SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 220
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श. ५ : उ. ७ : सू. १७५-१८० कालओ केववि होइ? कालतः किच्चिरं भवति ? गोयमा ! जहण्णेणं एगं समयं, उक्कोसेणं गौतम ! जघन्येन एकं समयम्, उत्कर्षेण असंखेज्जं कालं || असंख्येयकाला १८०. असद्दपरिणयस्स ण भंते ! पोग्गलस्स अंतरं कालओ केवच्चिरं होड़? गोयमा ! जहोणं एवं समयं उक्कोसेनं आवलियाए असंखेज्जइभागं ।। " १. २. ३. १. सूत्र १७५-१८० पूर्व आलापक में परमाणु और स्कन्ध के अवस्थान-काल-विषयक नियमों का प्रतिपादन किया गया है। प्रस्तुत आलापक में उनके अन्तरकालविषयक नियमों का प्रतिपादन है। अन्तरकाल का अर्थ है वर्तमान परिणति और भविष्य में उसी रूप में होने वाली परिणति का मध्यवर्ती काला मध्यवर्ती परिणति पूर्व परिणति से भिन्न प्रकार की होती है, जैसे – एक परमाणु, परमाणुअवस्था को छोड़कर स्कन्ध-रूप में परिणत होता है, पुन: वह परमाणु-रूप में परिणत होगा, उसका मध्यवर्ती काल स्कन्ध-रूप में परिणत होने का का है। एक द्विप्रदेश स्कन्ध त्रिप्रदेशी आदि स्कन्ध तथा परमाणु के रूप में परिणत होकर पुनः द्विप्रदेशी स्कन्ध के रूप में परिणत होता है। उसका मध्यवर्ती ४. ५. ६. ७. ८. नाम Jain Education International परमाणु- पुद्गल द्विप्रदेशी स्कन्ध यावत् अनन्तप्रदेशी स्कन्ध एकप्रदेशावगाढ पुद्गल सैज यावत् असंख्य प्रदेशावगाढ एकप्रदेशावगाट यावत् असंख्यप्रदेशावगाढ पुद्गल निरेज अशब्दपरिणतस्य भदन्त ! पुद्गलस्य अन्तरं कालतः कियच्चिरं भवति ? गौतम! जघन्येन एक समयम्, उत्कर्षेण आवलिकाया असंख्येयभागम एक गुणकाला पुद्गल यावत् अनन्त गुण काला पुद्गल इसी प्रकार सभी वर्ण, गंध, रस, स्पर्श, सूक्ष्म परिणत बादर परिणत शब्द- परिणत पुद्गल अशब्द- परिणत पुद्गल भाष्य जघन्य एक समय एक समय एक समय अवस्थान-काल एक समय १९८ एक समय एक समय १. भ. वृ. ५/ १७६ - स च तेषामनन्तत्वात् प्रत्येकं चोत्कर्षतोऽसंख्येयस्थितिकत्वादनन्तः । एक समय एक समय काल द्विप्रदेशी स्कन्ध का अन्तरकाल है। स्कन्ध द्विप्रदेशी से लेकर अनन्तप्रदेशी तक होते हैं- ( अर्थात् स्कन्धों की संख्या अनन्त है।) प्रत्येक स्कन्ध की उत्कृष्ट स्थिति असंख्य काल तक की है। इसलिए द्विप्रदेशी स्कन्ध का अन्तर- काल अनन्त काल है। १ उत्कृष्ट असंख्य का असंख्य काल अप्रकम्प पुद्गल का जो अवस्थान-काल है, वह सप्रकम्प पुद्गल का अन्तर- काल है। तथा सप्रकम्प पुद्गल का जो अवस्थान- काल है, वह अप्रकम्प पुद्गल का अन्तर- काल है। एक गुण काला वर्ण, गन्ध आदि का जो अवस्थान-काल है, वही उनका अन्तर काल है। देखें यन्त्र असंख्य काल कालकृत अन्तर कितना होता है? गौतम! जघन्यतः एक समय, उत्कर्षत: असंख्य काला आवलिका का असंख्यातवां भाग असंख्य काल असंख्य काल १८०. भन्ते ! अशब्द- परिणति में परिणत पुद्गल में कालकृत अन्तर कितना होता है? गौतम ! जघन्यतः एक समय, उत्कर्षतः आवलिका का असंख्यातवां भाग। For Private & Personal Use Only आवलिका का असंख्यातवां भाग असंख्य काल जघन्य एक समय एक समय एक समय एक समय एक समय एक समय एक समय एक समय अन्तर काल भगवई उत्कृष्ट असंख्य काल असंख्य काल अनन्त काल आवलिका का असंख्यातवां भाग असंख्य काल असंख्य काल असंख्य काल आवलिका का असंख्यातवां भाग www.jainelibrary.org
SR No.003594
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02 Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2000
Total Pages596
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy