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________________ श.५ : उ.४: सू.६४ १५० भगवई जाईभंते ! अणूइं पिसुणेइ बादराई पिसुणेइ, यान् भदन्त ! अणूनपि शृणोति बादरानपि भन्ते! वह जिन अणुशब्दों को सुनता है और बादर ताई किं उड्ढे सुणेइ? अहे सुणेइ? तिरियं शृणोति, तान् किम् ऊर्वं शृणोति?अधः शब्दों को भी सुनता है, क्या उन ऊर्ध्व क्षेत्र में विद्यमान सुणेइ? शृणोति? तिर्यक् शृणोति? शब्दों को सुनता है, अध: क्षेत्र में विद्यमान शब्दों को सुनता है अथवा तिरछे क्षेत्र में विद्यमान शब्दों को सुनता है? गोयमा ! उड्ढं पि सुणेइ, अहे वि सुणेइ, गौतम! अर्वमपि शृणोति, अधोऽपि शृणोति, गौतम! वह ऊर्व क्षेत्र में विद्यमान शब्दों को भी सुनता तिरियं पि सुणे।। तिर्यगपि शृणोति। है, अधः क्षेत्र में विद्यमान शब्दो को भी सुनता है और तिरछे क्षेत्र में विद्यमान शब्दों को भी सुनता है। जाई भंते ! उड्ढं पि सुणेइ, अहे वि सुणेइ यान् भदन्त ! ऊर्ध्वमपि शृणोति, अधोऽपि भन्ते ! वह जिन ऊर्ध्व क्षेत्र में विद्यमान शब्दों को तिरियं पिसुणेइ, ताई किं आइंसुणेइ? मज्झे शृणोति, तिर्यगपि शृणोति, तान् किम् आदौ सुनता है, अध: और तिरछे क्षेत्र में विद्यमान शब्दों सुणेइ? पज्जवसाणे सुणेइ? शृणोति? मध्ये शृणोति? पर्यवसाने शृणोति? । को सुनता है, क्या उनके आदि भाग को सुनता है, मध्यभाग को सुनता है अथवा पर्यवसान भाग को सुनता है? गोयमा ! आई पि सुणेइ, मझे पि सुणेइ, गौतम! आदावपि शृणोति, मध्येऽपि शृणोति, गौतम ! वह उनके आदि भाग को भी सुनता है, मध्य पज्जवसाणे वि सुणे।। पर्यवसानेऽपि शृणोति। भाग को भी सुनता है और पर्यवसान भाग को भी सुनता है। जाई भंते ! आई पि सुणेइ, मज्झे विसुणेइ, यान् भदन्त ! आदावपि शृणोति, मध्येऽपि भन्ते! वह जिन शब्दों के आदि भाग को भी सुनता पज्जवसाणे वि सुणेइ, ताई किं सविसए शृणोति, पर्यवसानेऽपि शृणोति, तान् किम् है, मध्य भाग को भी सुनता है और पर्यवसान भाग सुणेइ? अविसए सुणेइ? सविषयान् शृणोति? अविषयान् शृणोति? को भी सुनता है, क्या उन अपनी इन्द्रिय के विषयभूत शब्दों को सुनता है अथवा अपनी इन्द्रिय के अविषयभूत शब्दों को सुनता है? गोयमा! सविसए सुणेइ, नो अविसए सुणेइ। गोतम ! सविषयान् शृणोति, नो अविषयान् गौतम ! वह अपनी इन्द्रिय के विषयभूत शब्दों को शृणोति। सुनता है, अपनी इन्द्रिय के अविषयभूत शब्दों को नहीं सुनता। जाइं भंते ! सविसए सुणेइ, ताई किं आणु- यान् भदन्त ! सविषयान् शृणोति, तान् किम् । भन्ते ! वह अपनी इन्द्रिय के विषयभूत जिन शब्दों पुज्विं सुणेइ? अणाणुपुव्विं सुणेइ? आनुपुर्व्या शृणोति? अनानुपूर्व्या शृणोति? को सुनता है, क्या उन्हें क्रम से सुनता है अथवा अक्रम से सुनता है? गोयमा ! आणुपुब्विं सुणेइ, नो अणाणु- गौतम ! आनुपूर्व्या शृणोति, नो अनानुपूर्व्या गौतम ! वह क्रम से सुनता है, अक्रम से नहीं सुनता। पुब्बिं सुणे।। शृणोति? जाई भंते ! आणुपुग्विं सुणेइ, ताई किं ति- यान् भदन्त ! आनुपूर्व्या शृणोति, तान् किं भन्ते ! वह जिन शब्दों को क्रम से सुनता है, क्या दिसि सुणेइ जाव छद्दिसिं सुणेइ? त्रिदिशं शृणोति यावत् षड्दिशं शृणोति? उन्हें तीन दिशाओं से सुनता है यावत् छह दिशाओं से सुनता है? गोयमा ! नियमा छद्दिसिं सुणेइ। गौतम ! नियमात् षड्दिशं शृणोति। गौतम ! वह नियमत: छह दिशाओं से सुनता है। भाष्य १. सूत्र ६४ प्रस्तुत आलापक में शब्द सुनने की प्रक्रिया बतलाई गई है। इन्द्रियों के पांच विषय हैं-स्पर्श, रस, गंध, रूप और शब्द। स्पर्शन, रसन और घ्राण ये तीन इन्द्रियां बद्ध-स्पृष्ट विषयों को ग्रहण करती हैं। चक्षु इन्द्रिय अस्पृष्ट विषय का ग्रहण करती है, श्रोत्र इन्द्रिय स्पृष्ट विषय का ग्रहण करती १. नंदी, सू. ५४ गा. ४--- है। जैन न्याय में इस आधार पर प्राप्यकारी और अप्राप्यकारी की व्यवस्था की गई है। चक्षु के साथ विषय का स्पर्श नहीं होता, इसलिए वह अप्राप्यकारी है—विषय का स्पर्श किए बिना ज्ञान करने वाला है। शेष चार इन्द्रियां विषय का स्पर्श कर ज्ञान करती है, इसलिए वे प्राप्यकारी हैं। श्रोत्र-इन्द्रिय में शब्द के परमाणु-स्कन्धों का स्पर्श होता है, किन्तु उनका संवेदन नहीं होता, शेष पुढे सुणेइ सई रूवं पुण पासइ अपुढे तु। गंध रसं च फासं च, बद्धपुढे वियागरे।। Jain Education Intenational For Private & Personal use only www.jainelibrary.org
SR No.003594
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02 Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2000
Total Pages596
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size20 MB
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