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________________ तइयं सयं : तीसरा शतक पढमो उद्देसो : पहला उद्देशक मूल संस्कृत छाया हिन्दी अनुवाद संगहणी गाहा संग्रहणी गाथा १. केरिसविउव्वणा २. चमर कीदृशविक्रिया-चमर३. किरिय ४,५.जाणित्थि ६.नगर ७. पाला य। क्रिया-यान-स्त्री-७८नगर-पालाश्च। ८. अहिवइ ६. इंदिय १०. परिसा, अधिपतिः इन्द्रियं परिषद, ततियम्मि सए दसुद्देसा ॥१॥ तृतीये शते दश उद्देशाः।। संग्रहणी गाथा चमर की कैसी विक्रिया, चमर का उत्पात, क्रिया, यान, स्त्री, नगर, लोकपाल, अधिपति, इन्द्रिय और परिषद्-तीसरे शतक में ये दश उद्देशक हैं। उक्खेव-पदं उत्क्षेप-पदम् उत्क्षेप-पद १. तेणं कालेणं तेणं समएणं मोया नामं नयरी तस्मिन् काले तस्मिन् समये मोका नाम नगरी १. उस काल और उस समय मोका नाम की नगरी थीहोत्था-वण्णओं॥ आसीद्-वर्णकः। नगर का वर्णन। २. तीसे णं मोयाए नयरीए बहिया उत्तरपुरत्थिमे तस्याः मोकायाः नगर्याः बहिः उत्तरपौरस्त्ये २. उस मोका नगरी के बाहर उत्तर-पूर्व दिशा भाग में दिसीभागे नंदणे नामं चेइए होत्था-वण्णओ॥ दिगभागे नन्दनं नाम चैत्यम् आसीद्-वर्णकः। नन्दन नाम का चैत्य था-चैत्य का वर्णन। ३. तेणं कालेणं तेणं समएणं सामी समोसढे। परिसा निग्गच्छइ, पडिगया परिसा॥ तस्मिन् काले तस्मिन् समये स्वामी समव- ३. उस काल और उस समय भगवान् महावीर समवसृत सृतः। परिषद् निर्गच्छति, प्रतिगता परिषद्। हुए। परिषद् ने नगर से निर्गमन किया। परिषद्द्वापस नगर में चली गई। देवविकुब्वणा-पदं देवविक्रिया-पदम् देवविक्रिया-पद ४. तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ तस्मिन् काले तस्मिन् समये श्रमणस्य भगवतः ४. उस काल और उस समय श्रमण भगवान महावीर के महावीरस्स दोच्चे अंतेवासी अग्गिभूई नाम महावीरस्य द्वितीयः अन्तेवासी अग्निभूतिः दूसरे अन्तेवासी अग्निभूति नामक अनगार थे। उनका अणगारे गोयमे गोत्तेणं सत्तुस्सेहे जाव नाम अनगारः गौतमः गोत्रेण सप्तोत्सेधः गौत्र गौतम था। उनकी ऊंचाई सात हाथ की थी।' पज्जुवासमाणे एवं वदासि-चमरे णं भंते! यावत् पर्युपासीनः एवमवादीत्-चमरः यावत् वे भगवान् की पर्युपासना करते हुए इस प्रकार असुरिंदे असुरराया केमहिड्ढीए? केमहज्जु- भदन्त ! असुरेन्द्रः असुरराजः कियन्महर्द्धिकः? बोले-भन्ते! असुरेन्द्र असुरराज चमर कितनी महान् तीए? केमहाबले? केमहायसे? केमहासोक्खे? कियन्महाद्युतिकः? कियन्महाबलः? कियन्- ऋद्धि वाला, कितनी महान् धुति वाला, कितने महान् केमहाणुभागे? केवइयं च णं पभू विकु- महायशाः? कियन्महासौख्यः? कियनमहा- बल वाला, कितने महान् यश वाला, कितने महान् सुख वित्तए? नुभागः? कियच् च प्रभुः विकर्तुम्? वाला, कितनी महान सामर्थ्य वाला और कितनी विक्रिया करने में समर्थ है? गोयमा ! चमरे णं असुरिंदे असुरराया महि- गौतम ! चमरः असुरेन्द्रः असुरराजः महर्द्धिकः, गौतम ! असुरेन्द्र असुरराज चमर महान् ऋद्धि वाला, ड्ढीए, महज्जुतीए, महाबले, महायसे, महा- महाद्युतिकः, महाबलः, महायशाः, महासौख्यः, महान् धुति वाला, महाबली, महायशस्वी, महासुखी सोक्खे, महाणुभागे। से णं तत्थ चोत्तीसाए महानुभागः। स तत्र चतुस्त्रिशद् भवना- और महान् सामर्थ्य वाला है। वह चमरञ्चा राजधानी भावणावाससयसहस्साणं, चउसट्ठीए समाणि- वासशतसहस्त्राणां, चतुःषष्ट्याः सामानिकसा- में चौंतीस लाख भवनावास, चौंसठ हजार सामानिक, यसाहस्सीणं, तायत्तीसाए तावत्तीसगाणं, हस्याः, त्रयस्त्रिंशत् तावत्त्रिंशकानां, चतुर्णां तैंतीस तावत्त्रिंशक, चार लोकपाल, पांच सपरिवार Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003594
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02 Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2000
Total Pages596
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size20 MB
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