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________________ श.६ : उ.५: सू.१०७-११४ २७६ भगवई १०७. कहिणं भंते ! अच्चि-विमाणे पण्णत्ते? कुत्र भदन्त ! अर्चि-विमानं प्रज्ञप्तम्? गोयमा ! उत्तर-पुरत्थिमे थे। गौतम ! उत्तर-पौरस्त्ये। १०७. भन्ते ! अर्चि-विमान कहाँ प्रज्ञप्त हैं? गौतम ! उत्तरपूर्व (ईशान कोण) में। १०८. कहि णं भंते ! अच्चिमाली विमाणे कुत्र भदन्त ! अर्चिमालि विमानं प्रज्ञप्तम्? १०८. भन्ते ! अर्चिमाली विमान कहाँ प्रज्ञप्त हैं? पण्णते? गोयमा ! पुरथिमे णं। एवं परिवाडीए नेयव्वं गौतम ! पौरस्त्ये। एवं परिपाट्या ज्ञातव्यम् गौतम ! पूर्व दिशा में हैं। इस प्रकार परिपाटी से जावयावत् ज्ञातव्य है। यावत् १०९. कहि णं भंते ! रितु विमाणे पण्णत्ते? गोयमा ! बहुमज्झदेसभाए। कुत्र भदन्त ! रिष्टं विमानं प्रज्ञप्तम्? गौतम ! बहुमध्यदेशभागे। १०९. रिष्ट विमान कहाँ प्रज्ञप्त हैं? गौतम ! कृष्णराजियों के प्राय: मध्यदेश भाग में। ११०. एएसु णं अट्ठसु लोगंतियविमाणेसु एतेषु च अष्टसु लोकान्तिकविमानेषु अष्ट- ११०. इन आठों लोकान्तिक विमानों में आठ प्रकार अट्ठविहा लोगंतिया देवा परिवसंति, तं विधा: लोकान्तिका: देवा: परिवसन्ति, तद् के लोकान्तिक देव निवास करते हैं, जैसेजहा यथा संगहणी गाहा सारस्सयमाइच्चा, वण्ही वरुणा य गद्दतोया या तुसिया अव्वावाहा, अग्गिच्चा चेव रिट्ठा य॥१॥ संगहणी गाथा सारस्वतादित्या:, वह्रयो वरुणा: च गर्दतोया: चा तुषिता: अव्याबाधा:, आग्नेया: चैव रिष्टा: च ॥१|| संग्रहणी गाथा सारस्वत, आदित्य,वह्नि, वरुण, गर्दतोय, तुषित, अव्याबाध और आग्नेया रिष्टविमान में रिष्ट नामक देवा १११. भन्ते ! सारस्वत देव कहाँ निवास करते हैं? १११. कहि णं भंते ! सारस्सया देवा परि- कुत्र भदन्त ! सारस्वता: देवा: परिवसन्ति? वसंति? गोयमा! अच्चिम्मि विमाणे परिवति। गौतम ! अर्चिषि विमाणे परिवसन्ति। गौतम ! अर्चि विमान में निवास करते हैं। ११२. कहिणं भंते ! आइच्चा देवा परिवसंति? कुत्र भदन्त ! आदित्या: देवा: परिवसन्ति? ११२. भन्ते ! आदित्य देव कहाँ निवास करते हैं? गोयमा ! अच्चिमालिम्मि विमाणे। एवं गौतम ! अर्चिमालौ विमाने। एवं ज्ञातव्यं गौतम! अर्चिमाली विमान में निवास करते हैं। इस नेयव्वं जहाणुपुव्वीए जावयथानुपूर्व्या यावत् प्रकार क्रमश: ज्ञातव्य है यावत् ११३. कहि णं भंते ! रिट्ठा देवा परिवसंति? गोयमा ! रिट्ठम्मि विमाणे। कुत्र भदन्त ! रिष्टा: देवा: परिवसन्ति? गौतम ! रिष्टे विमाने। ११३. भन्ते ! रिष्ट देव कहाँ निवास करते हैं? गौतम ! रिष्ट विमान में। ११४. सारस्सयमाइच्चाणं भंते ! देवाणं कति सारस्वतादित्यानां भदन्त ! देवानां कति ११४. भन्ते ! सारस्वत और आदित्य देवों के कितने देवा, कति देवसया पण्णत्ता? देवाः, कति देवशतानि प्रज्ञप्तानि? देव हैं? और कितने सौ देवों का परिवार है? गोयमा ! सत्त देवा, सत्त देवसया परिवारो गौतम! सप्त देवाः, सप्त देवशतानि परिवार: गौतम ! सात देव और सात सौ देवों का परिवार पण्णत्तो। प्रज्ञप्तः। प्रज्ञप्त है। वण्ही-वरुणाणं देवाणं चउद्दस देवा, चउद्दस वह्नि-वरुणानां देवानां चतुर्दश देवाः, चतुर्दश वह्नि और वरुण देवों के चौदह देव और चौदह हजार देवसहस्सा परिवारो पण्णत्तो। देवसहस्राणि परिवार: प्रज्ञप्तः। देवसहस्राणि पर देवों का परिवार प्रज्ञप्त है। गद्दतोय-तुसियाणं देवाणं सत्त देवा, सत्त गर्दतोय-तुषितानां देवानां सप्त देवाः, सप्त गर्दतोय और तुषित देवों के सात देव और सात हजार देवसहस्सा परिवारो पण्णत्तो। देवसहस्राणि परिवार: प्रज्ञप्तः। देवों का परिवार प्रज्ञप्त है। अवसेसाणं नव देवा, नव देवसया परिवारो अवशेषाणां नव देवाः, नव देवशतानि परि- अवशेष देवों के नौ देव और नौ सौ देवों का परिवार पण्णत्तो। वार: प्रज्ञप्तः। प्रज्ञप्त है। Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003594
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02 Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2000
Total Pages596
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size20 MB
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