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भगवई
अभिसमण्णागयाई भवंति से dj गोयमा ! एवं वुच्चइ - पभू णं चोदसपुब्वी घडाओ घडससहस्सं, पडाओ पडसहस्सं, कढाओ कडसहस्सं रहाओ रहसहस्सं, छत्ताओ छत्तसहस्सं, दंडाओ दंडसहस्सं अभिनिव्वत्ता उवसेत्तए ।
१.
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प्राप्तानि अभिमन्यागतानि भवन्ति तत्तेनार्थेन गौतम ! एवमुच्यते — प्रभुः चतुर्दशपूर्वी घटात् घटसहस्रं, पटातू पटसहस्रं कटात् कटसहस्रं रथात् रथसहस्रं छत्रात् छत्रसहस्रं, दण्डात् दण्डसहस्रम् अभिनिर्वत्र्त्य उपदर्शयितुम् ।
सूत्र ११२, ११३
प्रस्तुत आलापक में एक पदार्थ से उसके समान हजारों पदार्थ निर्माण करने की क्षमता के सिद्धान्त का प्रतिपादन किया गया है। बहुरूप निर्माण का सिद्धान्त है उत्कारिक - उत्कारिकाभेदा
भाष्य
पण्णवणा में पांच प्रकार के भेद बतलाए गए हैं—
१. खण्ड भेद २. प्रतर भेद ३. चूर्णिका भेद ४. अनुतटिका भेद ५. उत्करिका भेदा
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जैसे एरण्ड का बीज उछलता है वैसे एक परमाणु स्कन्ध से दूसरे परमाणु-स्कन्ध का चटक कर उछलना उत्कारिका भेद है।'
चतुर्दशपूर्वी को श्रुतज्ञान के द्वारा उत्कारिका भेद की प्रक्रिया ज्ञात होती है। उसके माध्यम से लब्धि सम्पन्न चतुर्दशपूर्वी एक पदार्थ के समान अनेक पदार्थों का निर्माण कर सकता है। '
पतञ्जलि ने अणिमा आदि आठ ऐश्वर्यों का निरूपण किया है। *
११४. सेवं भंते! सेवं भन्ते ! ति ॥
१. भ. वृ. ५/११३- -इह चोत्कारिकाभेदग्रहणं तद्भिन्नानामेव द्रव्याणां विवक्षितघटादिनिष्पादन सामर्थ्यमस्ति नान्येषाम् ।
२. पण १११७३ ७९ ।
३. भ. वृ. ११३ – तन्त्रोत्कारिकाभेदेन भिद्यमानानि 'लाई' त्ति लब्धिविशेषाद्ग्रहणविशयतां गतानि पत्ताई' त्ति तत एव गृहीतानि 'अभिसमन्नागयाई' त्ति घटादिरुदपेण परिणामयितुमारब्धानि
हैं।
१. अणिमा २. लघिमा ३. महिमा ४ प्राप्ति ५. प्राकाम्य ६. वशित्व ७. ईशितृत्व ८. यत्रकामावसायित्वा ईशितृत्व भौतिक पदार्थों के प्रभव, नाश और व्यूह में सक्षम होता है। ' अणिमा आदि ऐश्वर्यों की प्राप्ति भूत-जय की प्रक्रिया है— स्थूल, स्वरूप, सूक्ष्म, अन्वय और अर्थवत्त्व। इन पांच प्रकार के भूतरूपों में संयम करना।'
५
शब्द-विमर्श
तदेवं भदन्त ! तदेवं भदन्त ! इति ।
हो जाता है।
श. ५: उ. ४ सू. ११२ ११४
हैं।
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गौतम ! इस अपेक्षा से यह कहा जा रहा हैचतुर्दशपूर्वी एक घडे से हजार घड़े, एक वस्त्र से हजार वस्त्र, एक चटाई से हजार चटाइयां, एक रथ से हजार रथ, एक छत्र से हजार छत्र और एक दण्ड से हजार दण्ड उत्पन्न कर दिखाने में समर्थ है।
लब्ध- उत्करिका भेद से भिद्यमान परमाणु-स्कन्ध ज्ञात हो जाते
प्राप्त वे गृहीत हो जाते हैं।
अभिसमन्वागत उनका घट आदि के रूप में परिणमन प्रारम्भ
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११४. भन्ते ! वह ऐसा ही है, भन्ते ! वह ऐसा ही है
ततस्तैर्घट सहस्त्रादि निर्वर्त्तयति, आहारिक शरीरवत् निर्वर्त्य च दर्शयति जनानाम् । ४. पा.यो. द. ३ / ४५ - ततोऽणिमादिप्रादुर्भावः कायसम्पत्तद् धर्मानभिघातश्च । ५. वही, ३ / ४५ भाष्य ईशितृत्वं तेषां प्रभवाप्यय व्यूहानामीष्टे । ६. वही, ३ / ४४ - स्थूलस्वरूपसूक्ष्मान्वयार्थवत्त्वसंयमाद् भूतजयः ।
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