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भगवई
१९९
श.५: उ.७: सू.१८१,१८२
परमाणु-खंधाणं परोप्परं अप्पाबहुयत्त-पदं
परमाणु-स्कन्धानां परस्परम् अल्प- परमाणु-स्कन्धों का परस्पर अल्पबहुत्व-पद बहुत्व-पदम्
१८१. एयस्स णं भंते ! दव्वट्ठाणाउयस्स, एतस्य भदन्त ! द्रव्यस्थानायुष्कस्य क्षेत्र- १८१. 'भन्ते! इस द्रव्यस्थान आयु, क्षेत्रस्थान आयु,
खेत्तट्ठाणाउयस्स, ओगाहणट्ठाणाउयस्स, स्थानायुष्कस्य, अवगाहनस्थानायुष्कस्य, अवगाहनस्थान आयु और भावस्थान आयु में कौन भावट्ठाणाउयस्स कयरे कयरेहिंतो अप्पा भावस्थानायुष्कस्य कतरे कतरेभ्य: अल्पा: किनसे अल्प, बहु, तुल्य अथवा विशेषाधिक है? वा? बहुया वा? तुल्ला वा? विसेसाहिया वा? बहुका: वा? तुल्या: वा? विशेषाधिका
वा? गोयमा ! सव्वत्थोवे खेत्तट्ठाणाउए, ओगा- गौतम! सर्वस्तोक: क्षेत्रस्थानायुष्कः, अव- गौतम! क्षेत्रस्थान आयु सबसे थोड़ा है, अवगाहनाहणट्ठाणाउए असंखेज्जगुणे, दव्वट्ठाणाउए गाहनस्थानायुष्यक: असंख्येय गुणः, द्रव्य- स्थान आयु उससे असंख्येयगुना, द्रव्यस्थान आयु असंखेज्जगुणे, भावट्ठाणाउए असंखेज्ज- स्थानायुष्कः असंख्येयगुणः, भावस्थाना- उससे असंख्येयगुना और भावस्थान आयु उससे युष्क: असंख्येयगुणः।
असंख्येयगुना अधिक होता है।
वा?
गुणे।
संगहणी गाहा
खेत्तोगाहणदव्वे, भावट्ठाणाउयं च अप्प-बहु। खेते सव्वत्थोवे, सेसा ठाणा असंखेज्जगुणा ॥१॥
संग्रहणी गाथा क्षेत्रावगाहनद्रव्ये, भावस्थानायुष्कं च अल्प-बहु। क्षेत्रसर्वस्तोक, शेषाणि स्थानानि असंख्येयगुणानि ।
संग्रहणी गाथा
क्षेत्र, अवगाहना, द्रव्य और भावस्थान आयु का अल्पबहुत्व विमर्शनीय है। क्षेत्र का आयु सबसे थोड़ा है, शेष तीनों का आयु क्रमश: असंख्येयगुना है।
भाष्य
१. सूत्र १८१
वह संकुचित हो जाता है और कभी फैल जाता है। संकोच और विकोच के प्रस्तुत सूत्र में द्रव्य, क्षेत्र, अवगाहन और भाव-इन चार नयों साथ अवगाहना बदल जाती है। किन्तु द्रव्यमान चिरकाल तक नहीं बदलता। से पुद्गल के आयुमान अथवा अवस्थिति-मान की अल्पता और बहुता का विवक्षित स्कन्ध में जितनी द्रव्यराशि थी, उतनी चिरकाल तक रह जाती है। तुलनात्मक प्रतिपादन किया गया है।
इस अपेक्षा से द्रव्यस्थानायु अवगाहनास्थानायु से असंख्येय गुना अधिक १. क्षेत्र-स्थानायु-क्षेत्र (आकाश) अमूर्त होता है, इसलिए उसके होता है। साथ मूर्त (पुद्गल) द्रव्य का विशिष्ट बन्ध नहीं होता, फलस्वरूप एक क्षेत्र
४. संघात और भेद के कारण स्कन्ध की द्रव्यराशि में अन्तर आ में पुद्गल चिरकाल तक नहीं रहता, अत: क्षेत्र-स्थानायु सबसे अल्प होता जाता है। उसके उपरान्त भी भाव, वर्ण आदि पर्यायों में अन्तर आना निश्चित
नहीं है। इसलिए भावस्थानायु द्रव्यस्थानायु से असंख्यगुना अधिक है। २. अवगाहना विवक्षित क्षेत्र से अन्यत्र भी होती है। इसलिए अभयदेवसूरि ने अल्पबहुत्व की व्याख्या के लिए १५ गाथाएं उद्धृत अवगाहना-स्थानायु क्षेत्र-स्थानायु से असंख्येय गुना अधिक होता है। की हैं। उनमें अल्पबहुत्व की न्यायशास्त्रीय मीमांसा उपलब्ध है।
३. पुद्गल-द्रव्य में संकोच और विकोच दोनों होते हैं-कभी
जीवाणं सारंभ-सपरिग्गह-पदं
जीवों का सारम्भ-सपरिग्रह-पद
१८२. नेरइया णं भंते ! कि सारंभासपरिग्गहा? उदाहु अणारंभा अपरिग्गहा?
जीवानां सारंभ-सपरिग्रह-पदम् नैरयिका:भदन्त ! किंसारम्भा: सपरिग्रहा:? उताहो अनारम्भा: अपरिग्रहा:?
१८२. 'भन्ते! नैरयिक जीव क्या आरम्भ और परिग्रह
से युक्त होते हैं? अथवा आरम्भ और परिग्रह से मुक्त होते हैं?
१. भ..५/१८१-ननु क्षेत्रस्यावगाहनायाश्च को भेद:? उच्यते, क्षेत्रमवगाढमेव, अवगाहना तु विवक्षितक्षेत्रादन्यत्रापि पुद्गलानां तत्परिमाणावगाहित्वमिति ।
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