________________
श.६ : उ.५: सू.७३-७७
२७०
भगवई
कुक्कुडग-पंजरगसंठिए पण्णत्ते॥
कुर्कुटक-पञ्जरकसंस्थितः प्रज्ञप्तः।
ऊपर मुर्गे के पिंजरे का संस्थान है।
७४. तमुक्काए णं भंते ! केवतियं विक्खं- तमस्काय: भदन्त! कियान् विष्कम्भेण, ७४. भन्ते ! तमस्काय का विष्कम्भ (चौडाई) कितना भेणं, केवतियं परिक्खेवेणं पण्णते? कियान् परिक्षेपेण प्रज्ञप्तः।
और परिक्षेप (परिधि) कितना प्रज्ञप्त है? गोयमा! दुविहे पण्णते, तं जहा–संखे- गौतम ! द्विविध: प्रज्ञप्तः, तद्यथा--संख्ये- गौतम ! तमस्काय दो प्रकार का प्रज्ञप्त है, जैसेज्जवित्थडे य, असंखेज्जवित्थडे या तत्थ यविस्तृतश्च, असंख्येयविस्तृतश्च। तत्र य: संख्यात योजन विस्तृत और असंख्यात योजन णं जे से संखेज्जवित्थडे, से णं संखेज्जाइं एष: संख्येयविस्तृत: स: संख्येयानि योजन- विस्तृत। जो संख्यात योजन विस्तृत है, उसका जोयणसहस्साई विक्खंभेणं, असंखेज्जाइं सहस्राणि विष्कम्भेण, असंख्येयानि योजन- विष्कम्भ संख्यात हजार योजन और उसका परिक्षेप जोयणसहस्साई परिक्खेवेणं पण्णत्ते। सहस्राणि परिक्षेपेण प्रज्ञप्तः।
असंख्यात हजार योजन प्रज्ञप्त है।
तत्थ णं जे से असंखेज्जवित्थडे, से णं तत्र य: एष: असंख्येयविस्तृत: स असंख्येअसंखेज्जाइं जोयणसहस्साई विक्खंभेणं, यानि योजनसहस्राणि विष्कम्भेण, असंख्येअसंखेज्जाई जोयणसहस्साई परिक्खेवेणं यानि योजनसहस्राणि परिक्षेपेण प्रज्ञप्तः। पण्णत्ते॥
जो असंख्यात योजन विस्तृत है, उसका विष्कम्भ असंख्यात हजार योजन और उसका परिक्षेप असंख्यात हजार योजन प्रज्ञप्त है।
७५. तमुक्काए णं भंते ! केमहालए पण्णत्ते? तमस्काय: भदन्त ! कियन्महान् प्रज्ञप्तः? ७५. भन्ते ! तमस्काय कितना बड़ा प्रज्ञप्त है? गोयमा! अयण्णं जंबुद्दीवे दीवे सव्वदीव- गौतम! अयं जम्बूद्वीपे द्वीपे सर्वद्वीप- गौतम ! यह जम्बूद्वीप द्वीप सब द्वीपसमुद्रों के मध्य समुद्दाणं सन्वब्भंतराए जाव एणं जोयजण- समुद्राणां सर्वाभ्यन्तरक: यावद् एकं में अवस्थित है यावत् एक लाख योजन लम्बा-चौड़ा सयसहस्सं आयाम-विक्खंभेणं, तिण्णि योजनशतसहस्रम्, आयाम-विष्कम्भेण, और उसका परिक्षेप तीन लाख, सोलह हजार, दो जोयणसयसहस्साई सोलससहस्साई दोण्णि त्रीणियोजन-शत-सहस्राणि षोडशसहस्राणि सौ सत्ताईस योजन, तीन कोस, एक सौ अठाईस य सत्तावीसे जोयणसए तिण्णि य कोसे द्वे च सप्तविंशति योजनशते त्रीणि च धनुष और साढ़ा तेरह अंगुल से कुछ अधिक प्रज्ञप्त अट्ठावीसं च धणुसयं तेरस अंगुलाई क्रोशान् अष्टाविंशति च धनुशतं त्रयोदश है। कोई महान् ऋद्धि वाला यावत् महान् अनुभाव अद्धंगुलगं च किंचिविसेसाहिए परिक्खेवेणं अंगुलानि अर्धांगुलकं च किंचिद् वाला देव 'यह रहा-यह रहा' इस प्रकार कहकर पण्णत्ते। देवे णं महिड्ढीए जाव महाणुभावे विशेषाधिकः परिक्षेपेण प्रज्ञप्तः। देवः सम्पूर्ण जम्बूद्वीप द्वीप में तीन बार चुटकी बजाने जितने इणामेव-इणामेवत्ति कट्ट केवलकप्पं महर्द्धिक: यावत् महानुभावः इदमेव- समय में इक्कीस बार घूमकर शीघ्र ही आ जाता है, जंबूदीवं दीवं तिहिंअच्छरानिवाएहिं इदमेवेति कृत्वा केवलकल्पं जम्बूद्वीपं द्वीपं वह देव उस उत्कृष्ट त्वरित यावत् दिव्य देव गति से तिसत्तक्खुत्तो अणुपरियट्टित्ता णं हव्व- त्रिभिः 'अच्छरा निपातैः त्रिसप्तकृत्व: ___परिव्रजन करता हुआ-परिव्रजन करता हुआ यावत् मागच्छिज्जा, से णं देवे ताए उक्किट्ठाए अनुपर्यट्य हव्वं' आगच्छेत्, स देव: तया तुरियाए जाव दिव्वाए देवगईए वीईवय- उत्कृष्टतया त्वरितया यावद् दिव्यया देव- तक परिव्रजन करे तो किसी (संख्यात योजन विस्तार माणे-वीईवयमाणे जाव एकाहं वा, दुयाहं गत्या व्यतिव्रजन्-व्यतिव्रजन् यावद् एकाहं वाले) तमस्काय का अतिक्रमण कर जाता है और वा, तियाहं वा, उक्कोसेणं छम्मासे वा यह वा त्र्यहं वा उत्कर्षेण षण्मासान् किसी (असंख्यात योजन विस्तार वाले) तमस्काय वीईवएज्जा, अत्थेगतियं तमुक्कायं व्यतिव्रजेत, अस्त्येकक: तमस्कायं व्यति- का अतिक्रमण नहीं कर पाता। गौतम ! तमस्काय वीईवएज्जा, अत्थेगतियं तमुक्कायं नो व्रजेत, अस्त्येकक: तमस्कायं नो व्यति- इतना बड़ा प्रज्ञप्त है। वीईवएज्जा। एमहालए णं गोयमा! व्रजेत्। इयन्महान् गौतम ! तमस्काय: तमुक्काए पण्णत्ते ॥
प्रज्ञप्तः।
७६. अत्थि णं भंते ! तमुक्काए गेहा इ वा? गेहावणा इ वा? णो तिणढे समढे॥
अस्ति भदन्त ! तमस्काये गेहानि इति वा? गेहापणा : इति वा? नायमर्थः समर्थः।
७६. भन्ते ! तमस्काय में क्या घर है? गृह-आपण (दुकानें) हैं? यह अर्थ संगत नहीं है।
७७. अत्थि णं भते ! तमुक्काए गामा इ वा? अस्ति भदन्त ! तमस्काये ग्रामा इति वा? ७७. भन्ते! तमस्काय में क्या गांव हैं? यावत् सन्निवेश
Jain Education Intemational
For Private & Personal use only
www.jainelibrary.org