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श. ५ : उ. ४ : सू. ७८-८२
वदासी
एवं खलु देवाणुप्पियाणं अंतेवासी अइमुत्ते नामं कुमार समणे, से णं भंते! अइमुत्ते कुमार-समणे कतिहिं भवग्गहणेहिं सिज्झिहिति बुज्झिहिति मुच्चिहिति परिणिव्वाहिति सब्वदुक्खाणं अंत करेहिति ?
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८१. अज्जोति ! समणे भगवं महावीरे ते थेरे एवं वयासी – एवं खलु अज्जो ! ममं अंतेवासी अमुत्ते नामं कुमार - समणे पगइभद्दए जाव विणीए से णं अइमुत्ते कुमार-समणे इमेणं चैव भवग्गहणेणं सिज्झिहिति जाव अंत करेहिति । तं मा णं अज्जो ! तुब्भे अमुत्तं कुमार समणं हीलेह निंदह खिंसह गरहह अवमण्णह । तुब्भे पणं देवाप्पिया ! अमुत्तं कुमार-समणं अगिलाए संगिण्णहह, अगिलाए उवगिण्हह, अगिलाए भत्तेणं पाणेण विणणं वेयावडियं करेहा अमुत्ते णं कुमार समणे अंतकरे चैव, अंतिमसरीरिए चेव ॥
८२. तए णं ते थेरा भगवंतो समणेणं भगवया महावीरेण एवं वृत्ता समाणा समणं भगवं महावीरं वंदति नमसंति, अमुर्त कुमारसमणं अगिलाए संगिण्हंति, अगिलाए उवगिण्हंत, अगिलाए भत्तेणं पाणेणं विणएणं वेयावडियं करेंति ॥
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एवं खलु देवानुप्रियाणाम् अन्तेवासी अतिमुक्तः नाम कुमार श्रमण:, स भदन्त ! अतिमुक्तः कुमार श्रमणः कतिभिर्भवग्रहणैः सेत्स्यति 'बुज्झिहिति' मोक्ष्यति परिनिर्वास्यति सर्वदुःखानामन्तं करिष्यति ?
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१. सूत्र ७८-८२
२.
अतिमुक्तक का जीवन-वृत्त अंतगडदसाओ में मिलता है। वहाँ पात्र को नौका बनाकर जल में तिराने की घटना का उल्लेख नहीं है। वृत्तिकार कुमार श्रमण की व्याख्या में लिखा है कि कुमार अतिमुक्तक छह वर्ष की अवस्था में प्रब्रजित हुआ था। इस घटना को उन्होंने आश्चर्यजनक माना है।' अंतगडदसाओ में दीक्षाकालीन अवस्था का उल्लेख नहीं है। कुमार ने माता-पिता के सामने दीक्षा लेने की इच्छा प्रगट की तब माता-पिता ने कहा — पुत्र ! अभी तुम बालक हो, असंबुद्ध हो, तुम धर्म को क्या जानते हो"तए णं तं अहमुतं कुमारं अम्मापियरो एवं क्यासी
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आर्याः ! इति श्रमण भगवान् महावीरः तान् ८१. आर्यो ! श्रमण भगवान् महावीर ने उन स्थिविरों से स्थविरान् एवमवादीद् — एवं खलु आर्याः ! इस प्रकार कहा -आर्यो ! मेरा अन्तेवासी अतिमुक्त मम अन्तेवासी अतिमुक्तः नाम कुमार- नामक कुमार श्रमण जो प्रकृति से भद्र यावत् विनीत - भ्रमणः प्रकृतिभद्रकः याबद् विनीत, स है वह कुमार श्रमण अतिमुक्त इसी भव में सिद्ध होगा अतिमुक्त: कुमार- श्रमणः अनेन चैव भवयावत् सब दुःखों का अन्त करेगा। आर्यों! इसलिए ग्रहणेन सेत्स्यति यावद् अन्तं करिष्यति । तुम कुमार श्रमण अतियुक्त की अवहेलना, निन्दा, तन्मा आर्या ! यूयम् अतिमुक्तं कुमार-श्रमणं तिरस्कार गर्हा और अवमानना मत करो। देवाहीलयत निन्दत खिंसत गर्हध्वम् अव- नुप्रियो ! तुम कुमार श्रमण अतिमुक्त को अग्लान मन्यध्वम् यूयम् देवानुप्रिया ! अतिमुक्तं भाव से स्वीकृत करो, अग्लान भाव से आलम्बन दो कुमार- श्रमणम् अग्लान्या संगृह्णीत, और अम्लान भाव से विनयपूर्वक भोजन पानी से अग्लान्या उपगृह्णीत, अग्लान्या भक्तेन उसकी वैयापृत्य करो। कुमार श्रमण अतिमुक्त संसार पानेन विनयेन वैवातृत्वं कुरुता अतिमुक्तः का अन्त करने वाला है और अन्तिमशरीरी है। कुमार श्रमणः अन्तकरश्चैव अन्तिमशरीरिकश्चैव ।
ततः ते स्थविरा: भगवन्त: श्रमणेन भगवता महावीरेण एवम् उक्ताः सन्तः श्रमण भगवन्तं महावीरं वदन्ते नमस्यन्ति, अतिमुक्तं कुमारश्रमणम् अग्लान्या संगृह्णन्ति, अग्लान्या उपगृह्णन्ति, अग्लान्या भक्तेन पानेन विनयेन वैवात्यं कुर्वन्ति ।
भाष्य
१. अंत. ६ / १५
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२. भ. वृ. ५/७८ कुमारसमणे' त्ति षड्वर्षजातस्य तस्य प्रव्रजितत्वात् आह च- - "छव्वरिसो पव्वइओ निग्गंथं रोइऊण पावयणं" ति, एतदेव चाश्चर्यमिह अन्यथा वर्षाष्टकादारान्न प्रवज्या
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भगवई
आते हैं, आ कर इस प्रकार बोलेभन्ते! आपका अन्तेवासी अतिमुक्त नाम का कुमार श्रमण जो है । भन्ते ! वह कुमार श्रमण अतिमुक्त कितने जन्म लेकर सिद्ध, प्रशान्त, मुक्त और परिनिवृत्त होगा और सब दुःखों का अन्त करेगा ?
स्यादिति ।
३. अंत. ६/१५/९९/
बाले सिताब तुमं पुत्ता! असंबुद्धे, किं णं तुगं आणसि धम्मं ?"" अतिमुक्तक बालवय में दीक्षित हुए थे, यह असंदिग्ध है।
शब्द-विमर्श
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८२. श्रमण भगवान् महावीर द्वारा ऐसा कहे जाने पर वे स्थविर भगवान श्रमण भगवान महावीर को वन्दननमस्कार करते हैं, कुमार श्रमण अतिमुक्त को अग्लान भाव से स्वीकार करते हैं, अग्लान भाव से आलम्बन देते हैं और अग्लान भाव से विनयपूर्वक भोजनपानी से उसकी वैयापृत्य करते हैं।
अगिला — अग्लानि । संगिण्हड स्वीकार करो।
उवगिण्हह — आलम्बन दो ।
अंतकर - जन्म-मरण का अंत करने वाला ।
अंतिमसरीरी चरम शरीरी इसी जन्म में मोक्ष जाने वाला।
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