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भगवाई
१२९. गाहावइस्स णं भंते ! भंडं विक्किणमाणस्स कइए भंड साइज्जेजा, भंडे य से अणुवणीए सिया।
गाहाबइस्स णं भंते ! ताओ भंडाओं किं आरंभिया किरिया कब? जावमिच्छा दंसणकिरिया कन्जह?
कइयस्स वा ताओ भंडाओ किं आरंभिया किरिया कन्जह? जाव मिच्छादंसणकिरिया कन्जइ ?
गोयमा ! गाहावइस्स ताओ भंडाओ आरंभिया किरिया कज्जइ जाव अपच्चक्खाकिरिया कन्जर मिच्छादंसणकिरिया सिय कज्जइ, सिय नो कज्जइ । कइयस्सणं ताओ सव्वाओ पणुईभवंति ॥ १३०. गाहाबहस्स णं भन्छे ! भं विक्किणमाणस्स कइए भंड साइज्जेजा, भंडे से उवणीए सिया ।
कइयस्स णं भंते ! ताओ भंडाओ कि आरंभिया किरिया कज्जह? जाव मिच्छादंसण किरिया कज्जइ ?
गाहावइस्स वा ताओ भंडाओ कि आरंभिया किरिया कज्ज जाव मिच्छादंसणकिरियाकज्जइ ?
गोयमा ! कइयस्स ताओ भंडाओ हेट्ठिल्लाओ बचारि किरियाओं कन्वंति मिच्छादंसणकिरिया भयणाए । गाहावइस्स णं ताओ सव्वाओ पयणुईभवंति । गृहपतेः ताः सर्वाः प्रतनुकीभवन्ति ।
गौतम ! क्रयिकस्य तस्माद् भाण्डाद् अधस्तना: चतस्रः क्रियाः क्रियन्ते । मिथ्यादर्शनक्रिया भजनया ।
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१३१. गाहावइस्स णं भंते! भंडं विक्किणमाणस्स कइए भंड साइज्जेचा धने व से अवणी सिया । कइयस्स णं भंते ! ताओ धणाओ कि आरं भिया किरिया कज्जइ ? जाव मिच्छादंसणकिरिया कज्जइ? गाहावइस्स वा ताओ धणाओ कि आरंभिया किरिया कन्ज? जावमिच्छादंसण किरिया कज्जइ ?
गोयमा ! कइयस्स ताओ धणाओ हेट्ठिल्लाओ चत्तारि किरियाओ कज्जति । मिच्छादंसणकिरिया भयणाए ।
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गृहपतेः भदन्त ! भाण्डं विक्रीणानस्य क्रयिकः भाण्डं स्वादयेत्, भाण्डं च तस्य अनुपनीतं स्यात्।
गृहपतेः भदन्त ! तस्माद् भाण्डात् किम् आरम्भिकी क्रिया क्रियते ? यावन् मिथ्यादर्शनक्रिया क्रियते?
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क्रयिकस्य वा तस्माद् भाण्डत् किम् आरम्भिकी क्रिया क्रियते ? यावन मिथ्यादर्शनक्रिया क्रियते ?
गौतम ! गृहपतेः तस्माद् भाण्डात् आरम्भिकी क्रिया क्रियते यावत् अप्रत्याख्यानक्रिया क्रियते मिथ्यादर्शनक्रिया स्यात् क्रियते, स्वाननो क्रियते। कायिकस्य ताः सर्वाः प्रतनुकीभवन्ति ।
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गृहपतेः भदन्त ! भाण्डं विक्रीणानस्य क्रयिकः भाण्डं स्वादयेत्, भाण्डं तस्य उपनीतं स्यात्।
क्रयिकस्य भदन्त ! तस्माद् भाण्डात् किम् आरम्भिकी क्रिया क्रियते ? यावन् मिथ्यादर्शनक्रिया क्रियते ?
गृहपतेर्वा तस्माद् भाण्डाद् किम् आरम्भि की क्रिया क्रियते यावन् मिथ्यादर्शनक्रिया क्रियते?
गृहपतेः भदन्त भाण्डं विक्रीणानस्य क्रपिकः भाण्डं स्वादयेत् धनं च तस्य अनुपनीतं स्यात् ।
क्रयिकस्य भदन्त ! तस्माद् धनात् किम् आरम्भिकी क्रिया क्रियते ? यावन् मिथ्यादर्शनक्रिया क्रियते ?
गृहपतेर्वा तस्माद् धनाद् किम् आरम्भिकी क्रिया क्रियते? बावन मिथ्यादर्शनक्रिया क्रियते ?
गौतम ! क्रयिकस्य तस्माद्धनाद् अधस्तनाः चतलः क्रियाः क्रियन्ते मिथ्यादर्शनक्रिया
भजनया ।
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श. ५: उ. ६: सू.१२९-१३१
१२९ भन्ते ! एक गृहपति भाण्ड बेच रहा है, ग्राहक भाण्ड को वचनबद्ध होकर स्वीकार कर लेता है, किन्तु अभी तक उसने भाण्ड को ग्रहण नहीं किया है। भन्ते ! उस भाण्ड से गृहपति के क्या आरम्भिकी क्रिया होती है ? यावत् मिथ्यादर्शन क्रिया होती है?
उस भाण्ड से ग्राहक के क्या आरम्भिकी क्रिया होती है? यावत् मिथ्यादर्शन क्रिया होती है?
गौतम ! उस भाण्ड से गृहपति के आरम्भिकी क्रिया होती है यावत् अप्रत्याख्यान क्रिया होती है। मिथ्यादर्शन क्रिया कदाचित् होती है, कदाचित् नहीं होती है।
ग्राहक के ये सब क्रियाएं पतली हो जाती हैं।
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१३० भन्ते एक गृहपति भाण्ड बेच रहा है, ग्राहक भाण्ड को वचनबद्ध होकर स्वीकार कर लेता है और उसे ग्रहण कर लेता है।
भन्ते ! उस भाण्ड से ग्राहक के क्या आरम्भिकी क्रिया होती है? यावत् मिथ्यादर्शनक्रिया होती है?
उस भाण्ड से गृहपति के क्या आरम्भिकी क्रिया होती है? यावत् मिथ्यादर्शनक्रिया होती है?
गौतम ! उस भाण्ड से ग्राहक के प्रथम चार क्रियाएं होती है। मिथ्यादर्शनक्रिया की भजना है— कदाचित् होती है, कदाचित नहीं होती।
गृहपति के वे सब क्रियाएं पतली हो जाती है।
१३१. भन्ते ! एक गृहपति भाण्ड बेच रहा है ग्राहक भाण्ड को वचनबद्ध होकर स्वीकार कर लेता है, पर गृहपति ने धन ग्रहण नहीं किया है।
भन्ते ! उस धन से ग्राहक के क्या आरम्भिकी क्रिया होती है? यावत् मिथ्यादर्शनक्रिया होती है?
उस धन से गृहपति के क्या आरम्भिकी क्रिया होती है ? यावत् मिथ्यादर्शनक्रिया होती है ?
गौतम ! उस धन से ग्राहक के प्रथम चार क्रियाएं होती हैं। मिथ्यादर्शनक्रिया की भजना है— कदाचित् होती है, कदाचित नहीं होती।
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