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श.५: उ.७ : सू.१९१-१९९
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भगवई
१९८.पंच अहेऊ पण्णत्ता, तं जहा-अहेउणा पंच अहेतव: प्रज्ञप्ता:, तद् यथा-अहेतुना १९८. पांच प्रकार के अहेतु प्रज्ञप्त हैं, जैसे- अहेतु न जाणइ जाव अहेउणा छउमत्थमरणं मरइ॥ न जानाति यावद् अहेतुना छद्मस्थमरणं से नहीं जानता है यावत् निर्हेतुक छद्मस्थमरण से म्रियते।
मरता है।
भाष्य
१. सूत्र १९१-१९८
मरण के अध्यवसान आदि सात हेतु निर्दिष्ट हैं। यहां कार्य-कारण में प्रस्तुत आलापक में चार सूत्र हेतु और चार सूत्र अहेतु से सम्बन्ध अभेदोपचार कर हेतु के कार्य को भी हेतु कहा गया है। है। हेतु का अर्थ है साध्य की सिद्धि का निश्चित साधन, कारण अथवा गमका' समवाओ में निर्दिष्ट मरण के १७ प्रकारों में छद्मस्थ मरण और यह अनुमान का एक अंग है। वैशेषिक दर्शन में हेतु के पर्यायवाची नाम ये हैं केवली मरण का उल्लेख है। उनमें अज्ञानमरण का उल्लेख नहीं है। भगवती,
हेतु, अपदेश, लिंग, प्रमाण और करण। प्रस्तुत प्रकरण में हेतु शब्द का मूलाराधना और उत्तराध्ययननियुक्ति में प्राप्त मरण के वर्गीकरणों में भी प्रयोग हेतु का प्रयोग करने वाले, हेतुगम्य पदार्थ और हेतु-इन तीनों अर्थ इसका उल्लेख नहीं है। में किया गया है। हेतु को जानने वाला पुरुष उसका ज्ञान करते समय उससे प्रस्तुत प्रकरण में अज्ञान मरण का अर्थ अध्यवसान-राग-द्वेष अभिन्न हो जाता है। इसलिए वह हेतु कहलाता है।
की तीव्रता से होने वाला मरण होना चाहिए। इसीलिए अज्ञानमरण को सिद्धसेन दिवाकर ने ज्ञान के आधार पर ज्ञेय की दो कोटिया बत- सहेतुक ही बतलाया गया है। छद्मस्थमरण सहेतुक और अहेतुक दोनों लाई हैं—हेतुगम्य और अहेतुगम्य। परोक्ष पदार्थ को जानने के लिए हेतु का प्रकार का हो सकता है। केवली में रागद्वेषात्मक अध्यवसान नहीं होता, प्रयोग किया जाता है, इसलिए वह हेतुगम्य कहलाता है। प्रत्यक्ष पदार्थ अथवा इसलिए उनका मरण अहेतुक ही होता है। आप्त पुरुष के वचन के आधार पर ज्ञात पदार्थ अहेतुगम्य कहलाता है।
हेतु और अहेतु के पांच-पांच प्रकार बतलाए गए हैं। उनमें चार हेतुं जाणइ, हेउणा जाणई'ये दो सूत्र सम्यक् दृष्टि की अपेक्षा का सम्बन्ध ज्ञान से है और पांचवे हेतु का सम्बन्ध मरण से है। जानता है, से हैं
देखता है-इन दो क्रिया-पदों का अर्थ स्पष्ट है। बुध्यते, अभिसमागच्छति १. सम्यग्दृष्टि पुरुष कार्य के साथ-साथ उसके हेतु को भी जानता- - इन दो क्रियापदों के प्रतिपाद्य पर विमर्श आवश्यक है। बुध्यते इस देखता है।
क्रियापद का अर्थ बोधि होता है। बोधि का सम्बन्ध ज्ञान, दर्शन और चारित्र २. वह हेतुगम्य पदार्थ को हेतु के द्वारा जानता-देखता है। तीनों से है।"
३. मिथ्यादृष्टि पुरुष कार्य को जानता है, देखता है उसके हेतु को 'अभिसमागच्छति' क्रियापद का सम्बन्ध प्राप्ति या संतुष्टि से नहीं जानता-देखता।
है। बोधि के पश्चात् छद्मस्थ मनुष्य हेतु को प्राप्तकर दान, उपादान और ४. वह हेतुगम्य पदार्थ को हेतु के द्वारा नहीं जानता-देखता। माध्यस्थ फल को प्राप्त होता है। केवली अहेतु को अभिसमागत कर केवल
५. केवली अहेतु-अहेतुगम्य पदार्थ को जानता-देखता है माध्यस्थ-फल को प्राप्त होता है। अथवा अहेतुक-स्वाभाविक परिणमनों को जानता-देखता है।
प्रस्तुत आलापक का तात्पर्यार्थ यह है—द्रव्य दो प्रकार के होते हैं ६. वह अहेतु केवलज्ञान के द्वारा जानता-देखता है। -मूर्त और अमूर्ती मूर्त द्रव्य हेतु के द्वारा जाना जा सकता है। अमूर्त द्रव्य
७. छद्मस्थ–क्षायोपशमिक ज्ञान का स्वामी अहेतुगम्य पदार्थ हेतु के द्वारा नहीं जाना जा सकता। वह अहेतु-केवलज्ञान के द्वारा जाना को नहीं जानता-देखता।
जा सकता है। द्वितीयान्त हेतु' शब्द के द्वारा द्रव्य की द्विविधता की सूचना ८. वह अहेतु—केवलज्ञान के द्वारा नहीं जानता-देखता। मिलती है। तृतीयान्त हेतु' पद के द्वारा ज्ञान की द्विविधता की सूचना मिलती मरण दो प्रकार का होता है-सहेतुक और अहेतुक। ठाणं में है। द्रष्टव्य ठाणं, ७/७५ से ८२, व उनका टिप्पण, पृ. ६२३, ६२४।
१९९. सेवं भंते ! सेवं भंते ! ति।।
तदेवं भदन्त ! तदेवं भदन्त ! इति।
१९९. भन्ते ! वह ऐसा ही है, भन्ते ! वह ऐसा ही है।
१.भ.वृ. ५/१९१ हेतुं साध्याबिनाभूत साध्यनिश्चयार्थम्। २. वैशेषिक सूत्र ९/२/४-हेतुरपदेशो लिंग प्रमाणं करणमित्यनर्थान्तरम् । ३. भ.वृ. ५/१९१-इह हेतुषु वर्तमान: पुरुषो हेतुरेव —तदुपयोगान्यत्वात् । ४. सम्मति. ३/४३-दुविहो धम्मावाओ अहेउवाओ य हेउवाओ य।
तत्थ उ अहेउवाओ भवियाऽभवियादओ भावा ।। ५. ठाणं,७/७२-सत्तविधे आउभेदे पण्णत्ते,तं जहा--
अन्झवसाण-णिमित्ते, आहारे वेयणापराघाते।
फासे आणापाणू सत्तविधं भिज्जए आउं । ६. सम. १७/९/ ७. भ.२/४९ । ८. मूलाराधना, १/२५ विजयोदया वृत्ति प.८६ । ९. उत्तर. नि. गा. २१२-२१४ । १०. ठाणं, ३/१७६।
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