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श.५:उ.८:सू.२०१-२०७
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भगवई
जे दव्वओ सपएसे से खेत्तओ सिय सपएसे, य: द्रव्यत:सप्रदेश:सक्षेत्रत :स्यात् स-प्रदेश:, सिय अपएसे। एवं कालओ, भावओ वि। याद् अप्रदेशः। एवं कालतः,भावत: अपि।
जे खेत्तओ सपएसे से दव्वओ नियमा स- य: क्षेत्रत: सप्रदेश: स द्रव्यत: नियमात् पएसे, कालओ भयणाए, भावओ भय- सप्रदेश:, कालत: भजनया, भावत: भजनया। णाए।
जो पुद्गल द्रव्य की अपेक्षा से सप्रदेश है, वह क्षेत्र की अपेक्षा से स्यात् सप्रदेश है, स्यात् अप्रदेश है। इसी प्रकार काल और भाव की अपेक्षा से भी वह स्यात् सप्रदेश है, स्यात् अप्रदेश है। जो पुद्गल क्षेत्र की अपेक्षा से सप्रदेश है, वह द्रव्य की अपेक्षा से नियमत: सप्रदेश है। काल की अपेक्षा से भजना है-वह स्यात् सप्रदेश है, स्यात् अप्रदेश है। भाव की अपेक्षा से भजना है— स्यात् सप्रदेश है, स्यात् अप्रदेश है। जैसे द्रव्य की दृष्टि से सप्रदेश की वक्तव्यता है, वैसे ही काल और भाव की दृष्टि से सप्रदेश की वक्तव्यता
जहा दव्वओ तहा कालओ, भावओ वि॥ यथा द्रव्यत: तथा कालत:, भावत: अपि।
वा?
२०६. एएसि णं भंते ! पोग्गलाणं दव्वादेसेणं, एतेषां भदन्त ! पुद्गलानां द्रव्यादेशेन, २०६. भन्ते ! इन द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव की अपेक्षा
खेत्तादेसेणं, कालादेसेणं, भावादेसेण क्षेत्रादेशेन, कालादेशेन, भावादेशेन सप्रदे- से सप्रदेश और अप्रदेश पुद्गलों में कौन किससे सपएसाणं अपएसाण य कयरे कयरेहिंतो शानाम् अप्रदेशानां च कतरे कतरेभ्यः अल्पा: कम हैं, अधिक हैं, तुल्य हैं अथवा विशेषाधिक हैं? अप्पा वा? बहुया वा? तुल्ला वा? विसे- वा? बहुका: वा? तुल्याः वा? विशेषाधिका: साहिया वा? नारयपुत्ता ! सव्वत्थोवा पोग्गला भावा- नारदपुत्र ! सर्वस्तोका: पुद्गला: भावादेशेन नारदपुत्र! भाव की अपेक्षा से अप्रदेश पुद्गल सबसे देसेणं अपएसा, कालादेसेणं अपएसा अप्रदेशाः, कालादेशेन अप्रदेशाः अल्प है, काल की अपेक्षा से अप्रदेश पुद्गल उनसे असंखेज्जगुणा, दव्वादेसेणं अपएसा असंख्येयगुणाः, द्रव्यादेशेन अप्रदेशा: असंख्येयगुना अधिक हैं, द्रव्य की अपेक्षा से अप्रदेश असंखेज्जगुणा, खेत्तादेसेणं अपएसा असंख्येयगुणाः, क्षेत्रादेशेन अप्रदेशाः पुद्गल उनसे असंख्येयगुना अधिक हैं, क्षेत्र की असंखेज्जगुणा, खेत्तादेसेणं चेव सपएसा असंख्येयगुणाः, क्षेत्रादेशेन चैव सप्रदेशा: अपेक्षा से अप्रदेश पुद्गल उनसे असंख्येयगुना असंखेजगुणा, दव्वादेसेणं सपएसा असंख्येयगुणाः, द्रव्यादेशेन सप्रदेशाः अधिक हैं। क्षेत्र की अपेक्षा से सप्रदेश पुद्गल उनसे विसेसाहिया, कालादेसेणं सपएसा विशेषाधिकाः, कालादेशेन सप्रदेशा: असंख्येयगुना अधिक हैं, द्रव्य की अपेक्षा से सप्रदेश विसेसाहिया, भावादेसेणं सपएसा विशेषाधिकाः, भावादेशेन सप्रदेशा: पुद्गल उनसे विशेषाधिक हैं, काल की अपेक्षा से विसेसाहिया॥ विशेषाधिका:।
सप्रदेश पुद्गल उनसे विशेषाधिक हैं, भाव की अपेक्षा से सप्रदेश पुद्गल उनसे विशेषाधिक हैं।
२०७. तए णं से नारयपुत्ते अणगारे नियंठिपुत्तं ततः स नारदपुत्र: अनगार: निर्ग्रन्थीपुत्रम्
अणगार वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता अनगारं वन्दते नमस्यति, बन्दित्वा नमस्यित्वा एयमहँ सम्मं विणएणं भुज्जो-भुज्जो एतमर्थम् सम्यग् विनयेनभूयो-भूय: क्षमयति, खामेति, खामेत्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं क्षमयित्वा संयमेन तपसा आत्मानं भावयन् भावेमाणे विहरइ॥
विहरति।
२०७. अनगार नारदपुत्र अनगार निर्ग्रन्थीपुत्र को वन्दन-नमस्कार करता है, वन्दन-नमस्कार कर इस अर्थ-बोध को देने में हुई परिश्रान्ति के लिए सम्यक् विनयपूर्वक बार-बार क्षमा-याचना करता है। क्षमायाचना कर संयम और तप से अपने आपको भावित करता हुआ विहरण कर रहा है।
भाष्य
१. सूत्र २०१-२०७
—नयों से विमर्श किया गया हैभ. ५/१६०-१६४ में परमाणु और स्कन्ध के स-अर्ध, स
द्रव्यादेश-द्रव्य की अपेक्षा से एक परमाणु अप्रदेश और मध्य और सप्रदेश होने के विषय में विमर्श हुआ है। प्रस्तुत आलापक में उसी द्विप्रदेशी आदि स्कन्ध सप्रदेश होते हैं। विषय पर द्रव्यादेश, क्षेत्रादेश, कालादेश और भावादेश—इन चार दृष्टियों क्षेत्रादेश-क्षेत्र की अपेक्षा से एकप्रदेशावगाढ पुद्गल
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