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श.५: उ.९: सू.२३७-२४७
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भगवई
२४०. से केणटेणं ?
तत् केनार्थेन? गोयमा ! नेरइयाणं असुभा पोग्गला असुभे गौतम ! नैरयिकाणाम् अशुभा: पुद्गला: पोग्गलपरिणामे। से तेणटेणं॥
अशुभ: पुद्गलपरिणाम:। तत् तेनार्थेन ।
२४०. यह किस अपेक्षा से?
गौतम! नैरयिक जीवों के अशुभ-पुद्गल होते हैं और पुद्गलों का परिणमन अशुभ होता है—यह इस अपेक्षा से।
२४१. असुरकुमाराणं भंते! किं उज्जोए? अंध-
यारे?
असुरकुमाराणां भदन्त ! किम् उद्द्योत:? २४१. भंते! असुरकुमार देवों के क्या उद्द्योत होता अन्धकार:?
है? अथवा अन्धकार? गौतम! असुरकुमाराणाम् उद्द्योतः, नो गौतम ! असुरकुमार देवों के उद्द्योत होता है, अन्धकारः।
अन्धकार नहीं होता।
गोयमा ! असुरकुमाराणं उज्जोए, नो अंधयारे॥
२४२. से केणटेणं?
तत् केनार्थेन? गोयमा ! असुरकुमाराणं सुभा पोग्गला सुभे गौतम ! असुरकुमाराणां शुभाः पुद्गला: पोग्गलपरिणामे। से तेणटेणं । जाव थणिय- शुभ: पुद्गलपरिणाम:। तत् तेनार्थेन । यावत् कुमाराणं ।
स्तनितकुमाराणाम्।
२४२. यह किस अपेक्षा से? गौतम ! असुरकुमार देवों के शुभ पुद्गल होते हैं,
और पुद्गलों का परिणमन शुभ होता है—यह इस अपेक्षा से। यावत् स्तनितकुमार देवों तक यही वक्तव्यता है।
२४३. पुढविक्काइया जाव तेइंदिया जहा ने- पृथिवीकायिका: यावत् त्रीन्द्रियाः यथा २४३. पृथ्वीकायिक यावत् त्रीन्द्रिय जीवों की वक्तव्यता रइया।
नैरयिकों की भांति ज्ञातव्य है।
नैरयिका
२४४. चउरिदियाणं भंते! किं उज्जोए? अंध- चतुरिन्द्रियाणां भदन्त ! किम् उद्योतः? २४४. भंते! चतुरिन्द्रिय जीवों के क्या उद्योत होता यारे?
अन्धकार:?
है? अथवा अन्धकार? गोयमा ! उज्जोए वि, अंधयारे वि॥ गौतम ! उद्द्योतोऽपि, अन्धकारोऽपि। गौतम ! उद्द्योत भी होता है, अन्धकार भी होता है।
२४५. से केणद्वेणं?
तत् केनार्थेन? गोयमा! चउरिदियाणं सुभासुभा य पोग्गला गौतम ! चतुरिन्द्रियाणां शुभाशुभाश्च पुद्- सुभासुभे य पोग्गलपरिणामे। से तेणटेणं ।। गला: शुभाशुभश्च पुद्गलपरिणामः। तत्
तेनार्थेन।
२४५. यह किस अपेक्षा से? गौतम ! चतुरिन्द्रिय जीवों के शुभ और अशुभ दोनों प्रकार के पुद्गल होते हैं और पुद्गलों का परिणमन शुभ और अशुभ दोनों प्रकार का होता है—यह इस अपेक्षा से।
२४६. एवं जाव मणुस्साणं॥
एवं यावन् मनुष्याणाम्।
२४६. इसी प्रकार यावत् मनुष्यों की वक्तव्यता।
२४७. वाणमंतर-जोइस-वेमाणिया जहा वानमन्तर-ज्योतिष्क-वैमानिकाः यथा २४७. वानमन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिक देवों की असुरकुमारा॥ असुरकुमाराः।
वक्तव्यता असुरकुमारों की भांति ज्ञातव्य है।
भाष्य
१. सूत्र २३७-२४७
उद्द्योत और अन्धकार दोनों पुद्गल के विशेष परिणमन हैं। पुद्गलों के शुभ परिणमन को प्रकाशात्मक होने के कारण उद्द्योत और उनके अशुभ परिणमन को तमोमय होने के कारण अन्धकार कहा गया है।
दिन में सूर्यरश्मियों के सम्पर्क से पुद्गलों का परिणमन शुभ होता है। इसलिए दिन में उद्योत होता है। रात्रि में सूर्य-रश्मि तथा अन्य प्रकाशक वस्तुओं के अभाव में पुद्गलों का परिणमन अशुभ हो जाता है।
प्रस्तुत आलापक में उद्योत और अन्धकार का अनेक अपेक्षाओं से
१. भ.वृ. ५/२३८-दिवसे शुभा: पुद्गला भवन्ति, किमुक्तं भवति? -शुभः पुद्गलपरिणाम: स चार्ककरसम्पर्कात् ।
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