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________________ श.५: उ.७: सू.१६९-१७४ १९६ भगवई १७२. एगगुणकालएणं भंते ! पोग्गले कालओ एकगुणकालक: भदन्त ! पुद्गल: कालत: १७२. भन्ते ! एक गुण कृष्ण वर्ण वाला पुद्गल काल केवच्चिर होइ? कियच्चिरं भवति? की दृष्टि से (एक गुण कृष्ण-वर्ण के रूप में) कितने समय तक रहता है? गोयमा ! जहण्णेणं एग समय, उक्कोसेणं गौतम ! जघन्येन एक समयम्, उत्कर्षेण । गौतम ! जघन्यत: एक समय, उत्कर्षत: असंख्य असंखेज्जं काला एवं जाव अणंतगुणकालए। असंख्येयं कालम्। एवं यावद् अनन्तगुण- काल। इसी प्रकार यावत् अनन्त-गुण कृष्ण वर्ण कालकः। वाले पुद्गल की यही कालावधि है। एवं वण्ण-गंध-रस-फास जाव अणंतगुण- एवं वर्ण-गंध-रस-स्पर्शम् यावद् अनन्तगुण- इसी प्रकार वर्ण, गन्ध, रस, स्पर्श यावत् अनन्त गुण लुक्खे। एवं सुहुमपरिणए पोग्गले, एवं बादर- रूक्षः। एवं सूक्ष्मपरिणत: पुद्गल:, एवं बादर- रूक्ष पुद्गल की कालावधि वक्तव्य है। इसी प्रकार परिणए पोग्गले।। परिणत: पुद्गलः। सूक्ष्म परिणति में परिणत पुद्गल तथा बादर परिणति में परिणत पुद्गल की कालावधि वक्तव्य है। १७३. सद्दपरिणए णं भंते ! पोग्गले कालओ शब्दपरिणत: भदन्त ! पुद्गल: कालत: कि- १७३. भंते ! शब्द-परिणति में परिणत पुद्गल काल केवच्चिरं होइ? यच्चिरं भवति? की दृष्टि से शब्द-परिणति के रूप में कितने समय तक रहता है? गोयमा ! जहण्णेणं एग समयं, उक्कोसेणं गौतम ! जघन्येन एक समयम्, उत्कर्षेण । गौतम ! जघन्यत: एक समय, उत्कर्षत: आवलिका आवलियाए असंखेज्जइभाग। आवलिकाया: असंख्येयभागम्। के असंख्यातवें भाग तक रहता है। १७४. असद्दपरिणए णं भंते ! पोग्गले कालओ अशब्दपरिणतः भदन्त ! पुद्गल: कालत: १७४. भन्ते! अशब्द-परिणति में परिणत पुद्गल काल केवच्चिरं होइ? कियच्चिरं भवति? की दृष्टि से अशब्द-परिणति के रूप में कितने समय तक रहता है? गोयमा! जहण्णेणं एगं समयं, उक्कोसेणं गौतम ! जघन्येन एक समयम्, उत्कर्षण गौतम ! जघन्यत: एक समय, उत्कर्षत: असंख्य असंखेज्जं कालं॥ असंख्येयं कालम्। काल। भाष्य १. सूत्र १६९-१७४ प्रस्तुत आलापक में पुद्गल से सम्बन्धित कुछ सार्वभौम नियमों २.सप्रकम्प और अप्रकम्प पुद्गल का एक स्थान में अवस्थान का प्रतिपादन है। का नियम-जघन्यत: एक समय, उत्कर्षत: आवलिका का असंख्येय भागा १. एक रूप में अवस्थान का नियम-पुद्गल-द्रव्य के दो। ३. तीसरे नियम का सम्बन्ध गुणांश के परिवर्तन से हैरूप हैं--परमाणु और स्कन्ध। परमाणु मिलकर स्कन्ध का निर्माण करते हैं। ___ वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श-ये पुद्गल के गुण हैं। काला वर्ण एक गुण स्कन्ध का विघटन होने पर वे फिर परमाणु बन जाते हैं। यह परिवर्तन-चक्र (quality) है। उसमें अनन्त गुणांश (units) सम्भव हो सकते हैं। प्रस्तुत चलता रहता है। परमाणु का परमाणु के रूप में अधिकतम अवस्थान प्रकरण में 'गुण' शब्द का प्रयोग 'गुणांश' के अर्थ में किया गया है। असंख्येयकाल तक होता है। उसके पश्चात् वह स्कन्ध रूप में बदल जाता किसी काले वर्ण वाले परमाणु के काले वर्ण के गुणांशों में परिवर्तन है। कोई भी पुद्गल एक ही रूप में स्थित नहीं रहता। इनके परिवर्तन की होता रहता है। कभी वह एक गणांश काला होता है. कभी दो गणांश. कभी तीन न्यूनतम सीमा बहुत छोटी है—एक समय है। एक समय और असंख्यकाल गुणांश यावत् कभी अनन्त गुणांश काला होता है। प्रत्येक गुणांशअनन्त अविभागी की सीमा के मध्य जितना काल है उतने ही विकल्प बन जाते हैं। प्रतिच्छेदों से निष्पन्न होता है। एक गुण काला' जघन्य गुण काला कहलाता है। यह नियम परमाणु की भांति स्कन्ध पर भी लागू होता है। अविभागी प्रतिच्छेद की वृद्धि होने पर क्रमश: दो गुण, तीन गुण, चार गुण १.भ.न.५/१६९ असंखेन्जं कालं त्ति असंख्येयकालात्परः पुद्गलानामेकरूपेण स्थित्यभावात्। २. आवलिका के लिए द्रष्टव्य भ. ६/१३२॥ ३. अविभागी प्रतिच्छेद का अर्थ है--- शक्ति -अंश । Jain Education Intemational For Private & Personal use only www.jainelibrary.org
SR No.003594
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02 Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2000
Total Pages596
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size20 MB
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