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श.५ : उ.७ : सू.१६५-१६८
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भगवई
प्रदेशिक स्कन्ध से लेकर यावत् अनन्तप्रदेशिक स्कन्ध तक से स्पर्श कराया जाए।
१६८. तिपएसिएणं भंते ! खंधे परमाणुपोग्गलं त्रिप्रदेशिक: भदन्त ! स्कन्धः परमाणुपुद्गलं १६८. भन्ते ! त्रिप्रदेशिक स्कन्ध परमाणु-पुद्गल का फुसमाणे पुच्छा। स्पृशन् पृच्छा।
स्पर्श करता हुआ क्या एक देश से एक देश का स्पर्श
करता है? पृच्छा । ततिय-छट्ठ-नवमे हिं फुसइ। तृतीय-षष्ठ-नवमैः स्पृशति।
वह तीसरे, छठे और नौवें विकल्प का स्पर्श
करता है। तिपएसिओ दुपएसियं फुसमाणे पढमएणं, त्रिप्रदेशिक: द्विप्रदेशिकं स्पृशन् प्रथमेन, त्रिप्रदेशिक स्कन्ध द्विपदेशिक स्कन्ध का स्पर्श ततिएणं, चउत्थ-छट्ठ-सत्तम-नवमेहिं फुसइ। तृतीयेन, चतुर्थ-षष्ठ-सप्तम-नवमैः स्पृशति। करता हुआ पहले, तीसरे, चौथे, छठे, सातवें
और नौवें विकल्प का स्पर्श करता है। तिपएसिओ तिपएसियं फुसमाणे सव्वेसु वि त्रिप्रदेशिकः त्रिप्रदेशिकं स्पृशन् सर्वेष्वपि त्रिप्रदेशिक स्कन्ध त्रिप्रदेशिक स्कन्ध का स्पर्श ठाणेसु फुसइ। स्थानेषु स्पृशति।
करता हुआ सब स्थानों का स्पर्श करता है। जहा तिपएसिओ तिपएसियं फुसाविओ एवं यथा त्रिप्रदेशिक: त्रिप्रदेशिकं स्पर्शितः एवं जिस प्रकार त्रिप्रदेशिक स्कन्ध का त्रिप्रदेशिक तिप्पएसिओ जाव अणंतपएसिएणं संजो- त्रिप्रदेशिक: यावत् अनन्तप्रदेशिकेन संयोज- स्कन्धसे स्पर्श कराया गया है, उस प्रकार त्रिप्रदेशिक एयव्वो । यितव्यम्।
स्कन्ध का चतुःप्रदेशिक स्कन्ध से लेकर यावत्
अनन्त प्रदेशिक स्कन्ध के साथ संयोग कराया जाए। जहा तिपएसिओ एवं जाव अणंतपएसिओ यथा त्रिप्रदेशिकः एवं यावद् अनन्तप्रदेशिक: जिस प्रकार त्रिप्रदेशिक स्कन्ध की वक्तव्यता है। भाणियन्वो॥ भणितव्यः।
वही वक्तव्यता चतुःप्रदेशिक से यावत् अनन्तप्रदेशिक स्कन्ध की है।
भाष्य
१. सूत्र १६५-१६८
एक परमाणु जब दूसरे परमाणु का स्पर्श करता है तब वह आधे अंश से करता है या सर्वात्मना करता है? इस जिज्ञासा के आधार पर नौ विकल्प प्रस्तुत किए गए हैं। भगवान् महावीर ने आठ विकल्पों को अस्वीकार कर दिया। केवल नौवें विकल्प को स्वीकृति दी। इसका हेतु यह है कि परमाणु निरंश होता है। इसलिए एक परमाणु दूसरे परमाणु के साथ सर्वात्मना सम्पर्क स्थापित करता है। उसमें देश-अंश या देशों-अंशों की कल्पना नहीं की जा सकती। नौ विकल्पों की स्थापना इस प्रकार है:
वृत्तिकार ने एक प्रश्न उपस्थित किया है -
एक परमाणु का दूसरे परमाणु के साथ यदि 'सर्वेण सर्वम्' स्पर्श होता है, तो दो परमाणुओं में एकत्व हो जाएगा। इस प्रकार अन्यान्य परमाणुओं के योग से घट आदि स्कन्धों का निर्माण नहीं हो सकेगा। इसका उत्तर यह है
-दो परमाणु परस्पर संलग्न होते हैं, तो अर्ध अंशों से नहीं होते। दो का योग होता है, एकत्व नहीं होता। घट आदि स्कन्धों के निर्माण का अभाव परमाणुओं के एक हो जाने पर हो सकता है, किन्तु उनके योग में निर्माण के अभाव की कल्पना नहीं की जा सकती।
परमाणु द्विप्रदेशी स्कन्ध का स्पर्श करता है, उसके दो विकल्प बनते हैं-'सर्वेण देशं' और 'सर्वेण सर्वम्'। जब द्विप्रदेशी स्कन्ध आकाश के दो प्रदेशों में अवस्थित होता है, तब परमाणु सर्वात्मना द्विप्रदेशी स्कन्ध के देश का स्पर्श करता है। वह द्विप्रदेशी स्कन्ध जब परिणति की सूक्ष्मता के कारण आकाश के एक प्रदेश में स्थित होता है, तब 'सर्वेण सर्वम्' यह विकल्प बनता है।
परमाणु के त्रिप्रदेशी स्कन्ध के स्पर्श में तीन विकल्प बनते हैं-- १. सर्वेण देशम् २. सर्वेण देशौ ३. सर्वेण सर्वम्।
१. |
देशेन | देशैः । सर्वेण देशं देशं । देश देशान् देशान् देशान् सर्वम् । सर्वम् । सर्वम्
१. भ.बृ. ५/१६५-अत्रच सर्वेण सर्वमित्येक एवं घटते, परमाणोर्निरंशत्वेन शेषाणामसम्भवात्। २. भ.वृ.५/१६५-ननु यदि सर्वेण सर्वम् स्पृशतीत्युच्यते तदा परमाण्वोरेकत्वापत्तेः कथमपरापरपरमाणुयोगेन घटादिस्कन्ध निष्पत्तिः इति, अत्रोच्यते,सर्वेण सर्वम् स्पृशतीतिकोऽर्थः
स्वात्मना तावन्योऽन्यस्य लगतो, न पुनर द्यशेन अादिदेशस्य तयोरभावात्. घटाद्यभावापत्तिस्तु तदैव प्रसज्येत यदा तयोरेकत्वापत्तिः, न च तयोः सा, स्वरूपभेदात् ।
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