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श.६ : उ.३: सू.३३-३८
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भगवई
तेतीस सागर की होती है। भगवतीवृत्ति तथा शतक (पंच संग्रह) की कर्मस्थिति कर्म-निषेक का काल बतलाया गया है। आयुष्य कर्म का चूर्णि में पूर्व कोटि का तीसरा भाग अबाधाकाल तथा अबाधाकाल-ऊन उत्कृष्ट निषेक-काल तेतीस सागर का है। देखे यंत्र—(पृ. २४७)
३५. नाणावरणिज्जणं भंते ! कम्मं किं इत्थी ज्ञानावरणीयं भदन्त! कर्म किं स्त्री बध्नाति? ३५.१ भन्ते! ज्ञानावरणीय कर्म का बंध क्या स्त्री करती बंधइ? पुरिसो बंधइ? नपुंसओ बंधइ? पुरुष: बध्नाति? नपुंसक: बध्नाति? नोस्त्री है? पुरुष करता है? नपुंसक करता है? नोस्त्रीनोइत्थी नोपुरिसो नोनपुंसओ बंधइ? नोपुरुष: नोनपुंसक: बध्नाति?
-नोपुरुष-नोनपुंसक करता है? गोयमा ! इत्थी वि बंधइ, पुरिसो वि बंधइ, गौतम ! स्त्री अपि बध्नाति, पुरुषोऽपि बध्ना- गौतम ! स्त्री भी ज्ञानावरणीय कर्म का बंध करती है, नंपुसओ वि बंधइ। नोइत्थी नोपुरिसो ति, नपुंसकोऽपि बध्नाति। नोस्त्री नोपुरुषः पुरुष भी करता है, नपुंसक भी करता है; नोस्त्रीनोनपुंसओ सिय बंधइ, सिय नो बंधइ। नोनपुंसक: स्यात् बध्नाति, स्यान् नो बध्नाति। ___-नोपुरुष-नोनपुंसक स्यात् बंध करता है, स्यात् बंध
नहीं करता। एवं आउगवज्जाओ सत्त कम्मप्पगडीओ। एवम् आयुष्यकवर्जा: सप्त कर्मप्रकृतयः। इसी प्रकार आयुष्य को छोड़कर सातों ही कर्म
प्रकृतियों के बंध की वक्तव्यता करें।
३६. आउगं णं भंते ! कम्मं किं इत्थी बंधइ? आयुष्कं भदन्त ! कर्म किं स्त्री बध्नाति? ३६. भन्ते ! आयुष्य कर्म का बंध क्या स्त्री करती है? पुरिसो बंधइ? नपुंसओ बंधइ? नोइत्थी पुरुषः बध्नाति? नपुंसक: बध्नाति? नोस्त्री ___पुरुष करता है? नपुंसक करता है? नोस्त्री-नोपुरुषनोपुरिसो नोनपुंसओ बंधइ? नोपुरुष: नोनपुंसक : बध्नाति?
-नोनपुंसक करता है? गोयमा ! इत्थी सिय बंधइ, सिय नो बंध। गौतम ! स्त्री स्यात् बध्नाति, स्यान् नो गौतम ! आयुष्य कर्म का बंध स्त्री स्यात् करती है, पुरिसो सिय बंधइ, सिय नो बंधइ। नपुंसओ बध्नाति। पुरुष: स्यात् बध्नाति, स्यान् नो स्यात् नहीं करती। पुरुष स्यात् करता है, स्यात् नहीं सिय बंधइ, सिय नो बंधइा नोइत्थी नोपुरिसो बध्नाति। नपुंसक: स्यात् बध्नाति, स्यान् नो करता। नपुंसक स्यात् करता है, स्यात् नहीं करता। नोनपुंसओ न बंध।।
बध्नाति। नोस्त्री नोपुरुष: नोनपुंसक: न नोस्त्री-नोपुरुष-नोनपुंसक आयुष्य कर्म का बंध बध्नाति।
नहीं करता।
३७. नाणावरणिज्जणं भंते ! कम्मं किं संजए ज्ञानावरणीयं भदन्त ! कर्म किं संयतः ३७. भन्ते! ज्ञानावरणीय कर्म का बंध क्या संयत करता बंधइ? अस्संजए बंधइ? संजयासंजए बंधइ? बध्नाति? असंयत: बध्नाति? संयतासंयत: है? असंयत करता है? संयतासंयत करता है? नोसंजए नोअसंजए नोसंजयासंजए बंधइ? बध्नाति? नोसंयत: नोअसंयत: नो संयता- नोसंयत-नोअसंयत-नोसंयतासंयत करता है?
संयत: बध्नाति? गोयमा! संजए सिय बंधइ, सिय नो बंधइ। गौतम ! संयत: स्यात् बध्नाति, स्यान् नो गौतम! संयत ज्ञानावरणीय कर्म का बंधस्यात् करता अस्संजए बंधइ, संजयासंजए वि बंध। बध्नाति। असंयत: बध्नाति, संयतासंयत: है, स्यात् नहीं करता। असंयत बंध करता है, नोसंजए नोअस्संजए नोसंजयासंजए,न बं- अपि बध्नाति। नोसंयत: नोअसंयत: नोधइ। संयतासंयत: न बध्नाति।
-नोसंयतासंयत बंध नहीं करता। एवं आउगवज्जाओ सत्त वि। आउगे हेट्ठि- एवम् आयुष्यकवर्जानि सप्त अपि। आयु- इसी प्रकार आयुष्य को छोड़कर सातों ही कर्मल्ला तिण्णि भयणाए, उवरिल्ले न बंधइ। ष्यकम् अधस्तना: त्रयो भजनया, उपरितन: प्रकृतियों के बंध की वक्तव्यता। प्रथम तीनोंन बध्नाति।
संयत, असंयत और संयतासंयत आयुष्य कर्म का बंध स्यात् करते हैं, स्यात् नहीं करते। चौथा भंगनोसंयत-नोअसंयत-नोसंयतासंयत नहीं करता।
३८. नाणावरणिज्जं णं भंते ! कम्मं किं ज्ञानावरणीयं भदन्त ! कर्म किं सम्यग्दृष्टि : ३८. भन्ते! ज्ञानावरणीय कर्म का बंधसम्यग्दृष्टि करता
सम्मदिट्ठी बंधइ? मिच्छ दिट्ठी बंधइ? सम्मा- बध्नाति? मिथ्यादृष्टि : बध्नाति? सम्यग्- है? मिथ्यादृष्टि करता है? सम्यग्मिथ्यादृष्टि करता मिच्छ दिट्ठी बंधइ?
मिथ्यादृष्टि : बध्नाति?
१. प.सं.पू.२४६-देवणिरयाउगाणं उक्कोसगो ठिइबंधो तेत्तीस सागरोपमाणि पुन्व- कोडि तिभागहियाणि, पुनकोडि तिभागो अबाहा अबाहाए विणा कम्मट्टिई कम्मणिसेगो।।
२. वही, गाथा ३९५
अबाधूणडि दी, कम्मनिसेओ होइ सत्तकम्माणा ठिदिमेव णिया सव्वा, कम्मणिसेओ य आउस्स ।।
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