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भगवई
२०३
श.५: उ.७: सू.१८२-१९७
खातिका वह खाई जो ऊपर से चौड़ी और नीचे से संकड़ी होती
परिखा-वह खाई जो ऊपर और नीचे समान रूप से खोदी गई है। नगर या दुर्ग को दुर्गम बनाने के लिए उसके चारों ओर खोदी जाने वाली खाई।
प्राकार--परकोटा, नगर या कीले के चारों ओर रक्षा के लिए बनाई जाने वाली दीवार।
अट्टालक-कीले का बुर्ज, प्राकार पर बनाया जाने वाला आश्रयस्थान।
चरिका गृह और प्राकार का मध्यवर्ती भाग।' गोपुर-नगर का मुख्य द्वार।
प्रासाद—देव अथवा राजा का भवन अथवा बहुमंजिला भवन। सरण घास की झोंपड़ी। आपण दुकान।
शृंगाटक आदि शब्दों के लिए द्रष्टव्य भ. २/३० का भाष्य।
युग्य आदि शब्दों के लिए द्रष्टव्य भ. ३/१६४ का भाष्या लौही तवा लोहकडाह—लौह की कड़ाई। कडुच्छुय-करछी।
' हेउ-पदं
हेतु-पदम् १९१. पंच हेऊ पण्णत्ता, तं जहा—हेउं जाणइ, पंच हेतवः प्रज्ञप्ता:, तद् यथा-हेतुं जा- हेउं पासइ, हेउं बुज्झइ, हेउं अभिसमा- नाति, हेतुं पश्यति, हेतुं बुध्यते, हेतुम् गच्छइ, हेउं छउमत्थमरणं मरइ।। अभिसमागच्छति, हेतुं छद्मस्थमरणं
म्रियते।
हेतु-पद १९१. ' हेतु के पांच प्रकार प्रज्ञप्त हैं, जैसे-हेतु को जानता है, हेतु को देखता है, हेतु पर सम्यक् श्रद्धा करता है, हेतु को प्राप्त करता है और सहेतुक छदम्स्थ मरण से मरता है।
१९२. पंच हेऊ पण्णत्ता, तं जहा-हे उणा पंच हेतव: प्रज्ञप्ता:, तद्यथा-हेतुना जा- जाणइ जाव हेउणा छउमत्थमरणं मरहा। नाति, यावत् हेतुना छद्मस्थमरणं म्रियते।
१९२. हेतु के पांच प्रकार प्रज्ञप्त हैं, जैसे—हेतु से जानता है यावत् सहेतुक छद्मस्थमरण से मरता है।
१९३. पंच हेऊ पण्णत्ता, तं जहा–हेउं ण पंच हेतवः प्रज्ञप्ता:, तद् यथा-हेतुं न जाणइ जाव हे अण्णाणमरणं मरइ ।। जानाति यावत् हेतुम् अज्ञानमरणम् म्रियते।
१९३. हेतु के पांच प्रकार प्रज्ञप्त हैं, जैसे-हेतु को नहीं जानता यावत् सहेतुक अज्ञानमरण से मरता है।
१९४. पंच हेऊ पण्णत्ता, तं जहा—हेउणा ण पंच हेतवः प्रज्ञप्ताः, तद् यथा हेतुना न जाणइ जाव हेउणा अण्णाणमरणं मरइ॥ जानाति यावत् हेतुना अज्ञानमरणं म्रियते।
१९४. पांच प्रकार के हेतु (हेतु-पुरुष) प्रज्ञप्त हैं, जैसे—हेतु से नहीं जानता है, यावत हेत से अज्ञानमरण से मरता है।
१९५. पंच अहेऊ पण्णत्ता, तं जहा—अहेउं पंच अहेतव: प्रज्ञप्ता:, तद् यथा--अहेतुं जाणइ जाव अहेउं केवलिमरणं मरइ॥ जानाति यावद् अहेतुं केवलिमरणं म्रियते।
१९५. पांचप्रकार के अहेतुक प्रज्ञप्त हैं, जैसे-निर्हेतुक
पदार्थ को जानता है और निर्हेतुक केवलिमरण से मरता है।
१९६. पंच अहेऊ पण्णत्ता, तं जहा—अहेउणा पंच अहेतवः प्रज्ञप्ता:, तद् यथा-अ- जाणइ जाव अहेउणा केवलिमरणं मरइ॥ हेतुना जानाति यावद् अहेतुना केवलि-
मरणं म्रियते।
१९६. पांच प्रकार के अहेतु प्रज्ञप्त हैं, जैसे-अहेतु से जानता है यावत् निर्हेतुक केवलिमरण से मरता है।
१९७. पंच अहेऊ पण्णत्ता, तं जहा–अहेउं न जाणइ जाव अहेउं छउमत्थमरणं मरइ॥
पंच अहेतवः प्रज्ञप्ता:, तद् यथा-अहे- तुं न जानाति यावद् अहेतुं छद्मस्थमरणं म्रियते।
१९७. पांच प्रकार के अहेतु प्रज्ञप्त हैं, जैसे-अहेतु
को नहीं जानता यावत् निर्हेतुक छद्मस्थमरण से मरता
१. भ.वृ. ५/१८९-'खातिका:' उपरिविस्तीर्णाध: संकटखातरूपाः। २. वही, ५/१८९–परिखा अध उपरिच समखातरूपा:। ३. वही, ५,१८९–'अट्टालगा' त्ति प्राकारोपर्याश्रयविशेषाः। ४. वही, ५/१८९-चरिका गृहप्राकारान्तरो हस्त्यादिप्रचारमार्गः। ५. वही, ५/१८९प्रासादा देवानां राज्ञां च भवनानि, अथवा उत्सेधबहुला:-प्रासादाः।
६. वही, ५/१८९-शरणानि तृणमयावसरिकादीनि। ७. वही, ५/१८९-लौहि - मण्डकादिपचनिका। ८. वही, ५/१८९-लोहकडाहिति कवेल्ली। ९. वही, ५/१८९–कडुच्छुयत्ति परिवेषणाद्यर्थों भाजनविशेष:।
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