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________________ छट्ठो उद्देसो : छठा उद्देशक मूल संस्कृत छाया हिन्दी अनुवाद अप्पायु-दीहायु-पदं अल्पायु-र्दीर्घायु:-पदम् १२४. कहण्णं भंते ! जीवा अप्पाउयत्ताए कथं भदन्त ! जीवा: अल्पायुष्यकतया कर्म कम्मं पकरेंति? प्रकुर्वन्ति? गोयमा ! पाणे अइवाएत्ता, मुसं वइत्ता, गौतम ! प्राणान् अतिपात्य, मृषां वदित्वा, तहारूवं समणं वा माहणं वा अफासुएणं तथारूपं श्रमणं वा माहनं वा अप्रासुकेन अणेसणिज्जेणं असण-पाण-खाइम-साइ- अनेषणीयेन अशन-पान-खाद्य-स्वाधेन मेणं पडिलाभेत्ता-एवं खल जीवा अप्पा- प्रतिलाभ्य-एवं खलु जीवा: अल्पाउयत्ताए कम्मं पकरेंति॥ युष्कतया कर्म प्रकुर्वन्ति। अल्पायु-दीर्घायु-पद १२४. 'भन्ते! जीव अल्प आयुष्य वाले कर्म का बन्ध कैसे करते हैं? गौतम ! प्राणों का अतिपात कर, झूठ बोल कर, तथारूप श्रमण अथवा माहन को अप्रासुक और अनेषणीय अशन, पान, खाद्य, स्वाद्य से प्रतिलाभित कर—इस प्रकार जीव अल्प आयुष्य वाले कर्म का बन्ध करते हैं। १२५. कहण्णं भंते! जीवादीहाउयत्ताए कम्मं कथं भदन्त ! जीवा: दीर्घायुष्कतया कर्म १२५. भन्ते ! जीव दीर्घ आयुष्य वाले कर्म का बन्ध पकरेंति? प्रकुर्वन्ति? कैसे करते हैं? गोयमा! नो पाणे अइवाएत्ता, नो मुसं वइत्ता, गौतम ! नो प्राणान् अतिपात्य, नो मृषां। गौतम ! प्राणों का अतिपात न कर ,झूठन बोल कर, तहारूवं समणं वा माहणं वा फासुएणं वदित्वा, तथारूपं श्रमणं वा माहनं वा । तथारूप श्रमण अथवा माहन को प्रासुक और एषणीय एसणिज्जेणं असण-पाण-खाइम-साइमेणं प्रासुकेन एषणीयेन अशन-पान-खाद्य अशन, पान, खाद्य, स्वाद्य से प्रतिलाभित करपडिलाभेत्ता-एवं खलु जीवा दीहाउयत्ताए -स्वाद्येन प्रतिलाभ्य—एवं खलु जीवा: इस प्रकार जीव दीर्घ आयुष्य वाले कर्म का बन्ध कम्म पकरेंति ॥ दीर्घायुष्कतया कर्म प्रकुर्वन्ति। करते हैं। असुभसुभ-दीहायु-पदं अशुभशुभ-दीर्घायु:-पदम् १२६. कहण्णं भंते ! जीवा असुभदीहाउयत्ताए कथं भदन्त ! जीवा: अशुभदीर्घायुष्कतया कम्मं पकरेंति? कर्म प्रकुर्वन्ति? गोयमा ! पाणे अइवाएत्ता, मुसं वइत्ता, गौतम ! प्राणान् अतिपात्य, मृषां वदित्वा, तहारूवं समण वा माहणं वा हीलित्ता निंदित्ता तथारूपं श्रमणं वा माहनं वा हीलित्वा खिंसित्ता गरहित्ता अवमण्णित्ता अण्णयरेणं निन्दित्वा खिंसयित्वा गर्हित्वा अवमन्य अमणुण्णेणं अपीतिकारएणं असण-पाण- अन्यतरेण अमनोज्ञेन अप्रीतिकारकेन अ-खाइम-साइमेणं पडिलाभेत्ता–एवं खलु शन-पान-खाद्य-स्वाद्येन प्रतिलाभ्यजीवा असुभदीहाउयत्ताए कम्मं पकरेंति॥ एवं खलु जीवा: अशुभदीर्घायुष्कतया कर्म प्रकुर्वन्ति। अशुभ-शुभ-दीर्घायु-पद १२६. भन्ते ! जीव अशुभ दीर्घ आयुष्य वाले कर्म का बन्ध कैसे करते हैं? गौतम ! प्राणों का अतिपात कर, झूठ बोल कर, तथारूप श्रमण अथवा माहन की अवहेलना, निन्दा, तिरस्कार, गर्दा और अवमानना कर तथा किसी प्रकार के अमनोज्ञ एवं अप्रीतिकर, अशन, पान, खाद्य, स्वाद्य से प्रतिलाभित कर जीव-इस प्रकार अशुभ दीर्घ आयुष्य वाले कर्म का बन्ध करते हैं। १२७. कहण्णं भंते ! जीवा सुभदीहाउयत्ताए कथं भदन्त! जीवा: शुभदीर्घायुष्कतया कर्म कम्म पकरेंति? प्रकुर्वन्ति? १२७. भन्ते ! जीव शुभ दीर्घ आयुष्य वाले कर्म का बन्धन कैसे करते है? Jain Education Interational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003594
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02 Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2000
Total Pages596
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size20 MB
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