________________
भगवई
२११
श.५ : उ.८ : सू.२१६-२२२
अट्ठमासा, तमतमाए बारस मासा ।।
तमायाम् अष्टमासान, तमतमायां द्वादश, मासान्।
आठ मास और तमतमा पृथ्वी में बारह मास तक अवस्थित रहते हैं।
२१७. असुरकुमारा वि वड्दति, हायंति जहा असुरकुमारा: अपि वर्धन्ते, हीयन्ते यथा २१७. असुरकुमार देव भी नैरयिक जीवों की भांति नेरइया। अवट्ठिया जहण्णेणं एक्कं समयं, नैरयिकाः। अवस्थिता: जघन्येन एकं सम- बढ़ते-घटते हैं उक्कोसेणं अट्ठचत्तालीस मुहत्ता। यम्,उत्कर्षेण अष्टचत्वारिंशत् मुहुर्तान्। अड़तालीस मुहूर्त तक अवस्थित रहते हैं।
२१८. एवं दसविहा वि॥
एवं दशविधा अपि।
२१८. इसी प्रकार दस प्रकार के भवनपति देवों का वृद्धिहानि- और अवस्थिति-काल वक्तव्य है।
२१९. एगिदिया वड्ढेति वि, हायंति वि, एकेन्द्रिया: वर्धन्तेऽपि, हीयन्तेऽपि, अव- २१९. एकेन्द्रिय जीव बढ़ते भी हैं, घटते भी हैं और
अवट्ठिया वि। एएहिं तिहि विजहण्णेणं एक्कं स्थिता: अपि। एतैस्त्रिभिरपि जघन्येन एकं अवस्थित भी हैं। इन तीनों की वृद्धि, हानि और समयं, उक्कोसेणं आवलियाए असंखे- समयम्, उत्कर्षेण आवलिकाया: असंख्ये- अवस्थिति का काल जघन्यत: एक समय और ज्जइभागं ॥ यतम भागम्।
उत्कर्षत: आवलिका का असंख्यातवां भाग है।
२२०. बेइंदिया वड्दति, हायति तहेव, द्वीन्द्रिया: वर्धन्ते हीयन्ते तथैव, अवस्थिताः २२०. द्वीन्द्रिय जीव एकेन्द्रिय जीवों की भांति बढ़तेअवट्ठिया जहण्णेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं जघन्येन एक समयम्, उत्कर्षेण द्वौ अन्त- घटते हैं। वे जघन्यत: एक समय और उत्कर्षत: दो दो अंतोमुहुत्ता ॥ र्मुहूर्तों।
अन्तर्मुहूर्त तक अवस्थित रहते हैं।
२२१. एवं जाव चउरिदिया।
एवं यावच् चतुरिन्द्रिया:।
२२१. चतुरिन्द्रिय जीवों तक वृद्धि, हानि और अवस्थिति का यही क्रम ज्ञातव्य है।
२२२. अवसेसा सव्वे 'वड्दति, हायंति' तहेव, अवशेषाः सर्वे 'वर्धन्ते हीयन्ते' तथैव, २२२. अवशेष सब जीव एकेन्द्रिय जीवों की भांति
अवट्ठियाणं नाणतं इम, तं जहा—संमु- अवस्थितानां नानात्वम् इदम्, तद् यथा बढ़ते-घटते हैं। अवस्थिति का नानात्व इस प्रकार है, च्छिमपंचिंदियतिरिक्खजोणियाणं दो अंतो- -सम्मूर्छिमपञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकानां ___जैसे-सम्मूर्छिम पंचेन्द्रिय तिर्यग्योनिक-दो मुहुत्ता, गब्भवक्कंतियाणं चउव्वीस मुहुत्ता, द्वौअन्तर्मुहौ, गर्भव्यत्क्रान्तिकानां चतुर्विं- अन्तमुहूर्त, गर्भज पंचेन्द्रिय तिर्यग्योनिक-चौबीस संमुच्छिममणुस्साणं अट्ठचत्तालीसं मुहुत्ता, शति: मुहूर्ताः, सम्मूर्च्छिममनुष्याणां अष्ट- मुहूर्त, सम्मूर्छिम मनुष्य-अड़तालीस मुहूर्त, गर्भज गब्भवक्कं तियमणुस्साणं चउवीसं मुहुत्ता, चत्वारिंन्दमुहूर्ताः, गर्भव्युत्क्रान्तिक मनु- मनुष्य-चौबीस मुहूर्त, वानमन्तर, ज्योतिष्क, वाणमंतर-जोतिसिय-सोहम्मीसाणेसु अट्ठ- ष्याणां चतुर्विशंति: मुहर्ता:, वानमन्तर- सौधर्म और ईशान देवलोक में अड़तालीस मुहूर्त, चत्तालीसं मुहत्ता, सणंकुमारे अट्ठारस राई- ज्योतिष्क-सौधर्मेशानेषु अष्टचत्वारिंश- सनत्कुमार देवलोक में अठारह दिन-रात और चालीस दियाइं चत्तालीस य मुहुत्ता, माहिंदे चउवीसं न्मुहूर्ताः, सनत्कुमारे अष्टादश रात्रिंदिवानि ____ मुहर्त, माहेन्द्र देवलोक में चौबीस दिन-रात और बीस राइंदियाई वीस य मुहुत्ता, बंभलोए पंच- चत्वारिंशच्च मुहूर्ताः, माहेन्द्रे चतुर्विशंतिः मुहूर्त, ब्रह्मलोक देवलोक में पैंतालीस दिन-रात, चत्तालीस राइंदियाई, लंतए नउई राई- रात्रिंदिवानि विंशतिश्च मुहूर्ताः, ब्रह्मलोके लान्तक देवलोक में नव्वे दिन-रात । महाशुक्र देवलोक दियाई, महासुक्के सट्टि राइंदियसयं, सह- पंचचत्वारिंशद् रात्रिंदिवानि, लान्तके में एक सौ साठ दिन-रात, सहस्रार देवलोक में दो सौ स्सारे दो राइंदियसयाई, आणयपाणयाणं नवतिः रात्रिंदिवानि, महाशुक्रे षष्टिः रात्रिं- दिन-रात, आनत और प्राणत देवलोकों में संख्येय संखेज्जा मासा, आरणच्चुयाणं संखेज्जाई दिवशतं, सहस्रारे द्वे रात्रिंदिवशते, आनत- मास, आरण और अच्युत देवलोकों में संख्येय वर्ष, वासाई, एवं गेवेज्जदेवाणं, विजय-वेजयंत- प्राणतयो: संख्येया: मासा:, आरणाच्युतयोः इसी प्रकार ग्रैवेयक देवों या देवलोकों में, विजय, जयंत-अपराजियाणं असंखेज्जाई वासस- संख्येयानि वर्षाणि, एवं ग्रैवेयकदेवानां, वैजयन्त, जयन्त और अपराजित देवलोकों में हस्साई, सव्वट्ठसिद्धे पलिओवमस्स संखे- विजय-वैजयन्त-जयन्तापराजितानाम् असं- असंख्येय हजार वर्ष तथा सर्वार्थसिद्ध में पल्योपम ज्जइभागो।
ख्येयानि वर्षसहस्राणि, सर्वार्थसिद्धे पल्यो- का संख्यातवां भाग अवस्थिति-काल है। पमस्य संख्येयभागः।
Jain Education Intemational
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org