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________________ भगवई १४७ श.५: उ.३: सू.६२ ६२. से नणं भंते ! जे जे भविए जोणि उव- तन्नूनं भदन्त ! यो यस्यां भव्यो यौनौ उप- ६२. भंते ! जो जीव जिस योनि में उत्पन्न होने वाला वज्जित्तए, से तमाउयं पकरेइ, तं जहा- पत्तुम् , स तदायुष्कं प्रकरोति, तद् यथा- है, वह उसी का आयुष्य अर्जित करता है, जैसेनेरइयाउयं वा? तिरिक्खजोणियाउयं वा? नैरयिकायुष्कं वा? तिर्यग्योनिकायुष्कं वा? नैरयिक का आयुष्य? तिर्यग्योनिक कां आयुष्य? मणुस्साउयं वा? देवाउयं वा? मनुष्यायुष्कं वा? देवायुष्कं वा? मनुष्य का आयुष्य अथवा देव का आयुष्य? हंता गोयमा ! जे जं भविए जोणि उवव- हन्त गौतम! यो यस्यां भव्यो योनौ उपपत्तुं, हां गौतम! जो जीव जिस योनि में उत्पन्न होने वाला ज्जित्तए, से तमाउयं पकरेइ, तं जहा- स तदायुष्कं प्रकरोति, तद् यथा-नैरयि- है, वह उसी का आयुष्य अर्जित करता है, जैसे----- नेरइयाउयं वा, तिरिक्खजोणियाउयं वा, कायुष्कं वा तिर्यग्योनिकायुष्कं वा, मनुष्या- नैरयिक का आयुष्य, तिर्यग्योनिक का आयुष्य, मनुष्य मणुस्साउयं वा, देवाउयं वा। युष्कं वा, देवायुष्कं वा। का आयुष्य अथवा देव का आयुष्य। नेरइयाउयं पकरेमाणे सत्तविहं पकरेइ, तं नैरयिकायुष्कं प्रकुर्वन् सप्तविधं प्रकरोति, नैरयिक का आयुष्य अर्जित करने वाला जीव सात जहा–रयणप्पभापुढविनेरइयाउयं वा, तद्यथा-रत्नप्रभापृथिवीनैरयिकायुष्कं वा प्रकार का आयुष्य अर्जित करता है, जैसे-रत्नसक्करप्पभापुढविनेरइयाउयं वा, बालुय- शर्कराप्रभापृथिवीनैरयिकायुष्कं वा, बा- प्रभापृथ्वी नैरयिक का आयुष्य, शर्कराप्रभापृथ्वी प्पभापुढविनेरइयाउयं वा, पंकप्पभा- लुकाप्रभापृथिवीनैरयिकायुष्कं वा, पङ्क- नैरयिक का आयुष्य, बालुकाप्रभापृथ्वी नैरयिक का पुढविनेरइयाउयं वा, धूमप्पभापुढवि- प्रभापृथिवीनैरयिकायुष्कं वा, धूमप्रभा- आयुष्य, पंकप्रभापृथ्वी नैरयिक का आयुष्य, धूमनेरइयाउयं वा, तमप्पभापुढविनेरइयाउयं पृथिवीनैरयिकायुष्कं वा, तम:प्रभापृथिवी- प्रभापृथ्वी नैरयिक का आयुष्य, तम:प्रभापृथ्वी वा, अहेसत्तमापुढविनेरइयाउयं वा। नैरयिकायुष्कं वा, अध:सप्तमीपृथिवी- नैरयिक का आयुष्य अथवा अध:सप्तमीपृथ्वी नैरयिकायुष्कं वा। नैरयिक का आयुष्य। तिरिक्खजोणियाउयं पकरेमाणे पंचविहं तिर्यग्योनिकायुष्कं प्रकुर्वन् पञ्चविध प्रक- तिर्यग्योनिक आयुष्य अर्जित करने वाला जीव पांच पकरेइ, तं जहा-एगिदियतिरिक्खजोणि- रोति, तद् यथा—एकेन्द्रियतिर्यग्योनि- प्रकार का आयुष्य अर्जित करता है, जैसे-एकेयाउयं वा, बेइंदियतिरिक्खजोणियाउयं कायुष्कं वा, द्वीन्द्रियतिर्यग्योनिकायुष्कं वा, न्द्रियतिर्यग्योनिक आयुष्य, द्वीन्द्रियतिर्यग्योनिक वा, तेइंदियतिरिक्खजोणियाउयं वा, चउ- त्रीन्द्रियतिर्यग्योनिकायुष्कं वा, चतुरिन्द्रिय- आयुष्य, त्रीन्द्रियतिर्यग्योनिक आयुष्य, चतुरिन्द्रियरिदियतिरिक्खजोणियाउयं वा, पंचिं- तिर्यग्योनिकायुष्कं वा, पंचेन्द्रियतिर्यग्यो- तिर्यग्योनिक आयुष्य अथवा पंचेन्द्रियतिर्यग्योनिक दियतिरिक्खाजोणियाउयं वा। निकायुष्कं वा। आयुष्य। मणुस्साउयं दुविहं पकरेइ, तं जहा- मनुष्यायुष्कं द्विविधं प्रकरोति, तद् यथा- मनुष्य का आयुष्य अर्जित करने वाला जीव दो प्रकार सम्मुच्छिममणुस्साउयं वा, गब्भवक्कं- ___ सम्मूर्छिममनुष्यायुष्कं वा, गर्भव्युत्क्रान्ति- का आयुष्य अर्जित करता है, जैसे—संमूर्छिम तियमणुस्साउयं वा। कमनुष्यायुष्कं वा। मनुष्य का आयुष्य अथवा गर्भावक्रान्तिक मनुष्य का आयुष्य। देवाउयं चउन्विहं पकरेइ, तं जहा- देवायुष्कं चतुर्विधं प्रकरोति, तद् यथा- देव का आयुष्य अर्जित करने वाला जीव चार प्रकार भवणवासिदेवाउयं वा, वाणमंतरदेवाउयं भवनवासिदेवायुष्कं वा, वानमन्तरदेवायुष्कं का आयुष्य अर्जित करता है, जैसे-भवनवासी वा, जोइसियदेवाउयं वा, वेमाणियदेवाउयं वा, ज्यौतिषिकदेवायुष्कं वा, वैमानिक- देव का आयुष्य, वानमन्तर देव का आयुष्य, ज्योवा॥ देवायुष्कं वा। तिष्कदेव का आयुष्य अथवा वैमानिक देव का आयुष्य। भाष्य १. सूत्र ६२ योग्यता के कारणों का उल्लेख अनेक आगमों में मिलता है। प्रस्तुत सूत्र में आयुष्य का अर्थ है-आयुष्य कर्म के पुद्गल स्कन्धों की राशि। चारों गतियों के साथ ही आयुष्य का सम्बन्ध प्रदर्शित है। गति के बिना उसकी व्याख्या नहीं की जा सकती। जिस गति में जाने की वर्तमान जन्म में आयुष्य का बन्ध छह सन्दर्भो के साथ होता है:२ योग्यता अर्जित होती है, उसी गति के आयुष्य का बन्ध होता है। गतियां चार १. जातिनाम निधत्त आयुष्य-पांच जातियों में से एक जाति के हैं--१. नरकगति २. तिर्यञ्चगति ३. मनुष्यगति ४. देवगति। इनमें जाने की आयुष्य का निर्धारण। १. (क) भ.८/४२५-४२८ । २. पण्ण. ६/११८-१२३॥ (ख) ठाणं, ४/६२८-६३१ । Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003594
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02 Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2000
Total Pages596
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size20 MB
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