोकान्तिक देवों की स्थिति कितने काल ठिती पण्णता? स्थिति: प्रज्ञप्ता?
की प्रज्ञप्त है? गोयमा! अट्ठ सागरोवमाई ठिती पण्णत्ता।। गौतम ! अष्ट सागरोपमानि स्थिति: प्रज्ञप्ता। गौतम ! उनकी स्थिति आठ सागरोपम की प्रज्ञप्त है।
११८. लोगंतियविमाणेहिंतोणं भंते ! केवतियं लोकान्तिकविमानेभ्य: भदन्त ! कियत्या ११८. भन्ते ! लोकान्तिक विमानों से लोकान्त कितने अबाहाए लोगते पण्णत्ते? अबाधया लोकान्त: प्रज्ञप्तः?
अन्तर (दूरी) पर प्रज्ञप्त है? गोयमा! असंखेज्जाई जोयणसहस्साई अ- गौतम! असंख्येयानि योजनसहस्राणि अ- गौतम ! लोकान्त लोकान्तिक विमानों से असंख्येय बाहाए लोगते पण्णत्ते॥ बाधया लोकान्त: प्रज्ञप्त:।
हजार योजन के अन्तर पर प्रज्ञप्त है।
भाष्य
१. सूत्र ७०-११८ तमस्काय और कृष्णराजि की तुलना
तमस्काय और कृष्णराजि में कुछ समानता भी है और कुछ विषमता भी है। समानताएं
१. दोनों में वर्ण काला, कृष्ण अवभास वाला, गम्भीर, रोमाञ्च उत्पन्न करने वाला, भयंकर, उत्त्रासक और परम कृष्ण है। (सू. ८५,१०२)
इसका तात्पर्य हुआ कि ये दोनों ऐसे पुद्गल-स्कन्धों से निर्मित
हैं, जिनमें से प्रकाश की एक भी किरण बाहर नहीं जा सकती। इस तथ्य की वैज्ञानिक व्याख्या यह है कि उन पुद्गलों का घनत्व इतना अधिक है कि उनमें से प्रकाश-अणु जैसे सूक्ष्म पुद्गल भी बाहर नहीं आ सकते। इस माने में विज्ञान के 'कृष्ण विवर' के साथ इनकी समानता है।
२. परिमाण की समानता—विष्कम्भ की अपेक्षा से--तमस्काय दो प्रकार का होता है—संख्यात हजार योजन वाला तथा असंख्यात हजार योजन वाला, कृष्णराजि केवल संख्यात हजार योजन वाली होती है।
३. परिधि की अपेक्षा से दोनों असंख्यात हजार योजन वाले
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