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________________ भगवई गोमा ! सम्मदिट्ठी सिय बंधइ, सिय नो बंध | मिच्छदिट्ठी बंधड़, सम्मामिच्छदिट्ठी बंधड़ । एवं आगवन्जाओ सत वि आउगे हे डिल्ला दो भयणाए सम्मामिच्छदिट्टी न बंध।। ३९. नाणावरणिज्जं मं भंते! कम्मं किं सनी बंध? असण्णी बंधइ ? नोसण्णी नो असण्णी बंध ? गोवमा ! सण्णी सिय बंधड़, सिग जो बंध असण्णी बंधइ । नोसण्णी नोअसण्णी न बंधइ । एवं वेदणिन्वागकन्याओ छ कम्मरपगडीओ | वेदणिज्जं हे द्विल्ला दो बंधंति, उवरिल्ले भयणाए । आउगं हेट्ठिल्ला दो भयणाए, उवरिल्ले न बंधइ ॥ ४०. नाणावरणिन्वं णं भंते कम्मं किं भवसिद्धिए बंधइ ? अभवसिद्धिए बंधइ ? नोभवसिद्धिए नोअभवसिद्धिए बंधइ ? गोयमा ! भवसिद्धिए भवणाए, अभवसिद्धिए बंधइ । नोभवसिद्धिए नोअभवसिद्धिए न एवं आवज्जाओ सत्त वि। आउगं हेट्ठिल्ला दो भयणा । उवरिल्ले न बंधइ ॥ ४१. नाणावरणिज्जं णं भंते! कम्पं किं चक्खु दंसणी बंधइ ? अचक्खुदंसणी बंध ? ओहि - दंसणी बंध? केवलदंसणी बंधइ ? गोयमा ! हेडिला तिष्णि भयणाए, उवरिल्ले नबंध | Jain Education International २४९ गौतम ! सम्यग्दृष्टिः स्यात् बध्नाति, स्यान् नो बध्नाति । मिथ्यादृष्टिः बध्नाति, सम्यग्मिध्यादृष्टिः बच्नाति । एवम् आयुष्कवर्णानि सप्त अपि । आयुष्कम् अधस्तनी ही भजनया सम्यगृमिध्यादृष्टिः नबध्नाति । ज्ञानावरणीयं भदन्त ! कर्म किं संज्ञी बध्नाति ? असंज्ञी बध्नाति ? नोसंज्ञी नोअसंज्ञी बध्नाति ? 2 गौतम संज्ञी स्यात् बध्नाति स्यान् नो बध्नाति । असंज्ञी बध्नाति नोसंज्ञी नोअसंज्ञी नबध्नाति । एवं वेदनीयायुष्ककर्जाः षट्कर्म प्रकृतीः वेदनीयं अधस्तनौ द्वौ बध्नीतः, उपरितनः भजनया। आयुष्कम् अधस्तनौ द्वौ भजनया, उपरितनः न बध्नाति । ज्ञानावरणीयं भदन्त कर्म किं भवसिद्धिकः बध्नाति ? अभवसिद्धिकः बध्नाति ? नोभवसिद्धिकः नोअभवसिद्धिकः बध्नाति ? गौतम । भवसिद्धिकः भजनया, अभवसिद्धिकः बध्नाति । नोभवसिद्धिक: नोअभवसिद्धिकः न बध्नाति । एवं आयुष्कवर्जीनि सप्त अपि । आयुष्कम् अधस्तनौ द्वौ भजनवा, उपरितन: न बध्नाति । ज्ञानावरणीयं भदन्त ! कर्म किं चक्षुर्दर्शनी बध्नाति ? अचक्षुर्दर्शनी बध्नाति ? अवधिदर्शनी बध्नाति ? केवलदर्शनी बध्नाति ? गौतम! अधस्तना: त्रयः भजनवा, उपरितनः नबध्नाति । For Private & Personal Use Only श. ६ : उ. ३ : सू. ३८-४१ गौतम ! सम्यग्दृष्टि ज्ञानावरणीय कर्म का बंध स्यात् करता है, स्यात् नहीं करता, मिथ्यादृष्टि बंध करता है, सम्यमिध्यादृष्टि बंध करता है। इसी प्रकार आयुष्य को छोड़ कर सातों ही कर्म- प्रकृतियों के बंध की वक्तव्यता । प्रथम दोनोंसम्यदृष्टि और मिथ्यादृष्टि आयुष्य कर्म का बन्ध स्यात् करते हैं, स्यात् नहीं करते। सम्यग्मिथ्यादृष्टि नहीं करता। ३९. भन्ते ! ज्ञानावरणीय कर्म का बन्ध क्या संजी (समनस्क) करता है? असंज्ञी (अमनस्क) करता है? नोसंज्ञी नोअसंडी (केवली और सिद्ध) करता है? गौतम ! संज्ञी ज्ञानावरणीय कर्म का बंध स्यात् करता है, स्यात् नहीं करता। असंज्ञी बन्ध करता है। नोसंज्ञीनोअसंज्ञी बन्ध नहीं करता । इसी प्रकार वेदनीय और आयुष्क को छोड़ कर छह कर्म - प्रकृतियों के बन्ध की वक्तव्यता । प्रथम दोनोंसंज्ञी और असंज्ञी वेदनीय कर्म का बन्ध करते हैं; तीसरा नोसंज्ञी नोअसंज्ञी स्वात् बन्ध करता है, स्यात् नहीं करता। प्रथम दोनों— संज्ञी और असंज्ञी आयुष्य कर्म का बन्ध स्यात् करते हैं, स्यात् नहीं करते। तीसरा नोसंज्ञी - नोअसंज्ञी बन्ध नहीं करता । --- ४०. भंते! ज्ञानावरणीय कर्म का बन्ध क्या भवसिद्धिक करता है ? अभवसिद्धिक करता है? नोभवसिद्धिकनोअभवसिद्धिक करता है? गौतम भवसिद्धिक ज्ञानावरणीय कर्म का बन्ध स्यात् करता है, स्यात् नहीं करता। अभवसिद्धिक बंध करता है। नो भवसिद्धिक-नोअभवसिद्धिक बन्ध नहीं करता। इसी प्रकार आयुष्य को छोड़ कर सातों ही कर्मप्रकृतियों के बंध की वक्त व्यता । प्रथम दोनों— भवसिद्धिक और अभवसिद्धिक आयुष्य कर्म का बन्ध स्यात् करते हैं, स्यात् नहीं करते। नोभवसिद्धिकनोभवसिद्धिक बन्ध नहीं करता । ४१. भन्ते ! ज्ञानावरणीय कर्म का बन्ध क्या चक्षुदर्शनी करता है? अवशुदर्शनी करता है? अवधिदर्शनी करता है ? केवलदर्शनी करता है ? गौतम ! प्रथम तीनों दर्शनी, अचक्षुदर्शनी और अवधिदर्शनी ज्ञानावरणीय कर्म का बन्ध स्यात् करते हैं, स्यात् नहीं करता केवलदर्शनी बन्ध नहीं करता। www.jainelibrary.org
SR No.003594
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02 Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2000
Total Pages596
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size20 MB
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