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भगवई
२०१
श.५: उ.७: सू.१८७-१९०
तंचेव बेइंदिया णं पुढविकायं समारंभंति जाव तच्चैव द्वीन्द्रिया: पृथिवीकार्य समारभन्ते तसकायं समारंभंति, सरीरा परिग्गहिया यावत् त्रसकायं समारभन्ते, शरीराणि परि- भवंति, कम्मा परिग्गहिया भवंति, बाहिरा गृहीतानि भवन्ति, कर्माणि परिगृहीतानि भंड-मत्तोवगरणा परिग्गहिया भवंति, सचि- भवन्ति, बाह्यानि भाण्डामत्रोपकरणानि परि- ताचित्त-मीसयाई दवाई परिग्गहियाई गृहीतानि भवन्ति, सचित्ताचित्त-मिश्रकाणि भवंति॥
द्रव्याणि परिगृहीतानि भवन्ति।
होते हैं ? नैरयिक जीवों की भांति द्वीन्द्रिय पृथ्वी काय का समारम्भ करते है, द्वीन्द्रिय जीवों के शरीर का परिग्रह होता है, कर्म का परिग्रह होता है, बाह्य भाण्ड, पात्र तथा अन्य उपकरणों का परिग्रह होता है, सचित्त, अचित्त और मिश्र द्रव्यों का परिग्रह होता है।
१८८. एवं जाव चउरिदिया।
एवं यावत् चतुरिन्द्रिया:।
१८८. इसी प्रकार चतुरिन्द्रिय जीवों तक आरम्भ और परिग्रह की वक्तव्यता।
१८९. पंचिदियतिरिक्खजोणिया णं भंते ! किं पंचेन्द्रियतिर्यग्योनिका: भदन्त ! किंसारम्भा: १८९. भन्ते ! पञ्चेन्द्रिय तिर्यक्योनिक जीव क्या सारंभा सपरिग्गहा? उदाह अणारंभा अपरि- सपरिग्रहा:? उताहो अनारम्भा: अपरिग्रहा:? आरम्भ और परिग्रह से युक्त होते हैं अथवा आरम्भ गहा?
और परिग्रह से मुक्त होते हैं? तं चेव जाव कम्मा परिग्गहिया भवंति, टंका तच्चैव यावत् कर्माणि परिगृहीतानि भवन्ति, नैरयिक जीवों की भांति तिर्यपंचेन्द्रिययोनिक कूडा सेला सिहरी पब्भारा परिग्गहिया भवंति, टंका: कूटा: शैला शिखरिण: प्रागभारा: जीवों के यावत् कर्म का परिग्रह होता है (यह वक्तव्य जल-थल-बिल-गुह-लेणा परिग्गहिया परिग्रहीता: भवन्ति, जल-स्थल-बिल- है, इतना विशेष है)-टंक, कूट, शैल, शिखरी और भवंति, उज्झर-निज्झर-चिल्लल-पल्लल- -गुहा-लयनानि परिगृहीतानि भवन्ति, उज्- प्राग्भार (झूके हुए पर्वत प्रदेश) का परिग्रह होता है। -वप्पिणा परिग्गहिया भवंति, अगड-तडाग- झर-निर्झर-'चिल्लल'-पल्वल-वप्पिणा' जल, स्थल, बिल, गुफा और लयन (पर्वत में उकेरा -दह-नईओ वावी-पुक्खरिणी-दीहिया परिगृहीतानि भवन्ति,अगड-तडाग-द्रह- हुआ गृह) का परिग्रह होता है। उज्झर, निर्झर, तलैया, गुजालिया सरा सरपंतियाओ सरसरपंति- नद्यः वापी-पुष्करिणी-दीर्घिका: गुजा- जल का छोटा गढा, जल-प्रणाली का परिग्रह होता याओ बिलपंतियाओ परिगहियाओ भवंति, लिका: सरांसि सर:पंक्तिका: सरस्सर:- है। कुआ, तालाब, द्रह, नदी, बावड़ी, पुष्करिणी, आरामुज्जाण-काणणा वणा वणसंडा वण- पंक्तिका: बिलपंक्तिका: परिगृहीता: भवन्ति, नहर, वक्राकार नहर, सर, सरपंक्ति, सरसरपंक्ति और राईओ परिग्गहियाओ भवंति, देवउल-सभ- आरामोद्यान-काननानि वनानि वनषण्डानि बिलपंक्ति का परिग्रह होता है। आराम, उद्यान, कानन, -पव-थूभ-खाइय-परिखाओ परिग्ग- वनराजय: परिगृहीता: भवन्ति, देवकुल- वन, वनषण्ड और वनराजि का परिग्रह होता है। देवल, हियाओ भवंति, पागार-अट्टालग-चरिय- -सभा-प्रपा-स्तूभ-खातिका-परिखा: परि- सभा, प्रपा, स्तूप, खाई और परिखा का परिग्रह होता -दार-गोपुरा परिग्गहिया भवंति, पासाद- गृहीताः भवन्ति, प्राकाराट्टालक-चरिका- है। प्राकार, अट्टालक, चरिका, द्वार और गोपुर का -घर-सरण-लेण-आवणा परिग्गहिया भ- -द्वार-गोपुराणि परिगृहीतानि भवन्ति, प्रा- परिग्रह होता है। प्रासाद, घर, शरण,लयन और आपण वंति, सिंघाडग-तिग-चउक्क-चच्चर- साद-गृह-शरण-लयनापणाः परिगृहीताः का परिग्रह होता है। दुराहे, तिराहे, चौराहे, चौक, -चउम्मुह-महापह-पहा परिग्गहिया भवंति, भवन्ति, शृंगाटक-त्रिक-चतुष्क-चत्वर- चौहट्टे, महापथ और पथ का परिग्रह होता है। शकट, सगड-रह-जाण-जुग्ग-गिल्लि-थिल्लि- चतुर्मख-महापथ-पथा: परिगृहीता: भवन्ति, रथ, यान, युग्य, डोली, बग्घी, शिबिका और स्यन्द-सीय-संदमाणियाओ परिग्गहियाओ शकट-रथ-यान-युग्य-'गिल्लि'-थिल्लि- मानिका का परिग्रह होता है। तवा, लोहकटाह, करछी भवंति, लोही-लोहकडाह-कडुच्छया -शिबिका-स्यन्दमानिका: परिगृहीता: भव- का परिग्रह होता है। भवन का परिग्रह होता है। देवों, परिग्गहिया भवंति, भवणा परिग्गहिया न्ति, लौही-लोहकटाह-'कडुच्छया' परि- देवियों, मनुष्यों, मानुषियों, नर-तिर्यञ्चों और स्त्रीभवंति, देवा देवीओ मणुस्सा मणुस्सीओ गृहीताः भवन्ति, भवनानि परिगृहीतानि तिर्यञ्चों का परिग्रह होता है। आसन, शयन, स्तम्भ, तिरिक्खजोणिया तिरिक्खजोणिणीओ परि- भवन्ति, देवा: देव्य: मनुष्या: मानुष्य: तिर्यग्- भांड, सचित्त, अचित्त और मिश्र द्रव्यों का परिग्रह म्गहिया भवंति, आसण-सयण-खंभ-भंड- योनिका: तिर्यग्योनिन्यः परिगृहीता: भवन्ति, होता है। गौतम ! इस अपेक्षा से यह कहा जा रहा -सचित्ताचित्त-मीसयाई दव्वाइं परिग्गहियाई आसन-शयन-स्तम्भ-भाण्ड-सचित्ताचित्त- है-पंचेद्रिय तिर्यग्योनिक जीव आरम्भ और परिभवंति। से तेणटेणं॥
-मिश्रकाणि द्रव्याणि परिगृहीतानि भवन्ति। ग्रह से युक्त होते हैं, आरम्भ और परिग्रह से मुक्त तत् तेनार्थेन।
नहीं होते।
१९०. जहा तिरिक्खजोणिया तहा मणुस्सा वि यथा तिर्यग्योनिकाः तथा मनुष्याः अपि १९०. जिस प्रकार तिर्यग्योनिक जीवों की वक्तव्यता भाणियव्वा। वाणमंतर-जोइस-वेमाणिया भणितव्याः। वानमन्तर-ज्योतिष्क-वैमानि- है, उसी प्रकार मनुष्यों के आरम्भ और परिग्रह
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