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________________ श.५: उ.४: सू.७२-७७ १५६ भगवई सामञ्जस्य देखा जा सकता है। कारण भी व्यक्ति द्वारा सपने में देखी चीज का अनुसरण करना होता है पूरे निद्रा-समय को निद्रा-चक्रों में विभक्त किया जा सकता है। लेकिन मांसपेशियों की अति शिथिलता के कारण व्यक्ति स्वयं गति एक व्यक्ति का निद्रा-चक्र लगभग ९० मिनट में पूरा होता है। (८ घंटे नहीं कर पाता है। यह गहरी नींद वाली अवस्था है। इस नींद का स्मरणसोने पर ऐसे ५ चक्र होंगे) एक निद्रा-चक्र दो भागों में पूरा होता है। शक्ति की चकबंदी (कोन्सोलिडेशन) करने में महत्त्व माना जाता है। इसका ७०-८० प्रतिशत प्रथम भाग यानी लगभग ७० मिनट 'नोन एनआरईएम अवस्था में देखे गए सपने सामान्यत: याद नहीं रहते हैं, रैपिड आई मूवमेंट' में तथा लगभग २०-२५ प्रतिशत रहा शेष समय बल्कि आरईएम नींद में देखे गए सपने सामान्यत: याद रहते हैं। यानी लगभग २० मिनट 'रैपिड आई मूवमेंट' नींद में व्यतीत होता है। निद्रा उत्पत्ति की क्रियाविधि के बारे में कई मान्यताएं हैं। 'नोन रैपिड आई मूवमेंट' (एनआरईएम) नींद विश्राम की अवस्था मस्तिष्क के जालीनुमा उन्नति तंत्र (रेटिकुलर एक्टीविटी सिस्टम) की होती है जिसे चार अवस्थाओं में विभक्त किया जा सकता है। (१) चपलता की कार्य-क्रिया के कारण व्यक्ति जागरण अवस्था में रहता है। झपकी आने वाली अवस्था (२) असंदिग्ध स्पष्ट नींद (३) व (४) जब इस तंत्र की चपलता में कोई बाधा होती है तो नींद की अवस्था आ गहरी नींद की अवस्था होती है। रैपिड आई मूवमेंट' (आरईएम) नींद जाती है। साथ ही मस्तिष्क के कुछ हिस्सों के तंत्रिकातंतु जो कि को असत्यभासी या विरोधाभासी नींद भी कहते हैं क्योंकि इसमें 'सिरोटोनीन' नामक पदार्थ मुक्त करते हैं, के उत्तेजित होने पर नींद मस्तिष्क की अति सक्रियता व अति चपलता के बावजूद भी व्यक्ति आती है। आरईएम नींद का कारण मस्तिष्क के पोंस भाग में स्थित नींद की अवस्था में रहता है। इसमें आंखें तेजी से गति करती है। 'लोकस सेरूलियस' तथा इनके 'नारएड्रिनर्जिक' तंत्रिकातंतुओं के सामान्यत: इसी अवस्था में सपने देखे जाते हैं। आंखों की गति का उत्तेजित होने को माना जाता है। गब्भसाहरण-पदं गर्भसंहरण-पदम् गर्भ-संहरण-पद ७६. से नूणं भंते ! हरि-नेगमेसी सक्कदूए तन्नूनं भदन्त ! हरि-नैगमेषी शक्रदूत: स्त्रीगर्भ ७६. 'भन्ते ! शक्र का दूत हरि-नैगमैषी देव स्त्री के इत्थीगभं संहरमाणे किं गब्भाओ गब्भं संहरन् किं गर्भाद् गर्भ संहरति? गर्भाद् योनिं शरीर में से गर्भ का संहरण करता हुआ क्या गर्भ से साहरइ? गम्भाओ जोणिं साहरइ? जोणीओ संहरति? योनितो गर्भ संहरति? योनितः गर्भ में संहरण करता है? गर्भ से योनि में संहरण करता गन्भं साहरइ? जोणीओ जोणिं साहरइ? योनिं संहरति? है? योनि से गर्भ में संहरण करता है? योनि से योनि में संहरण करता है? गोयमा ! नो गब्भाओ गब्भं साहरइ, नो गौतम ! नो गर्भाद् गर्भ संहरति, नो गर्भाद् गौतम ! गर्भ से गर्भ में संहरण नहीं करता, गर्भ से गब्भाओ जोणिं साहरइ, नो जोणीओ जोणिं योनि संहरति, नो योनित: योनिं संहरति, योनि में संहरण नहीं करता, योनि से योनि में संहरण साहरइ, परामुसिय-परामुसिय अव्वाबाहेणं परामृश्य-परामृश्य अव्याबाधेन अव्याबाधं नहीं करता, किन्तु वह हाथ से स्पर्श कर-कर अव्वाबाहं जोणीओ गन्भं साहरहा। योनित: गर्भ संहरति। सुखपूर्वक योनि से गर्भ में संहरण करता है। ७७. पभूणं भंते ! हरि-नेगमेसी सक्कदूए इत्थी- प्रभु: भदन्त! हरि-नैगमेषी शक्रदूत: स्त्रीगर्भ गभं नहसिरंसि वा, रोमकूवंसि वा साहरित्तए नखशिरसो वा, रोमकूपाद् वा संहर्तुं वा वा? नीहरित्तए वा? निर्हर्तुं वा? हंता पभू, नो चेव णं तस्स गब्भस्स किंचि हन्त प्रभुः, नो चैव तस्य गर्भस्य किञ्चिद् आबाहं वा विबाह वा उप्पाएज्जा, छविच्छेदं आबाधां वा विबाधां वा उत्पादयेत्, छपुण करेज्जा। एसुहुमं च णं साहरेज्ज वा, विच्छेदं पुनः कुर्यात्। इयत्सूक्ष्मं च संहरेद् नीहरेज्ज वा॥ वा, नीहरेद् वा। ७७. भन्ते ! शक्र का दूत हरि-नैगमेषी देव स्त्री के गर्भ कानखके अग्रभागअथवा रोमकूपसे संहरण अथवा निर्हरण करने में समर्थ है? हां, समर्थ है। ऐसा करते समय वह गर्भ को किञ्चिद् भी आबाधा अथवा विबाधा उत्पन्न नहीं करता और न उसका छविच्छेद करता। वह इतनी सूक्ष्मता (निपूणता) के साथ उसका संहरण अथवा निर्हरण करता है। भाष्य १. सूत्र ७६,७७ प्रस्तुत आलापक में गर्भ-संहरण का उल्लेख है। अंतगडदसाओ के अनुसार सुलसा ने हरि-नैगमेषी की प्रतिमा बनाकर उसकी आराधना की थी। हरि-नैगमेषी ने सुलसा के मृत-पुत्रों को करतल-सम्पुट में उठाकर देवकी के पास रखा था और देवकी के पुत्रों को सुलसा के पास रखा था। इस घटना सेहरि-नैगमेषी का गर्भ और शिशु के साथ सम्बन्ध की जानकारी मिलती है। २. अंत. ३।३३-४१ । १. दैनिक भास्कर, जयपुर, ४ सितम्बर, १९९७, शुभकाम आर्य द्वारा लिखित लेख, नींद क्यों रात भर नहीं आती? Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003594
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02 Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2000
Total Pages596
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size20 MB
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