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________________ भगवई इस प्रकार अवस्था भेद होता रहता है।' गुण में गुणांश सदा एक रूप नहीं रहता। वह बदलता रहता है। प्रस्तुत आलापक में उसके एक रूप में रहने की कालमर्यादा का नियम निर्दिष्ट है— जघन्यतः एक समय, उत्कर्षतः असंख्येय काला यह नियम वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श इन गुणों के सभी गुणांशों पर लागू होता है। सूक्ष्म परिणति और बादर परिणति वाले पुद्गलों के लिए भी यही नियम निर्दिष्टि है। ४. चौथे नियम का सम्बन्ध शब्द-परिणत और अशब्द परिणत परमाणु - खंघाणं अंतरकाल पदं १७५. परमाणुपोग्गलस्स णं भंते ! अंतरं कालओ केवच्चिरं होड़? परमाणु - स्कन्धानाम् अन्तरकाल-पदम् परमाणुपुद्गलस्य भदन्त ! अन्तरं कालतः कियच्चिरं भवति ? गोयमा जहणेणं एवं समयं उक्कोसेणं गौतम । जघन्येन एक समयम्, उत्कर्षेण असंख्येयं कालम् । असंखेज्जं कालं || १७७. एगपएसोगास्स मं भंते! पोग्गलस्स सेक्स्स अंतरं कालओ केवच्चिरं होड़? गोयमा ! जहणेणं एवं समयं उक्कोसेणं असंखेज्जं कालं । एवं जाव असंखेज्ज परसोगाढे ॥ १७६. दुप्पएसियस्स णं भंते ! खंधस्स अंतरं द्विप्रदेशिकस्य भदन्त ! स्कन्धस्य अन्तरं कालओ केवच्चिरं होइ ? कालतः कियच्चिरं भवति ? गौतम ! जघन्येन एकं समयम्, उत्कर्षेण अनन्तं कालम् एवं यावद् अनन्तप्रदेशिकः । गोयमा ! जहण्णेणं एगं समयं, उक्कोसेणं अनंत काली एवं जाव अनंतपएसओ ।। १७८. एगपएसोगाढस्स णं भंते ! पोग्गलस्स निरेयस्स अंतर कालओ केवच्चिरं होड़? 7 गोयमा ! महणणेणं एवं समयं उक्कोसेणं आवलियाए असंखेज्जभागं एवं जाव असंखेज्जपएसोगाढे। वण्ण-गंध-रस- फास - सुहुमपरिणयबायरपरिणयाणं एतेसिं जं चैव संचिट्टणा तं चैव अंतरं पि भाणियव्वं ॥ १९७ - पुद्गलों के साथ है। एकप्रदेशावगाढ़ परमाणु के सप्रकम्प और अप्रकम्प रहने का नियम पुद्गल सप्रकम्प अधिक समय तक रह नहीं सकता। उसके सप्रकम्प रहने का कालमान जघन्यतः एक समय, उत्कर्षतः आवलिका का असंख्यातवां भाग है। पुद्गल अप्रकम्प अधिक समय तक रह सकता है— जघन्यतः एक समय, उत्कर्षतः असंख्येय काल । पच्चीसवें शतक में परमाणु के सप्रकम्प और अप्रकम्प होने का कालमान निर्दिष्ट है। २ Jain Education International एकप्रदेशावगाढस्य भदन्त पुद्गलस्य सैजस्य अन्तरं कालतः कियच्चिरं भवति ? गौतम । जघन्येन एक समयम्, उत्कर्षेण असंख्येयं कालम् । एवं यावद् असंख्येयप्रदेशावगाढ़ः । एकप्रदेशावगाढस्य भदन्त ! पुद्गलस्य निरेजस्य अन्तरं कालत: कियच्चिरं भवति ? गौतम ! जघन्येन एक समयम्, उत्कर्षेण आवलिकायाः असंख्यभागम्। एवं यावद् असंख्येयप्रदेशावगाढः । वर्ण- गन्ध-रस स्पर्श- सूक्ष्मपरिणतबादरपरिणतानाम् — एतेषां यच्चैव संस्थानं तच्चैव अन्तरमपि भणितव्यमा १७९. सपरिणयस्स णं भंते! पोग्गलस्स अंतरं शब्दपरिणतस्य भवन्त ! पुद्गलस्य अन्तरं १. ष. खं. धवला, पु. १४, खं. ५, भा. ६, सू. ५३९, पृ. ४५० तथा सू. ५४० पृ. ४५१ । २. भ. २५/१८९, २०० । श. ५: उ. ७: सू. १६९-१७९ For Private & Personal Use Only परमाणु - स्कन्धों का अन्तरकाल-पद १७५. भन्ते! परमाणु-पुद्गल में (पुनः परमाणु-रूप में परिणत होने में ) कालकृत अन्तर कितना होता है? गौतम जपन्यतः एक समय, उत्कर्षतः असंख्येय ! काल । १७६. भंते द्विप्रदेशिक स्कन्ध में कालकृत अन्तर कितना होता है ? गौतम ! जघन्यतः एक समय, उत्कर्षतः अनन्त काल । इसी प्रकार यावत् अनन्तप्रदेशिक स्कन्ध में कालकृत अन्तर वक्तव्य है । १७७. भन्ते ! आकाश के एक प्रदेश में अवगाढ़ सप्रकम्प पुद्गल में कालकृत अन्तर कितना होता है? गौतम ! जघन्यतः एक समय, उत्कर्षतः असंख्य काल इसी प्रकार यावत् असंख्य प्रदेशावगाढ़ प्रकम्प पुद्गल में कालकृत अन्तर वक्तव्य है। १७८. भन्ते ! आकाश के एक प्रदेश में अवगाढ़ अप्रकम्प पुद्गल में कालकृत अन्तर कितना होता है? गौतम! जघन्यतः एक समय, उत्कर्षतः आवलिका का असंख्यातवां भाग। इसी प्रकार यावत् असंख्यप्रदेशावगाढ़ अप्रकम्प पुद्गल में कालकृत अन्तर वक्तव्य है। वर्ण, गन्ध, रस, स्पर्श सूक्ष्म परिणति में परिणत तथा बादर परिणति में परिणत- इन पुद्गलों का जो अवस्थान-काल है, वही कालकृत अन्तर है। १७९. भन्ते शब्द परिणति में परिणत पुद्गल में www.jainelibrary.org
SR No.003594
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02 Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2000
Total Pages596
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size20 MB
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