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भगवई
करणे व विगलिंदियाणं तिविहे -- वइकरणे, कायकरणे, कम्मकरणे ॥
८. नेरइया णं भंते! किं करणओ असायं वेदणं वेदेति? अकरणओ असावं वेदनं वेदेति ?
गोयमा ! नेरइया णं करणओ असायं वेदणं वेदेति, नो अकरणओ असावं वेदनं वेदेति ।
९. से केणद्वेणं ?
गोयमा ! नेरइयाणं चउव्विहे करणे पण्णत्ते, तं जहा—मणकरणे, वइकरणे, कायकरणे, कम्मकरणे इच्चेएणं चव्विशेषं असुभेनं करणेणं नेरइया करणओ अस्सायं वेदणं वेदेति नो अकरणओ।
"
से तेणद्वेणं ।।
१०. असुरकुमारा रणओ?
गोयमा ! करणओ, नो अकरणओ
णं किं करणओ? अक
११. सेकेण्डेणं?
1
गोयमा ! असुरकुमाराणं चउव्विहे करणे पण्णत्ते तं जहामणकरणे, बड़करणे, कायकरणे, कम्मकरणे । इच्चे एणं सुभेणं करणेणं असुरकुमारा करणओ सातं वेदणं वेदेति, नो अकरणओ।।
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कर्मकरणं च । विकलेन्द्रियाणां त्रिविधं वाक्करणं, कायकरणं, कर्मकरणम्।
नैरयिकाः भदन्त ! किं करणतः असातां वेदनां वेदयन्ति ? अकरणतः असातां वेदनां वेदयन्ति?
गौतम ! नैरयिका: करणतः असातां वेदनां वेदयन्ति नो अकरणतः असातां वेदनां वेदयन्ति।
सत् केवार्थेन?
गौतम ! नैरयिकाणां चतुर्विधं करणं प्रज्ञप्तं, तद् यथा— मनः करणं, वाक्करणं, कायकरणं, कर्मकरणम् इत्वेतेन चतुर्विधेन अशुभेन करणेन नैरयिका: करणत: असातां वेदनां वेदयन्ति, नो अकरणतः।
तत् सेनार्थेन।
असुरकुमाराः किं करणतः ? अकरणतः ? गौतम ! करणतः, नो अकरणतः ।
तत् केनार्थेन
गौतम ! असुरकुमाराणां चतुर्विधं करणं प्रज्ञप्तम्, तद्यथा मनः करणं, वावरणं, कायकरणं, कर्मकरणम् । इत्येतेन शुभेन करणेन असुरकुमाराः करणतः सातां वेदनां वेदयन्ति नो अकरणतः |
एवं बावत् स्तनितकुमाराः ।
१२. एवं जाव थणियकुमारा।।
१३. पुढवीकाइयाणं एवामेव पुच्छा, नवरं पृथ्वीकायिकानाम् एवमेव पृच्छा, नवरं इच्चेणं सुभासुभेणं करणेणं पुढविक्काइया इत्येतेन शुभाशुभेन करणेन पृथ्वीकायिकाः करणओ वेमाया वेदणं वेदेंति, नो अकरण- करणत: विमात्रया वेदनां वेदयन्ति, नो
ओ ॥
अकरणतः।
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श. ६ : उ. १: सू. ७-१३
कायकरण और कर्मकरणा विकलेन्द्रिय जीवों के करण तीन प्रकार के हैं वचनकरण, कायकरण और कर्मकरण ।
८. भन्ते ! क्या नैरयिक जीव करण से असात वेदना का वेदन करते हैं अथवा अकरण से असातवेदना का वेदन करते हैं?
गौतम ! नैरविक जीव करण से असातवेदना का वेदन करते हैं, अकरण से असातवेदना का वेदन नहीं करते।
९. यह किस अपेक्षा से?
गौतम! नैरयिक जीवों के चार प्रकार के करण प्रज्ञप्त हैं, जैसे—मनकरण, वचनकरण, कायकरण और कर्मकरणा इस चतुर्विध अशुभकरण के आधार पर यह कहा जाता है—नैरयिक जीव करण से असात वेदना का वेदन करते हैं, अकरण से असात वेदना का वेदन नहीं करते।
इस अपेक्षा से।
१०. असुरकुमार देव क्या करण से वेदना का वेदन करते हैं? अथवा अकरण से?
गौतम ! वे करण से वेदना का वेदन करते हैं, अकरण से वेदना का वेदन नहीं करते
११. यह किस अपेक्षा से?
गौतम ! असुरकुमार देवों के करण चार प्रकार के प्रज्ञप्त हैं, जैसे-मनकरण, वचनकरण, कायकरण और कर्मकरण। इस शुभ करण के आधार पर कहा जाता है—असुरकुमार देव करण से सातवेदना का वेदन करते हैं, अकरण से सात वेदना का वेदन नहीं करते।
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१२. इसी प्रकार यावत् स्तनितकुमार देवों की वक्तव्यता |
१३. पृथ्वीकायिक जीवों की पृच्छा इसी प्रकार है, केवल इतना अन्तर है इस शुभाशुभ करण के आधार पर कहा जाता है— पृथ्वीकाविक जीव करण से विमात्र -कभी सात कभी असात वेदना का वेदन करते हैं, अकरण से विमात्र वेदना का वेदन नहीं करते ।
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