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भगवई
१९१
श.५ : उ.७ : सू.१५४-१६३
भाष्य
१. सूत्र १५४-१५९
होता। व्यावहारिक परमाणु सूक्ष्म परिणति वाला अनन्तप्रदेशी स्कन्ध है। 'अणुओगदाराई' में परमाणु के दो प्रकार बतलाए गए हैं– अणुओगदाराई के अनुसार वह असिधारा से छिन्न-भिन्न नहीं होता।" सूक्ष्म और व्यावहारिक । व्यावहारिक परमाणु अनन्त सूक्ष्म परमाणुओं के
आधुनिक विज्ञान का पहले यह मत था कि परमाणु का विभाजन समुदाय से निष्पन्न होता है। निश्चयनय की अपेक्षा से वह अनन्तप्रदेशी नहीं होता किन्तु अब उसका विभाजन किया गया है। जैनदर्शन के अनुसार स्कन्ध है। व्यवहारनय की अपेक्षा से उसे व्यावहारिक परमाणु कहा गया है। विज्ञान-सम्मत अणु अनन्तप्रदेशी स्कन्ध है। व्यावहारिक परमाणु भी शस्त्र से
. परमाणु के लिए जो नियम निर्दिष्ट है, असंख्यप्रदेशी स्कन्ध के नहीं टूटता। इस विषय में एक प्रश्न उपस्थित होता है-आगम-साहित्य में लिए भी वही नियम निर्दिष्ट है। अनन्तप्रदेशी स्कन्ध के लिए दो विकल्प हैं असिधारा से परमाणु छिन्न-भिन्न नहीं होता, यह कहा गया है। असि की धारा
-कोई एक अनन्तप्रदेशी स्कन्ध असिधारा से छिन्न-भिन्न होता है. कोई बहुत स्थूल होती है, इसलिए उससे परमाणु का विभाजन नहीं होता, यह सही एक नहीं होता। इसका हेतु यह है स्थूल परिणति वाला असिधारा से है। आधुनिक विज्ञान ने बहुत सूक्ष्म उपकरण विकसित किए हैं। उनसे छिन्न-भिन्न हो जाता है। सूक्ष्म परिणति वाला असिधारा से छिन्न-भिन्न नहीं व्यावहारिक परमाणु के विभाजन की संभावना की जा सकती है।
परमाण-खंधाण सअडढसमज्झादि-पदं
परमाणु-स्कन्धानां सार्द्ध-समध्यादि- परमाण-स्कन्धों का सार्द्ध समध्यादि-पद
पदम्
१६०. परमाणुपोग्गले णं भंते ! किं सअड्ढे परमाणुपुद्गल: भदन्त ! किं सार्ध: समध्य: १६०. 'भन्ते ! परमाणु-पुद्गल क्या स-अर्ध, स-मध्य समझे सपएसे? उदाहु अणड्ढे अमज्झे सप्रदेश:? उताहो अनर्ध: अमध्य: अ- और स-प्रदेश है? अथवा अनर्ध, अ-मध्य और अपएसे? प्रदेश:?
अप्रदेश है? गोयमा ! अणड्ढे अमज्झे अपएसे, नो गौतम! अनर्ध: अमध्य: अप्रदेश:, नो सार्ध: गौतम ! परमाणु-पुद्गल अनर्ध, अमध्य और अप्रदेश सअड्ढे नो समझे नो सपएसे।।
नो समध्य: नो सप्रदेशः।
है, स-अर्ध, स-मध्य और स-प्रदेश नहीं है।
१६१. दुप्पएसिए ण भंते ! खंधे किं सअड्ढे द्विप्रदेशिक: भदन्त ! स्कन्धः किं सार्ध: १६१. भन्ते ! द्विप्रदेशी स्कन्ध क्या स-अर्ध, स-मध्य समझे सपएसे? उदाहु अणड्ढे अमज्झे समध्य: सप्रदेश: ? उताहो अनर्धः अमध्यः और सप्रदेश है? अथवा अनर्ध, अमध्य और अपएसे? अप्रदेशः?
अप्रदेश है?
गोयमा! सअड्ढे अमज्झे सपएसे, नो अण- गौतम! सार्ध: अमध्य: सप्रदेशः, नो अनर्ध: ड्ढे नो समझे नो अपएसे।।
नो समध्य: नो अप्रदेश:
गौतम ! द्विप्रदेशी स्कन्ध स-अर्ध, अ-मध्य और सप्रदेश है, अनर्ध, स-मध्य और अ-प्रदेश नहीं है।
१६२. तिप्पएसिए ण भन्ते ! खंधे पुच्छा।
त्रिप्रदेशिक: भदन्त ! स्कन्धः पृच्छा।
गोयमा! अणड्ढे समज्झे सपएसे, नो सअड्ढे नो अमज्झे नो अपएसे।।
गौतम! अनर्ध: समध्य: सप्रदेश:, नो सार्ध: नो अमध्य: नो अप्रदेश:।
१६२. भन्ते ! त्रिप्रदेशी स्कन्ध क्या स-अर्ध, स-मध्य
और स-प्रदेश है? अथवा अनर्ध, अमध्य और अप्रदेश है? गौतम ! त्रिप्रदेशी स्कन्ध अनर्ध, स-मध्य और सप्रदेश है, स-अर्ध, अमध्य और अप्रदेश नहीं है।
१६३. जहा दुप्पएसिओ तहा जे समाते भाणि- यथा द्विप्रदेशिक: तथा ये समा: ते भणि- १६३. समसंख्या वाले (चतुःप्रदेशी, षट्प्रदेशी आदि)
२. वही, सू. ३९८। ३, अनु, म.यू.प. ५४८—ततोऽसीनिश्चयतः स्कन्धोऽपि व्यवहारनयमतेन व्यावहारिक: परमाणुरुक्तः। ४. भ.व. ५/१५६-अत्थेगइए नो छिज्जेज्जत्ति सूक्ष्मपरिणामत्वात् ।
५.(क) अणु, सू. ३९८ ।
(ख) अनु म.व.प. १४८-- इदमुक्तं भवति ----यद्यप्यनन्तैः परमाणुभिर्निष्पन्ना: काष्ठादय: शस्वछेदादिविषया दृष्टास्तथाप्यनन्तकस्याप्यनन्तभेदत्वात् तावत् प्रमाणेनैव परमाण्वनन्तकेन निष्पन्नोऽसौ व्यावहारिक: परमाणुर्गाद्यो यावत् प्रमाणेन निष्पन्नोद्यापि सूक्ष्मत्वानशस्त्रच्छेदादिविषयतामासादयतीति भावः।
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