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________________ श.५: उ.८:सू.२२६-२३३ २१४ भगवई गोयमा ! सिद्धा सोवचया, नो सावचया, नो गौतम ! सिद्धासोपचया:, नो सापचयाः, नो सोवचय-सावचया, निरुवचय-निरवचया।। सोपचय-सापचया:, निरुपचय-निरपचयाः। गौतम ! सिद्ध उपचय-सहित हैं, अपचय-सहित नहीं है, उपचय-अपचय-सहित नहीं है, उपचय और अपचय से रहित हैं। २२७. जीवा णं भंते ! केवतियं कालं निरुव- जीवा: भदन्त ! कियन्तं कालं निरुपचय- २२७. भन्ते ! जीव कितने काल तक उपचय और चय-निरवचया? निरपचया:? अपचय से रहित होते हैं? गोयमा! सव्वद्ध। गौतम ! सर्वाद्धा। गौतम ! सर्वकाल। २२८. नेरइया णं भंते ! केवतियं कालं सोव- नैरयिका: भदन्त ! कियन्तं कालं सोपचया:? २२८. भन्ते ! नैरयिक जीव कितने काल तक उपचयचया? सहित होते हैं? गोयमा ! जहण्णेणं एक्कं समय, उक्कोसेणं गौतम ! जघन्येन एक समयम्, उत्कर्षेण गौतम ! जघन्यतः एक समय, उत्कर्षत: आवलिका आवलियाए असंखेज्जइभागं । आवलिकाया: असंख्येयभागम् । के असंख्यातवें भाग तक। २२९. केवतियं कालं सावचया? कियन्तं काल सापचया:? २२९. भन्ते ! नैरयिक जीव कितने काल तक अपचयसहित होते हैं? जघन्यतः एक समय, उत्कर्षत: आवलिका के असंख्यातवें भाग तक। एवं चेव॥ एवं चैव। २३०. केवतियं कालं सोवचय-सावचया? कियन्तं कालं सोपचय-सापचया:? २३०. भन्ते ! नैरयिक जीव कितने काल तक उपचय और अपचय से सहित होते हैं? जघन्यत: एक समय, उत्कर्षत: आवलिका के असंख्यातवें भाग तक। एवं चेव॥ एवं चेव। २३१. केवतियं कालं निरुवचय-निरवचया? कियन्तं कालं निरुपचय-निरपचया:? गोयमा! जहण्णेणं एक्कं समय, उक्कोसेणं गौतम! जघन्येन एक समयम्, उत्कर्षेण द्वादश बारस मुहुत्ता। मुहुर्तान्। एगिदिया सव्वे सोवचय-सावचया सव्वद्ध। एकेन्द्रियाः सर्वे सोपचय-सापचया: सर्वाद्धा। सेसा सव्वे सोवचया वि, सावचया वि, शेषा: सर्वेसोपचया: अपि, सापचयाः अपि, सोवचय-सावचया वि, जहण्णेणं एक्कं सोपचय-सापचया: अपि, जघन्येन एक समयं, उक्कोसेणं आवलियाए असंखज्ज- समयम्, उत्कर्षेण आवलिकाया: असंख्येयइभाग। अवट्टिएहिं वक्कं तिकालो भाणि- भागम्। अवस्थितै: व्युत्क्रान्तिकाल: भणियन्वो॥ तव्यः । २३१. भन्ते ! नैरयिक जीव कितने काल तक उपचय और अपचय से रहित होते हैं? गौतम ! जघन्यत: एक समय, उत्कर्षत: बारह मुहूर्त तक। सभी एकेन्द्रिय जीव सब काल में उपचय- और अपचय-सहित होते हैं। शेष सभी जीव उपचयसहित भी हैं, अपचय-सहितभी हैं, उपचय-अपचय-सहित भी हैं। इसकी कालावधि-जघन्यत: एक समय, उत्कर्षत: आवलिका का असंख्यातवां भाग। अवस्थित रहने का काल विरह-काल (सू.५/२२२) की भांति वक्तव्य है। २३२. सिद्धा णं भंते ! केवतियं कालं सोव- सिद्धा: भदन्त ! कियन्तं कालं सोपचया:? २३२. भन्ते ! सिद्ध कितने काल तक उपचय-सहित होते हैं? गोयमा ! जहण्णेणं एग समय, उक्कोसेणं गौतम! जघन्येन एक समयम्, उत्कर्षेण अष्ट गौतम ! जघन्यत: एक समय,उत्कर्षत: आठ समय अट्ठसमया। समयान्। तक। चया? २३३. केवतियं कालं निरुवचय-निरवचया? कियन्तं कालं निरुपचय-निरपचया:? २३३, भन्ते ! सिद्ध कितने समय तक उपचय-अपचय Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003594
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02 Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2000
Total Pages596
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size20 MB
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