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________________ श.६: उ.५:सू.९२-१०० २७४ भगवई गौतम ! कृष्णराजियां इतनी बड़ी प्रज्ञप्त हैं। एज्जा। एमहालियाओ णं गोयमा! कण्हरा- गौतम ! कृष्णराजः प्रज्ञप्ताः। तीओ पण्णत्ताओ। ९३. अत्थि णं भंते ! कण्हरातीसु गेहा इवा? गेहावणा इवा? णो इणठे समढे॥ अस्ति भदन्त ! कृष्णराजिषु गेहानि इति ९३. भन्ते ! कृष्णराजियों में क्या घर हैं? गृह-आपण वा? गेहापणा: इति वा? (दुकानें) हैं? नायमर्थः समर्थः। यह अर्थ संगत नहीं है। ९४. अत्थिणं भंते! कण्हरातीसुगामा इवा? जाव सण्णिवेसा इवा? णो इणढे समढे॥ अस्तिभदन्त! कृष्णराजिषु ग्रामा: इति वा? ९४. भन्ते! कृष्णराजियों में क्या गांव हैं यावत् सन्निवेश यावत् सन्निवेशा: इति वा? नायमर्थः समर्थः। यह अर्थ संगत नहीं हैं। ९५. अत्थि णं भंते ! कण्हरातीसु ओराला अस्ति भदन्त ! कृष्णराजिषु 'ओराला' ९५. भन्ते ! कृष्णराजियों में क्या बड़े मेघ संस्विन्न होते बलाहया संसेयंति? सम्मुच्छंति? वासं बलाहका: संस्विद्यन्ति? संमूर्च्छन्ति? वर्षाः हैं? संमूर्छित होते हैं ? (मेव का आकार लेते हैं) वासंति? वर्षन्ति? बरसते हैं? हंता अत्थि॥ हन्त अस्ति। हां, ऐसा होता है। ९६. तं भंते ! किं देवो पकरेति? असुरो पकरेति? नागो पकरेति? गोयमा! देवो पकरेति, नो असुरो, नो नागो पकरेति॥ तद् भदन्त ! किं देवः प्रकरोति? असुरः प्रकरोति? नाग: प्रकरोति? गौतम ! देव: प्रकरोति, नो असुरः, नो नाग: प्रकरोति। ९६. भन्ते ! क्या वह (संस्वेदन, संमूर्च्छन, वर्षण) कोई देव करता है? असुर करता है? नाग करता है? गौतम ! देव करता है, असुर नहीं करता है, नाग नहीं करता है? ९७. अत्थि णं भंते ! कण्हरातीसु बादरे थणियसद्दे? बादरे विज्जुयारे? हंता अत्थि।। अस्ति भदन्त! कृष्णराजिषु बादर: स्तनित- ९७. भन्ते ! कृष्णराजियों में क्या बादर (स्थूल) गर्जना शब्द:? बादर: विद्युत्कारः? का शब्द है? बादर विद्युत् है? हन्त अस्ति। हां, है। .. ९८. तं भंते ! किं देवो पकरेति? असुरो तद् भदन्त ! किं देव: प्रकरोति? असुरः ९८. भन्ते ! क्या वह (गर्जन का शब्द और विद्युत) पकरेति? नागो पकरेति? प्रकरोति? नाग: प्रकरोति? कोई देव करता है? असुर करता है, नाग करता है? गोयमा! देवो पकरेति, नो असुरो, नो नागो गौतम! देव: प्रकरोति, नो असुरः, नो नाग: गौतम ! देव करता है। असुर नहीं करता, नाग नहीं पकरेति॥ प्रकरोति। करता। ९९. अस्थि णं भंते ! कण्हरातीसु बादरे अस्ति भदन्त ! कृष्णराजिषु बादर: अप्- ९९. भन्ते ! कृष्णराजियों में क्या बादर अप्काय हैं? आउकाए? बादरे अगणिकाए? बादरे वण- कायः? बादर: अग्निकाय:? बादर: वन- बादर अग्निकाय है? बादर वनस्पतिकाय है? प्फइकाए? स्पतिकायः? णो तिणढे समढे, नण्णत्थ विग्गहगति- नायमर्थः समर्थः, नान्यत्र विग्रहगतिसमा- यह अर्थ संगत नहीं है। विग्रहगति (अन्तरालगति) समावन्नएणं॥ पन्नकात्। करते हुए जीवों को छोड़कर १००. अत्थि णं भंते ! कण्हरातीसु चंदिम- -सूरिय-गहगण-नक्खत्त-तारारूवा? णो तिणढे समढे॥ अस्ति भदन्त ! कृष्णराजिषु चन्द्र-सूर्य-ग्रह- १००. भन्ते ! कृष्णराजियों में क्या चन्द्रमा, सूर्य, गण-नक्षत्र-तारारूपा:? ग्रहगण, नक्षत्र और तारारूप हैं? नायमर्थः समर्थः। यह अर्थ संगत नहीं है। १०१. अत्थि णं भंते ! कण्हरातीसु चंदाभा अस्ति भदन्त ! कृष्णराजिषु चन्द्राभा इति १०१. भन्ते ! कृष्णराजियों में क्या चन्द्रमा की आभा Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003594
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02 Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2000
Total Pages596
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size20 MB
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