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________________ भगवई १८९ श.५: उ.७: सू.१५०-१५७ २.द्विप्रदेशी स्कन्ध के तीन विकल्प१. स्यात् एजन २. स्यात् अनेजन ३. स्यात् देश में एजन, देश में अनेजन। ३. त्रिप्रदेशी स्कन्ध के पांच विकल्प १. स्याद् एजन २. स्याद् अनेजन ३. स्यात् एक देश में एजन, एक देश में अनेजन ४. स्यात् एक देश में एजन, दो देशों में अमेजन ५. स्यात् दो देशों में एजन, एक देश में अनेजन। ४. चतुःप्रदेशी स्कन्ध के छह विकल्प १-५ पूर्ववत् ६. स्यात् दो देशों में एजन, दो देशों में अनेजन। परमाणु-खंघाण छेदादि-पदं परमाणु-स्कन्धानां छेदादि-पदम् १५४. परमाणुपोग्गले णं भंते ! असिधारं वा परमाणुपुद्गल: भदन्त ! असिधारांवा क्षुर- खुरधारं वा ओगाहेज्जा? धारां वा अवगाहेत? हंता ओगाहेज्जा। हन्त अवगाहेत। से णं भंते ! तत्थ छिज्जेज्ज वा भिज्जेज्ज स भदन्त ! तत्र छिद्देत वा भिद्येत वा? वा? गोयमा ! नो तिणढे समढे, नो खलु तत्थ गौतम! नायमर्थः समर्थः। नो खलु तत्र शस्त्रं सत्थं कमइ॥ क्रामति परमाणु-स्कन्धों का छेदन आदि-पद १५४. 'भन्ते! क्या परमाणु-पुद्गल तलवार की धारा अथवा छुरे की धारा पर अवगाहन कर सकता है? हां, अवगाहन कर सकता है। भन्ते ! क्या वह (परमाणु-पुद्गल) वहां छिन्न अथवा भिन्न होता है? गौतम ! यह अर्थ संगत नहीं है। परमाणु-पुद्गल पर शस्त्र नहीं चलता। १५५. एवं जाव असंखेज्जपएसिओ। एवं यावद् असंख्येयप्रदेशिकः। १५५. इसी प्रकार यावत् असंख्येयप्रदेशिक स्कन्ध वक्तव्य है। १५६. अणतपएसिए णं भंते ! खंधे असिधारं वा खुरधारं वा ओगाहेज्जा? अनन्तप्रदेशिक: भदन्त ! स्कन्धः असिधारा १५६. भन्ते ! क्या अनन्तप्रदेशिक स्कन्ध तलवार की वा क्षुरधारां वा अवगाहेत? धारा अथवा छुरे की धारा पर अवगाहन कर सकता हां, अवगाहन कर सकता है। भन्ते ! क्या वह वहां छिन्न अथवा भिन्न होता है? हंता ओगाहेज्जा। हन्त अवगाहेत। से णं भन्ते ! तत्थ छिज्जेज्ज वा भिज्जेज्ज स भदन्त ! तत्र छिद्येत वा भिद्येत वा? वा? गोयभा! अत्थेगइए छिज्जेज्ज वा भिज्जेज्ज गौतम ! अस्त्येककः छिद्येत वा भिद्येत वा, वा, अत्थेगइए नो छिज्जेज्जवानो भिज्जेज्ज अस्त्येकक: नो छिद्येत वा नो भिद्येत वा। गौतम ! कुछ स्कन्ध छिन्न-भिन्न होते है, कुछ स्कन्ध छिन्न अथवा भिन्न नहीं होते। वा।। १५७. परमाणुपोग्गले ण भंते ! अगणिकायस्स परमाणुपुद्गल: भदन्त ! अग्निकायस्य १५७. भन्ते ! क्या परमाणु-पुद्गल अग्निकाय के मज्झमज्झेणं वीइवएज्जा? मध्यंमध्येन व्यतिव्रजेत्? बीचोबीच से जा सकता है? हंता वीइवएज्जा। हन्त व्यतिव्रजेत्। हां, वह जा सकता है। से ण भंते ! तत्थ झियाएज्जा? स भदन्त! तत्र ध्यायेत? भन्ते ! क्या वह वहाँ पर जलता है? गोयमा! नो इणद्वे समढे, नोखलु तत्थ सत्थं गौतम! नायमर्थ: समर्थः, नोखलु तत्र शस्त्रं गौतम ! यह अर्थ संगत नहीं है, परमाणु-पुद्गल पर कमइ। क्रामति। शस्त्र नहीं चलता। से ण भंते ! पुक्खलसवट्टास्स महामेहस्स स भदन्त ! पुष्करसंवर्तकस्य महामेघस्य । भन्ते ! क्या वह पुष्कर संवर्तक महामेघ के बीचोबीच मज्झमज्झेणं वीइवएज्जा? मध्यंमध्येन व्यतिव्रजेत्? से जा सकता है? हंता वीइवएज्जा। हन्त व्यतिव्रजेत्। हां, वह जा सकता है। से णं भंते ! तत्थ उल्ले सिया? स भदन्त ! तत्र आईः स्यात्? भन्ते ! क्या वह वहां पर आर्द्र होता है? Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003594
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02 Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2000
Total Pages596
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size20 MB
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