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भगवई
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श.६: उ.५: सू.७५-८५
जाव सण्णिवेसा इति वा? णो तिणढे समढे॥
यावत् सन्निवेशा इति वा? नायमर्थः समर्थः।
यह अर्थ संगत नहीं है।
७८. अत्थि णं भंते ! तमुक्काए ओराला अस्ति भदन्त ! तमस्काये 'ओराला' ७८. भन्ते! तमस्काय में क्या बड़े मेघ संस्विन्न होते हैं? बलाहया संसेयंति? सम्मुच्छंति? वासं वासं- बलाहका: संस्विद्यन्ति? सर्मूच्छन्ति? वर्षाः संमूर्छित होते हैं? (मेघ का आकार लेते है) बरसते
वर्षन्ति? हंता अत्थि।। हन्त आस्ति।
हां, ऐसा होता है।
ति?
७९. तं भंते ! किं देवो पकरेति? असुरो तद् भदन्त ! किं देव: प्रकरोति? असुरः पकरेति? नागो पकरेति?
प्रकरोति? नाग: प्रकरोति? गोयमा ! देवो विपकरेति, असुरो वि गौतम ! देवोऽपि प्रकरोति, असुरोऽपि पकरेति, नागो विपकरेति।।
प्रकरोति, नागोऽपि प्रकरोति।
७९. भन्ते ! क्या वह संस्वेदन सम्मूर्च्छन, वर्षण कोई
देव करता है? असुर करता है? नाग करता है? गौतम ! देव भी करता है, असुर भी करता है, नाग भी करता है।
८०. अत्थि णं भंते ! तमुक्काए बादरे थणिय-
सद्दे? बादरे विज्जुयारे? हंता अत्थि।।
अस्ति भदन्त! तमस्काये बादर: स्तनि- ८०. भन्ते ! तमस्काय में क्या बादर (स्थूल) गर्जन का तशब्द:? बादर: विद्युत्कार:?
शब्द है? बादर विद्युत् है। हन्त अस्ति।
८१. तं भंते ! किं देवो पकरेति? असुरो
पकरेति? नागो पकरेति? तिण्णि वि पकरेंति।।
तद् भदन्त ! किं देवः प्रकरोति? असुरः प्रकरोति? नागः प्रकरोति? त्रयोऽपि प्रकुर्वन्ति।
८१. भन्ते ! क्या वह (गर्जन का शब्द और विद्युत्) कोई देव करता है? असुर करता है? नाग करता है? तीनों ही करते हैं।
८२. अत्थि णं भंते! तमुक्काए बादरे पुढविकाए? बादरे अगणिकाए? णो तिणढे समढे, नण्णत्थ विग्गहगतिसमावन्नएणं॥
आस्ति भदन्त! तमस्काये बादर: पृथिवी- ८२. भन्ते! तमस्काय में क्या बादर पृथ्वीकाय हैं? बादर काय:? बादर: अग्निकाय:?
अग्निकाय हैं? नायमर्थः समर्थः नान्यत्र विग्रहगतिसमा- यह अर्थ संगत नहीं है, विग्रहगति (अन्तरालगति) पन्नकात्।
करते हुए जीवों को छोड़ कर ।
८३. अत्थिणं भंते ! तमुक्काए चंदिम-सूरिय- अस्ति भदन्त ! तमस्काये चन्द्र-सूर्य- ८३. भन्ते ! तमस्काय में चन्द्रमा, सूर्य, ग्रहगण, नक्षत्र -गहगण-नक्खत्त-तारारूवा? -ग्रहगण-नक्षत्र-तारारूपा?
और तारारूप हैं? णो तिणढे समढे, पलियस्सओ पुण अत्थि।। नायमर्थः समर्थः, परिपार्श्वत: पुन: अस्ति। यह अर्थ संगत नहीं है। उसके परिपार्श्व में चन्द्रमा
आदि पांचों हैं।
८४. अत्थि ण भंते ! तमुक्काए चंदाभा ति वा? सूराभा ति वा? णो तिणढे समढे, कादूसणिया पुण सा।।
अस्ति भदन्त ! तमस्काये चन्द्राभा इति वा? ८४. भन्ते ! तमस्काय में क्या चन्द्रमा की आभा है? सूराभा इति वा?
सूर्य की आभा है? नायमर्थः समर्थः, कदूषणिका पुन: सा। यह अर्थ संगत नहीं है। पार्श्ववर्ती चन्द्र, सूर्य की प्रभा
तमस्काय में आ कर धुंधली बन जाती है।
८५. भन्ते ! तमस्काय वर्ण से कैसा प्रज्ञप्त है?
पण्णते?
८५. तमुक्काए णं भंते ! केरिसए वण्णएणं तमस्काय: भदन्त ! कीदृशक: वर्णकेण
प्रज्ञप्त:? गोयमा ! काले कालोभासे गंभीरे लोम- गौतम! काल: कालाभास: गम्भीर: लोम- हरीसजणणे भीमे उत्तासणए परमकिण्हे हर्षजनन: भीम: उत्तासनक: परमकृष्ण: वण्णेणं पण्णत्ते। देवे विणं अत्थेगतिए जेणं वर्णेन प्रज्ञप्तः। देवोऽपि अस्त्येकक: य:
गौतम ! वह वर्ण से काला, कृष्ण अवभासवाला, गम्भीर, रोमाञ्च उत्पन्न करने वाला, भयंकर, उत्त्रासक और परम कृष्ण प्रज्ञप्त है। कोई एक देव भी
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