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________________ चउत्थो उद्देसो : चौथा उद्देशक मूल संस्कृत छाया हिन्दी अनुवाद कालादेसेणं सपदेस-अपदेस-पदं कालादेशेन सप्रदेशाप्रदेश-पदम् काल की अपेक्षा सप्रदेश-अप्रदेश-पद ५४. जीवे णं भंते ! कालादेसेणं किं सपदेसे? जीव: भदन्त ! कालादेशेन किं सप्रदेश:? ५४. १ भन्ते ! जीव काल की अपेक्षा क्या सप्रदेश है? अपदेसे? अप्रदेश:? अप्रदेश है? गोयमा ! नियमा सपदेसे। गौतम ! नियमात् सप्रदेशः। गौतम ! नियमत: सप्रदेश है। ५५. नेरइएणं भंते ! कालादेसेणं किं सपदेसे? अपदेसे? गोयमा ! सिय सपदेसे, सिय अपदेसे।। नैरयिक: भदन्त ! कालादेशेन किं सप्रदेश:? ५५. भन्ते ! नैरयिक जीव काल की अपेक्षा क्या सप्रदेश अप्रदेश:? है? अप्रदेश है? गौतम ! स्यात् सप्रदेश:, स्याद् अप्रदेशः। गौतम! स्यात् सप्रदेश है, स्यात् अप्रदेश है। ५६. एवं जाव सिद्धे। एवं यावत् सिद्धः। ५६. इसी प्रकार यावत् सिद्ध की वक्तव्यता। ५७. जीवाणं भंते! कालादेसेणं किं सपदेसा? अपदेसा? गोयमा! नियमा सपदेसा।। जीवा: भदन्त ! कालादेशेन किं सप्रदेशा:? ५७. भन्ते ! जीव काल की अपेक्षा क्या सप्रदेश हैं? अप्रदेशा:? अप्रदेश हैं? गौतम ! नियमात् सप्रदेशा:। गौतम! नियमत: सप्रदेश हैं। ५८. नेरइया णं भंते ! कालादेसेणं किं सपदेसा? नैरयिका: भदन्त ! कालादेशेन किं सप्रदे- ५८. भन्ते ! नैरयिक जीव काल की अपेक्षा क्या सप्रदेश अपदेसा? शा:? अप्रदेशा:? हैं? अप्रदेश हैं? गोयमा ! १. सव्वे वि ताव होज्जा सपदेसा गौतम ! १. सर्वेऽपि तावद् भवेयुः सप्रदेशाः गौतम ! १. सभी जीव सप्रदेश हैं २. अथवा अनेक २.अहवा सपदेसा य अपदेसे य ३. अहवा २.अथवा सप्रदेशाश्च अप्रदेशश्च ३.अथवा जीव सप्रदेश हैं और एक जीव अप्रदेश है ३. अथवा सपदेसा य अपदेसा य|| सप्रदेशाश्च अप्रदेशाश्चा अनेक जीव सप्रदेश हैं और अनेक जीव अप्रदेश हैं। ५९. एवं जाव थणियकुमारा। एवं यावत् स्तनितकुमारा: ५९. इसी प्रकार यावत् स्तनितकुमार देवों की वक्तव्यता। ६०. पुढविकाइया णं भंते ! किं सपदेसा? पृथिवीकायिकाः भदन्त ! किं सप्रदेशा:? ६०. भंते ! पृथ्वीकायिक जीव क्या सप्रदेश हैं? अप्रदेश अपदेसा? अप्रदेशा:? गोयमा ! सपदेसा वि, अपदेसा वि।। गौतम ! सप्रदेशा: अपि, अप्रदेशा: अपि। गौतम ! सप्रदेश भी हैं, अप्रदेश भी हैं। ६१. एवं जाव वणप्फइकाइया।। एवं यावद् वनस्पतिकायिका:। ६१. इसी प्रकार यावत् वनस्पतिकायिक जीवों की वक्तव्यता। ६२. सेसा जहा नेरइया तहा जाव सिद्धा। शेषा: यथा नैरयिका: तथा यावत् सिद्धाः। ६२. शेष सिद्धों तक सभी जीव नैरयिक जीवों की भांति वक्तव्य हैं। Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003594
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02 Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2000
Total Pages596
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size20 MB
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