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भगवई
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श.५ : उ.८: सू.२०१-२०८
अप्रदेश और अनेक-प्रदेशावगाढ पुद्गल सप्रदेश होता है।
है। जो भाव की अपेक्षा से अप्रदेश है, वह द्रव्य, क्षेत्र, काल की अपेक्षा से कालादेश-काल की अपेक्षा से एक समय की स्थिति वाला स्यात् अप्रदेश है और स्यात् सप्रदेश। पुद्गल अप्रदेश और अनेक समय की स्थिति वाला पुद्गल सप्रदेश १. द्रव्य की अपेक्षा से सप्रदेश और अप्रदेश का नियम होता है।
द्रव्य की अपेक्षा जो सप्रदेश है उसका आकाश के एक प्रदेश में भी भावादेश–एक गुण वर्ण, गन्ध, रस, स्पर्श वाला पुद्गल अप्रदेश अवगाहन हो सकता है, अनेक प्रदेशों में भी अवगाहन हो सकता है, अत: क्षेत्र , और अनेक गुण, वर्ण गन्ध, रस, स्पर्श वाला पुद्गल सप्रदेश होता है। की अपेक्षा से वह स्यात् अप्रदेश है, स्यात् सप्रदेश है। परिमाण की दृष्टि से ये सभी अनन्त हैं।
काल और भाव की अपेक्षा से वह सप्रदेश और अप्रदेश दोनों १. द्रव्य की अपेक्षा से अप्रदेश और सप्रदेश का नियम प्रकार का हो सकता है। (क) द्रव्य की अपेक्षा से जो अप्रदेश है, वह क्षेत्र की अपेक्षा से
२. क्षेत्र की अपेक्षा से सप्रदेश और अप्रदेश का नियम नियमत: अप्रदेश होगा। इसका हेतु यह है कि परमाणु आकाश के एक प्रदेश द्रव्य की अपेक्षा से अप्रदेश-परमाणु का आकाश के दो तथा दो से का ही अवगाहन करता है।
अधिक प्रदेशों में अवगाहन नहीं हो सकता, इसलिए जो क्षेत्र की अपेक्षा से (ख) काल की अपेक्षा से वह एक समय की स्थिति वाला और सप्रदेश है, वह द्रव्य की अपेक्षा से नियमत: सप्रदेश होगा। अनेक समय की स्थिति वाला दोनों प्रकार का हो सकता है, इसलिए वह ३,४. काल और भाव की अपेक्षा से सप्रदेश और अप्रदेश स्यात् अप्रदेश और स्यात् सप्रदेश है।
का नियम (ग) भाव की अपेक्षा से वह एक गुण वर्ण आदि वाला तथा अनेक काल और भाव की वक्तव्यता द्रव्य के समान है। गुण वर्ण आदि वाला दोनों हो सकता हैं, इसलिए वह स्यात् अप्रदेश और सप्रदेश और अप्रदेश का अल्प-बहुत्व स्यात् सप्रदेश है।
१. एक गुण वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श वाले पुद्गल बहुत अल्प २. क्षेत्र की अपेक्षा से अप्रदेश और सप्रदेश का नियम होते हैं। अत: भाव की अपेक्षा से अप्रदेश पुद्गल सबसे अल्प होते हैं।
(क) एक आकाश प्रदेश में एक परमाणु का भी अवगाहन हो २. काल की अपेक्षा से एक समय-स्थिति वाले पुद्गल अनेक सकता है तथा द्विप्रदेशी स्कन्ध से लेकर अनन्तप्रदेशी स्कन्ध का भी अवगा- परिणमन-वर्ण, गन्ध, रस, स्पर्श, संघात, भेद, सूक्ष्मत्व, बादरत्व आदि हन हो सकता है, इसलिए वह स्यात् अप्रदेश और स्यात् सप्रदेश है। परिणमन वाले होते हैं। प्रत्येक परिणमन में एक समय की स्थिति की अपेक्षा
(ख, ग) काल और भाव की वक्तव्यता द्रव्य के समान है। आकाश से अप्रदेश होते हैं अत: भावादेश की अपेक्षा कालादेश के अप्रदेश के एक प्रदेश में अवगाढ पुद्गल काल की अपेक्षा से एक समय की स्थिति असंख्येयगुना होते हैं।' वाला भी हो सकता है और अनेक समय की स्थिति वाला भी हो सकता है।
३. द्रव्य की अपेक्षा से परमाणु अप्रदेश है। एक गुण वर्ण आदि भाव की अपेक्षा से वह एक गुण वर्ण, गन्ध, रस, स्पर्श वाला भी वाले परमाणुओं की अपेक्षा अनेक गुण वर्ण आदि वाले परमाणु अधिक हो सकता है अनेक गुण वर्ण, गन्ध, रस, स्पर्श वाला भी हो सकता है। होते हैं। इस अपेक्षा से द्रव्यादेश वाले अप्रदेश असंख्येयगुना अधिक हैं।
३,४. काल और भाव की अपेक्षा से अप्रदेश और सप्रदेश 'प्रदेश' शब्द का प्रयोग सबसे छोटी इकाई परमाणु तुल्य भाग के का नियम
अर्थ में और स्कन्ध के अर्थ में भी होता है। स्कन्ध में संलग्न एक परमाणु काल और भाव की वक्तव्यता क्षेत्र के समान है। जो काल की प्रदेश कहलाता है। आकाश का परमाणु-तुल्य भाग प्रदेश कहलाता है। काल अपेक्षा से अप्रदेश है, वह द्रव्य की अपेक्षा स्यात् अप्रदेश आर स्यात् सप्रदेश और भाव के सन्दर्भ में भी 'प्रदेश' का प्रयोग किया गया है। तत्त्वार्थसूत्र में
स्कन्ध के अर्थ में भी 'प्रदेश' शब्द का प्रयोग किया गया है। क्षेत्र और भाव की अपेक्षा से भी स्यात् अप्रदेश और स्यात् सप्रदेश
जीवाणं वुढि-हाणि-अवट्ठिइ-पदं जीवानां वृद्धि-हानि-अवस्थिति- जीवों की वृद्धि-हानि-अवस्थिति-पद
पदम् २०८. भंतेत्ति ! भगवं गोयमे समणं भगवं भदन्त ! अयि! भगवान गौतमः श्रमणं २०८. 'भन्ते ! इस सम्बोधन से सम्बोधित कर भगवान महावीरं वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं भगवन्तं महावीरं वन्दते नमस्यति, वन्दित्वा गौतम श्रमण भगवान महावीर को वन्दन-नमस्कार वयासी-जीवा ण भते ! कि वड्ढति? नमस्यित्वा एवमवादीज-जीवा: भदन्त! करते है, वन्दन-नमस्कार कर उन्होंने इस प्रकार कहा
१. भ.वृ. ५/२०५–'अणंत' ति तत्परिमाणज्ञापनपरं तत् स्वरूपाभिधानम्। २. भ.वृ. ५/२०६-द्रव्ये प्रायेणद्वयादिगुणा अनन्तगुणान्ता: कालकत्वादया भवन्ति एक- गुणकालकादयस्त्वल्पा इति भावः। अयमर्थ:-योहि यस्मिन् समये यद्वर्णगन्धरसस्पर्श- सहातभेदसूक्ष्मत्वबादरत्वादिपरिणामान्तरमापन्नः स तस्मिन् समये तदपेक्षया कालतोऽप्रदेश
उच्यते, तत्र चैकसमयस्थितिरित्यन्ये, परिणामश्च बहव इति प्रतिपरिणामं कालापदेशसंभवात्तद्वलत्वमिति। एतदेवभाव्यते-भावतो येऽप्रदेशा एक गुणकालत्वादयो भवन्ति ते कालतो द्विविधा अपि भवन्ति--सप्रदेशा अप्रदेशाश्चेत्यर्थः। ३.त.सू. २/३९–प्रवृद्धो देश: प्रदेश:, अनन्ताणस्कन्धः प्रदेशोऽत्राभिधीयते।
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