SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 252
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भगवई आगम- साहित्य का बहुत बडा भाग विस्मृति में चला गया। उसकी अगाध ज्ञानराशि में जो शेष रहा, उसमें प्रस्तुत आगम का विशेष महत्त्व है। इसमें तमस्काय, कृष्णराज जैसे लोकविद्या के महत्त्वपूर्ण विषय वर्णित हैं। वर्तमान वैज्ञानिकों ने कृष्ण विवर (Black Hole) को खोजा है। तमस्काय को अष्कायिक तथा कृष्णराजी को पृथ्वीकायिक परिणमन बताया गया है। 'वरमूदा त्रिकोण' (त्रिनिडाड समुद्र तट) के रहस्यमय क्षेत्र में यात्रा करने वालों ने जो जानकारी दी है, वह तमस्काय का आभास देने वाली है। घटना ८ अगस्त १९५६ की है— T कोष्टार्ड का एक खोजी और तार बिछाने वाला जहाज 'यामाक्रा' सरगासो समुद्र क्षेत्र की ओर बढ़ रहा था। सरगासो समुद्र क्षेत्र, बरमूदा त्रिकोण के बाहमास क्षेत्र के उत्तर में समुद्री पास, जालों से भरा जलक्षेत्र माना जाता है। यह भी कहा जाता है कि इस जलक्षेत्र के नीचे 'गल्फ स्ट्रीम' तथा अन्य प्रवाही धाराएं सक्रिय हैं जहाजों, नौकाओं आदि के लिए यह क्षेत्र वर्जित और बेहद जोखिम भरा माना जाता है। कहा तो यहां तक जाता है कि बरमूदा त्रिकोण में रहस्यमय ढंग से गायब अथवा नष्ट होने वाले जलयानों, नौकाओं आदि की समाधि इसी जल-क्षेत्र में लगी है। तो यामाक्रा खुले समुद्र में आगे बढ़ रहा था कि अचानक राडार संचालक ने पाया कि जहाज के ठीक सामने अट्ठाइस तीस मील दूर तक एक बहुत बडा मिट्टी का ढेर-सा खड़ा है। उसने अपने अफसर को इसकी सूचना दी। अफसर ने उस ढेर और अपने दिशासूचक यन्त्रों को देखा तो उसे भी लगा कि कुछ गड़बड़ है। जहाज के कैप्टन को भी इस सम्बन्ध में सूचित किया गया, पर उसने जहाज की दिशा नहीं बदली और जहाज आगे बढ़ता गया। कुछ ही घण्टों में जहाज उस मिट्टी के ढेर के बहुत करीब पहुंच गया। पर अब मिट्टी का आभास तो होता था, लेकिन ढेर जैसी ऊंचाई नहीं थी । रोचक और दिलचस्प बात यह थी कि जहाज के शक्तिशाली राडार और सर्चलाइटें यहां बेअसर साबित हो रहे थे। सच तो यह था कि मिट्टी या जमीन भी नहीं थी, लेकिन यह पानी की ऐसी विचित्र सतह थी, जो उत्तर-पूर्व से दक्षिणपूर्व की ओर ऊंचे उठते हुए जमीन के टुकड़े या मिट्टी के ढेर जैसे मालूम दे रही थी। सूनी, ठण्डी मौत की जीतीजागती अनुभूति थी वह। लेकिन 'यामाक्रा' के कप्तान और चालक दल ने विलक्षण साहस का परिचय देते हुए जहाज को आगे बढ़ाना जारी रखा। प्रबंचना भरे इस जल क्षेत्र में प्रवेश करते ही जहाज की तमाम बत्तियां गुल हो गई। ऐसा घना, ठोस अंधेरा कि बेहद तेज जलने वाली कार्बन आर्क बत्तियां भी एक बुझती चिनगारी से ज्यादा चमकदार नहीं रह गई थी। चालक दल के सदस्यों में खांसी का ऐसा दौर चला कि रोके नहीं रुका। जहाज के इंजन में 'स्टीम प्रेशर' खत्म होने लगा। हारकर कैप्टन को जहाज मोड़ने और लौट चलने का आदेश देना पड़ा। अनुमान से सब काम किया गया लेकिन कई घण्टे जीवन-मृत्यु से जूझते इस जहाज के लोगों को जब सुबह की रोशनी मिली तब उनके आश्चर्य की सीमा नहीं रही कि दूर दराज तक उस प्रवंचना का कोई नामों निशान नहीं था । " श. ६ : आमुख मृत्युकालीन अनुभवों का संकलन परामनोविज्ञान का एक महत्त्वपूर्ण विषय है। इस सन्दर्भ में मारणान्तिक समुद्घात का सिद्धान्त अनुसन्धेय है। उससे अनेक रहस्य अनावृत होते हैं। २३० गणनाकाल, गणनातीतकाल, कालचक्र, वैक्रियशक्ति द्वारा रूप निर्माण आदि अनेक महत्त्वपूर्ण विषय प्रस्तुत शतक में निरूपित हैं। प्रस्तुत आगम की रचना-शैली से पता चलता है कि देवर्धिगणी के समय में इसमें अनेक पाठ संकलित किए गए। कुछ सूत्र अक्षरश: पुनरावृत्त हैं केवली इन्द्रियों से नहीं जानता देखता यह पांचवे शतक में भी है।' तत्त्वज्ञान के गंभीर प्रतिपादन की दृष्टि से प्रत्येक शतक एक स्वतन्त्र ग्रन्थ है। ---- Jain Education International १. साप्ताहिक हिन्दुस्तान, ९ सितम्बर, १९७९ में 'बरमूदा त्रिकोण नए पुराने कितने कोण' लेख, लेखक सुधीर सैन। २. भ. ६ / १२२-१२७ ३. वही, ५/१०८, १०९ ६ / १८७, १८८ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003594
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02 Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2000
Total Pages596
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy