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श. ५ : उ. ७ : सू. १५७-१५९
गोमा! नो इण सम, मो खलु तत् सत्यं गौतम! नायमर्थः समर्थः, नो खलु तत्र शस्त्रं
क्रामति ।
स भदन्त ! गंगाया: महानद्या: प्रतिस्रोतं 'हव्वं' आगच्छेत्।
कमइ ।
से मं भंते! गंगाए महानदीए पडिसोयं हव्वमागच्छेज्जा ?
हंता हव्वमागच्छेज्जा ।
से णं भंते! तत्थ विणिहावभावज्जेज्जा गोयमा ! नो इणट्ठे समट्ठे, नो खलु तत्थं
हन्त 'हवं' आगच्छेत् ।
स भदन्त तत्र चिनिपातं आपद्येत? गौतम ! नायमर्थः समर्थः, नो खलु तत्र शस्त्रं क्रामति ।
कमइ ।
से णं भंते ! उदगावत्तं वा उदगबिंदु वा ओ सभदन्त ! उदकावर्त्तं वा उदकबिन्दुं वा अवमाहेज्जा?
गाहेत?
हंता ओगाहेज्जा ।
हन्त अवगाहत ।
से णं भंते! तत्थ परियावज्जेज्या?
स भदन्त ! तत्र पर्यापद्येत?
गोयमा ! नो इणट्ठे समट्टे, नो खलु तत्थ गौतम ! नायमर्थः समर्थः, नो खलु तत्र शस्त्र सत्थं कमइ ।
कामति ।
१५८. एवं जाव असंखेज्जपएसिओ।।
१५९. अणतपएसिए णं भंते ! खंधे अगनिकायसमणं वा?
१९०
हंता वीइवएज्जा ।
से णं भंते । तत्थ उल्ले सिया ?
गोयमा ! अत्येगइए उल्ले सिया, अत्येगइए नो उल्ले सिया ।
से णं भंते! गंगाए महानईए पडिसोयं हत्वमागच्छेज्जा ?
हंता हव्वमागच्छेज्जा ।
से णं भंते! तत्य विणिहायमा? गोयमा ! अत्थेगइए विणिहायमावज्जेज्जा, अत्वेगइए नो विणिहायमाबन्जेज्जा । से णं भंते! उदगावतं वा उदगबिंदु वा ओगाहेजा?
एवं यावद असंख्येयप्रदेशिकः ।
हंता वीइवएज्जा ।
स भदन्त ! तत्र ध्मायेत?
से णं भंते । तत्व झियाएज्या ? गोवमा ! अत्थेमइए झियाएन्जा, अत्येगइए नो झियाएज्जा ।
गौतम अस्त्येककः ध्यायेत, अस्त्येककः नो ध्मायेत ।
से णं भंते ! पुक्खलसंवट्टगस्स महामेहस्स स भदन्त ! पुष्करसंवर्त्तकस्य महामेघस्य मज्झंमज्झेणं वीइवएज्जा ? मध्यंमध्ये व्यजेत? हन्त व्यतिव्रजेत ।
स भदन्त ! तंत्र आर्द्रः स्यात् ?
गौतम ! अस्त्येकक आई: स्यात् अस्त्ये ककः नो आर्द्रः स्यात् ।
स भदन्त ! गंगाया: महानद्या: प्रतिस्रोतं 'हवं' आगच्छेत् ?
हन्त 'हव्वं' आगच्छेत् । सभदन्त । तत्र विनिघात आपोत? गौतम ! अस्त्येककः विनिघातम् आपद्येत, अस्त्येककः नो विनिधातम् आपद्येत । स भदन्त ! उदकावर्त्तं वा उदकबिन्दु वा अवगाहेत?
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अनन्तप्रदेशिकः भदन्त ! स्कन्धः अग्निकायस्य मध्यमध्येन व्यतिव्रजेत् ? हन्त व्यतिव्रजेत् ।
हंता ओगाहेज्जा |
हन्त अवगाहेत ।
से णं भंते ! तत्थ परियावज्जेज्जा ?
स भदन्त ! तत्र पर्यापद्येत?
गोयमा ! अत्थेगइए परियावज्जेज्जा, अत्थे - गौतम ! अस्त्येककः पर्यापद्येत, अस्त्येककः
गइए नो परियावज्जेज्जा |
नोपपद्येत
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भगवई
गौतम ! यह अर्थ संगत नहीं है, परमाणु-पुद्गल पर शस्त्र नहीं चलता।
भन्ते ! क्या वह गंगा महानदी के प्रतिस्रोत में शीघ्र ही आ सकता है ?
हां, वह शीघ्र ही आ सकता है।
भन्ते ! क्या वह वहां विनिघात को प्राप्त होता है? गौतम ! यह अर्थ संगत नहीं है, परमाणु- पुद्गल पर शस्त्र नहीं चलता ।
भन्ते ! क्या वह जल के आवर्त्त या जल की बूंद पर अवगाहन कर सकता है?
हां, वह अवगाहन कर सकता है।
भन्ते ! क्या वह वहाँ पर पर पीड़ित होता है ? गौतम ! यह अर्थ संगत नहीं है, परमाणु- पुद्गल पर शस्त्र नहीं चलता।
१५८. इसी प्रकार यावत् असंख्येयप्रदेशिक स्कन्ध पर शस्त्र नहीं चलता।
१५९. भन्ते ! क्या अनन्तप्रदेशिक स्कन्ध अग्निकाय के बीचोबीच जा सकता है?
हां, वह जा सकता है।
भन्ते ! क्या वह वहां पर जलता है?
गौतम ! कुछ एक स्कन्ध जलते हैं, कुछ एक स्कन्ध नहीं जलते हैं।
भन्ते ! क्या वह अनन्त प्रदेशिक स्कन्ध पुष्कर संवर्त्तक महामेघ के बीचोबीच से जा सकता है?
हां, वह जा सकता है।
भन्ते ! क्या वह वहाँ पर आर्द्र होता है? गौतम! कुछ एक स्कन्ध भाई होते हैं, कुछ एक स्कन्ध आर्द्र नहीं होते।
भन्ते ! क्या वह गंगा महानदी के प्रतिसोत में शीघ्र ही आ सकता है?
हां, वह शीघ्र ही आ सकता है।
भन्ते ! क्या वह वहां विनिघात को प्राप्त होता है? गौतम ! कुछ एक स्कन्ध विनिघात को प्राप्त होते हैं, कुछ एक स्कन्ध विनिघात को प्राप्त नहीं होते। भन्ते ! वह जल के आवर्त या जल की बूंद पर अवगाहन कर सकता है?
हां, वह अवगाहन कर सकता है।
भन्ते ! क्या वह वहां विनष्ट होता है?
गौतम ! कुछ एक स्कन्ध विनष्ट होते हैं, कुछ एक
स्कन्ध विनष्ट नहीं होते।
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