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________________ श.५ : उ.४: सू.८५-८८ १६० भगवई नमसामि जाव पज्जुवासामि, इमाइ च णं नमस्यामि यावत् पर्युपासे, इमानि च एतएयारूवाई वागरणाई पुच्छिस्सामि त्ति कटु द्रूपाणि व्याकरणानि प्रक्ष्यामि इति कृत्वा । एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता उठाए उढेइ, उठेत्ता एवं संप्रेक्षते, संपेक्ष्य उत्थया उत्तिष्ठति, जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवा- उत्थाय यत्रैव श्रमण: भगवान् महावीरः गच्छइ जाव पज्जुवासइ॥ तत्रैव उपागच्छति यावत् पर्युपास्ते। करते हैं, संप्रेक्षा कर उठने की मुद्रा में उठते हैं। उठ कर जहाँ श्रमण भगवान महावीर हैं, वहाँ आते हैं यावत् पर्युपासना करते हैं। ८६. गोयमादि ! समणे भगवं महावीरे भगवं गौतम ! अयि श्रमणो भगवान् महावीरः ८६. गौतम ! इस सम्बोधन से सम्बोधित कर श्रमण गोयमं एवं वयासी–से नूणं तव गोयमा! भगवन्तं गौतमम् एवमवादीत्-तन्नूनं तव भगवान महावीर भगवान गौतम से इस प्रकार बोले झाणंतरियाए वट्टमाणस्स इमेयारूवे गौतम! ध्यानान्तरिकायां वर्तमानस्य अय- -गौतम ! तुम ध्यानान्तरिका में वर्तमान थे तब अज्झत्थिए जाव जेणेव ममं अंतिए तेणेव मेतद्रुप: आध्यात्मिकः यावद् यत्रैव तुम्हारे यह इस प्रकार का आध्यात्मिक यावत् मनोगत हव्वमागए, से नूणं गोयमा! अहे समढे? ममान्तिकं तत्रैव 'हव्व'मागत: तन् नूनं संकल्प उत्पन्न हुआ और तुम शीघ्र ही मेरे निकट आ गौतम ! अर्थ: समर्थ: ? गए, गौतम ! क्या यह अर्थ संगत है? हंता अत्थि। हन्त अस्ति। हां, यह संगत है। तं गच्छाहिणं गोयमा ! एए चेव देवा इमाई तद् गच्छ गौतम! एतौ चैव देवौ इमानि । गौतम ! जाओ, ये देव ही तुम्हें इन इस प्रकार के एयारूवाइं वागरणाई वागरेहिति॥ एतद्रूपाणि व्याकरणानि व्याक-रिष्यतः। प्रश्नों का उत्तर देंगे। ८७. तए णं भगवं गोयमे समणेणं भगवया ततो भगवान् गौतमः श्रमणेन भगवता महा- ८७. भगवान् गौतम श्रमण भगवान महावीर से अनुज्ञा महावीरेणं अब्भणुण्णाए समाणे समणं भगवं वीरेण अभ्यनुज्ञातः सन् श्रमणं भगवन्तं प्राप्त होने पर श्रमण भगवान् महावीर को वन्दनमहावीरं वंदइ नमसइ, जेणेव ते देवा तेणेव महावीरं वन्दते नमस्यति, यत्रैव तौ देवौ तत्रैव नमस्कार करते हैं, जहां वे देव हैं वहां जाने का संकल्प पहारेत्थ गमणाए॥ प्राधारयत् गमनाय। करते हैं। ८८. तए णं ते देवा भगवं गोयम एज्जमाणं ततस्तौ देवी भगवन्तं गौतमम् आयन्तं ८८. वे देव भगवान् गौतम को आते हुए देखते हैं। देख पासंति, पासित्ता हट्ठचित्तमाणंदिया णंदिया पश्यत: दृष्ट्वा हृष्टतुष्टचित्तौ आनन्दितौ कर वे हर्षित सन्तुष्ट चित्तवाले, आनन्दित, नन्दित पीइमणा परमसोमणस्सिया हरिसवसविस- नन्दितौ प्रीतिमनसौ परमसौमनस्थितौ हर्ष- प्रीति-पूर्ण मन वाले, परम सौमनस्य और हर्ष से प्पमाणहियया खिप्पामेव अब्भुट्टेति, अब्भु- वशविसर्पहृदयौ क्षिप्रमेव अभ्युपगच्छतः उल्लसित हृदय होकर शीघ्रता से उठते हैं, उठ कर द्वेत्ता खिप्पामेव अब्भुवगच्छंति जेणेव भगवं यत्रैव भगवान् गौतमस्तत्रैव उपागच्छतः शीघ्रता से उनके सम्मुख आते हैं, जहाँ भगवान् गौतम गोयमे तेणेव उवागच्छंति जाव नमंसित्ता एवं यावन् नमस्यित्वा एवमवादिष्टाम्-एवं है, वहां उनके सम्मुख आते हैं, यावत् नमस्कार कर वयासी—एवं खलु भंते! अम्हे महा- खलु भदन्त ! आवां महाशुक्रात् कल्पात् इस प्रकार बोले-भते! महाशुक्र कल्प के महासामान सुक्काओ कप्पाओ महासामाणाओ विमा- महासामानाद् विमानाद् द्वौ देवौ महर्द्धिको विमान से हम दो देव जो महर्द्धिक यावत् महाप्रभावी णाओ दो देवा महिड्ढिया जाव महाणुभागा यावद् महानुभागौ श्रमणस्य भगवत: महा- हैं, श्रमण भगवान महावीर के निकट आए हैं। हम समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियं वीरस्य अन्तिकं प्रादुर्भूतौ। तत: आवां श्रमणं श्रमण भगवान महावीर को वन्दन-नमस्कार कर पाउन्भूया। तएणं अम्हे समणं भगवं महावीर भगवन्तं महावीर वन्दावहे नमस्याव:, मानसिक स्तर पर ये इस प्रकार के प्रश्न पूछते वंदामो नमसामो, वंदित्ता नमंसित्ता मणसा वन्दित्वा नमस्यित्वा मनसा चैव इमानि हैं-भन्ते ! आपके कितने सौ अन्तेवासी सिद्ध होंगे चेव इमाई एयारूवाई वागरणाई पुच्छामो- एतद्रूपाणि व्याकरणानि पृच्छावः-कति यावत् सब द:खों का अन्त करेंगे। हमारे द्वारा मानसिक कइ णं भंते ! देवाणुप्पियाणं अंतेवासीसयाई भदन्त ! देवानुप्रियाणाम् अन्तेवासिशतानि स्तर पर पूछे गए प्रश्न का श्रमण भगवान महावीर हमें सिज्झिहिंति जाव अंतं करेहिंति? तए णं सेत्स्यन्ति यावद् अन्तं करिष्यन्ति? ततः । मानसिक स्तर पर यह इस प्रकार का उत्तर देते हैं समणे भगवं महावीरे अम्हेहिं मणसा पुढे श्रमण: भगवान् महावीर: आवाभ्यां मनसा -देवानुप्रियो ! मेरे सात सौ अन्तेवासी सिद्ध होंगे अम्हं मणसाचेव इम एयारूवं वागरणं वागरेइ पृष्टः आवां मनसा चैव इदम् एतद्रूपं व्याकरणं यावत् सब दु:खों का अन्त करेंगे। हमारे द्वारा मानसिक —एवं खलु देवाणुप्पिया ! मम सत्त अंते- व्याकरोति—एवं खलु देवानुप्रियौ ! मम स्तर पर पूछे गए प्रश्न का श्रमण भगवान महावीर वासीसयाइं जाव अंतं करेहिति। तएणं अम्हे सप्त अन्तेवासिशतानि यावदन्तं करिष्यन्ति। द्वारा मानसिक स्तर पर ही यह इस प्रकार का उत्तर समणेणं भगवया महावीरेणं मणसा चेव पुढेणं तत: आवां श्रमणेन भगवता महावीरेण दिए जाने पर हम श्रमण भगवान महावीर को वन्दन Jain Education Intemational For Private & Personal use only www.jainelibrary.org
SR No.003594
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02 Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2000
Total Pages596
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size20 MB
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