SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 297
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भगवई ति वा? सूराभाति वा? जो तिड़े समहे ॥ १०२. कण्हरातीओ पं भंते! केरिसियाओ कृष्णराजयः भदन्त ! कीदृश्यः वर्णेन प्रज्ञवण्णेणं पण्णत्ताओ? प्ता: ? गोयमा ! कालाओ कालोभासाओ गंभीराओ लोमहरिसजणणाओ भीमाओ उत्तासणाओ परमकिण्हाओ वण्णेणं पण्णत्ताओ। देवे वि अत्गतिए जेणं तप्पढमयाए पासित्ताणं सुभाएज्जा, अहेणं अभिसमागच्छेज्जा तओ पच्छा सीहं सीहं तुरियं तुरियं खिप्पामेव बीतीवजा ॥ गौतम ! कालाः कालावभासाः गम्भीराः लोमहर्षजनन्य भीमाः उत्त्रासनाः परमकृष्णाः कर्णेन प्रज्ञप्ताः। देवोऽपि अस्त्येककः यः तत्प्रथमतया दृष्ट्वा क्षुभ्येद् अधः अभिसमागच्छेत् ततः पश्चात् शीघ्रं शीघ्रं त्वरितं त्वरितं क्षिप्रमेव व्यतिव्रजेत् । - - १०४. कण्हरातीओ णं भंते! किं पुढवीपरिणामाओ ? आउपरिणामाओ ? जीव परिणामाओ? पोग्गलपरिणामाओ? गोयमा ! पुढविपरिणामाओ, नो आउपरिणामाओ, जीवपरिणामाओ वि, पोग्गलपरिणामाओ वि॥ १०५. कहराती ते सव्ये पाणा भूया जीवा सत्ता पुढवीकाइयत्ताए जाव तस काइयत्ताए उबवण्णपुत्रा? हंता गोयमा ! असई अदुवा अणंतक्खुत्तो; नो चेव णं बादरआउकाइयत्ताए, बादरअगणिकाइयत्ताए, बादरवणप्फइकाइयत्ताए वा ।। २७५ लोगंतियदेव पदं १०६. एएसि णं अट्ठण्हं कण्हराईणं असु ओवासंतरेसु अट्ट लोगंतिगविमाणा पण्णत्ता, तं जहा - १. अच्ची २. अच्चिमाली ३. वइरोयणे ४. पभंकरे ५. चंदाभे ६. सूराभे ७. सुक्काभे ८. सुइट्टाभे, मज्झे रिट्ठा || Jain Education International बा? सूराभा इति बारे नायमर्थः समर्थः । १०३. कण्हराती णं भंते! कति नामधेज्जा कृष्णराजीनां भदन्त ! कति नामधेयानि १०३. भन्ते ! कृष्णराज के कितने नाम हैं? पण्णत्ता ? प्रज्ञप्तानि ? गोयमा ! अट्ठ नामघेज्जा पण्णत्ता, तं जहा - कण्हराती इ वा, मेहराती इवा, मघा इ वा, मापवई इ वा नावफलिहावा, वायपलिक्खोभा इवा, देवफलिहा इ वा देवपलिक्खोभा इ वा ॥ 1 गौतम ! अष्टनामधेयानि प्रज्ञप्तानि तद्यथा कृष्णराजिः इति वा, मेघराजिः इति वा, मघा इति वा मायवती इति वा वातपरिया इतिवा, वातप्रतिक्षोभा इति वा, देवपरिया इति वा देवप्रतिक्षोभा इति वा । कृष्णराजयः भदन्त ! किं पृथिवीपरिणामाः ? अपपरिणामाः ? जीवपरिणामा ? पुद्गलपरिणामा ? गौतम ! पृथिवीपरिणामाः, नो अपूपरिपामा, जीवपरिणामाः अपि पुनरि णामाः अपि| कृष्णराजिषु भदन्त ! सर्वे प्राणाः भूताः जीवाः सत्त्वाः पृथ्वीकायिकतया यात् इसकायिकतथा उपपन्त्रपूर्वा ? हन्त गौतम ! असकृद् अथवा अनन्तकृत्वः, नो चेव बादराकायिकतया, बादराग्निकायिकतया, बादरवनस्पतिकाविकतया वा । लोकान्तिक देव-पदम् एतासाम् अष्टानां कृष्णराजीनाम् अष्टसु अवकाशान्तरेषु अष्ट लोकान्तिकविमानानि प्रज्ञप्तानि तद्यथा १. अर्चिः २. अर्चिमालि: ३. वैरोचन: ४. प्रभङ्करः ५. चन्द्राभः ६. सूराभ: ७. शुक्लाभः ८. सुप्रतिष्ठाभ:, मध्ये रिष्टाभः । श. ६ : उ. ५: सू. १०१-१०६ For Private & Personal Use Only है? सूर्य की आभा है? यह अर्थ संगत नहीं है। १०२. भन्ते ! कृष्णराजियां वर्ण से कैसी प्रज्ञप्त हैं ? गौतम । वे वर्ण से काली, कृष्ण अवभासवाली, ! गम्भीर रोमाञ्च उत्पन्न करने वाली, भयंकर, उत्पासक और परमकृष्ण प्रज्ञप्त है। कोई एक देव भी उनके प्रथम दर्शन में क्षुब्ध हो जाता है। यदि वह उनमें प्रविष्ट हो जाता है तो उसके पश्चात् अतिशीघ्रता और अतित्वरा के साथ झटपट उसके बाहर चला जाता है। गीतम! कृष्णराज के आठ नाम प्रज्ञप्त कृष्णराजि, मेराज, मघा, माघवती वातपरिम, वातप्रतिक्षोभ, देवपरिषदेप्रतिक्षोभ - १०४. भन्ते ! कृष्णाराजयां क्या पृथ्वी के परिणमन हैं? जल के परिणमन हैं? जीव के परिणमन हैं? पुद्गल के परिणमन हैं? गौतम ! कृष्णराजियां पृथ्वी के परिणमन हैं, जल के परिणमन नहीं है, जीव के परिणमन भी हैं और पुद्गल के परिणमन भी हैं। १०५. भन्ते ! क्या कृष्णराजियों में सब प्राण, भूत जीव और सत्त्व पृथ्वीकाय-रूप में यावत् सकाय रूप में उपपन्नपूर्व हैं? हां गीतम! अनेक बार अथवा अनन्त बार उपपन्न हुए हैं। पर बादर अपकायिक, बादर अग्निकायिक और बादर वनस्पतिकायिक रूप में उपपन्न नहीं हुए। लोकान्तिक देव-पद १०६. इन आठ कृष्णराजियों के आठ अवकाशान्तरों में आठ लोकान्तिक विमान प्रज्ञप्त हैं, जैसे-१. अर्थ २. अर्थिगाली ३ वैरोचन ४. प्रभंकर ५. चन्द्राभ ६. सूराभ ७. शुक्लाभ ८. सुप्रतिष्ठाभ और मध्य में रिष्टाभ। www.jainelibrary.org
SR No.003594
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02 Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2000
Total Pages596
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy