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तइओ उद्देसो : तीसरा उद्देशक
संस्कृत छाया
हिन्दी अनुवाद
आउ-पकरण-पडिसंवेदण-पदं
आयु:-प्रकरण-प्रतिसंवेदन-पदम् आयुष्य-प्रकरण-प्रतिसंवेदन-पद ५७. अण्णउत्थिया णं भंते ! एवमाइक्खंति अन्ययूथिका: भदन्त! एवमाख्यान्ति भाष- ५७. 'भन्ते ! अन्ययूथिक ऐसा आख्यान, भाषण,
भासंति पण्णवेंति परूवेंति-से जहानामए न्ते प्रज्ञापयन्ति प्ररूपयन्ति–तद् यथानाम प्रज्ञापन और प्ररूपण करते हैं जैसे कोई जालजालगंठिया सिया-आणुपुन्विगढिया जालग्रन्थिका स्याद्-आनुपूर्वीग्रथिता ग्रन्थिका हैं। उस जाल में क्रमपूर्वक गांठे दी हुई हैं। अणंतरगढिया परंपरगढिया अण्णमण्ण- अनन्तरग्रथिता परम्परग्रथिता अन्योन्य- एक के बाद एक किसी अंतर के बिना गांठे दी हुई हैं, गढिया, अण्णमण्णगरुयत्ताए अण्णमण्ण- ग्रथिता अन्यान्यगुरुकतया अन्योन्यभारि- परम्पर ग्रन्थियों के साथ गूंथी हुई हैं। सब ग्रन्थियां भारियत्ताए अण्णमण्णगरुय-संभारियत्ताए कतया अन्योन्यगुरुक-संभारिकतया अन्यो- परस्पर एक-दूसरी से गूंथी हुई हैं। वैसा जाल परस्पर अण्णमण्णघडताए चिट्ठइ, एवामेव बहूणं अन्योन्यघटतया तिष्ठति, एवमेव बहूनां विस्तीर्ण, परस्पर भारी, परस्पर विस्तीर्ण और परस्पर जीवाणं बहुसु आजातिसहस्सेसु बहूइं जीवानां बहुषु आजातिसहस्रेषु बहूनि । आउयसहस्साई आणुपुन्विगढियाई जाव आयुष्कसहस्राणि आनुपूर्वीग्रथितानि या- अवस्थित है। इसी प्रकार अनेक जीवों के अनेक हजार चिट्ठति। वत् तिष्ठन्ति।
जन्मों के अनेक हजार आयुष्य क्रम से गूंथे हुए यावत्
समुदाय-रचना के रूप में अवस्थित हैं। एगे वियणं जीवे एगेणं समएणं दो आउयाई एकोऽपि च जीव: एकेन समयेन द्वे आयुषी एक जीव एक समय में दो आयुष्यों का प्रतिसंवेदन पडिसंवेदेइ, तं जहा—इहभवियाउयं च, प्रतिसंवेदयति, तद् यथा-इहभविकायुष्कं करता है, जैसे-इस भव के आयुष्य का और परभव परभवियाउयं च। च परभविकायुष्कं च।
के आयुष्य का। जं समयं इहभवियाउयं पडिसंवेदेइ, तं समयं यं समयम् इहभविकायुष्कं प्रतिसंवेदयति, जिस समय जीव इस भव के आयुष्य का प्रतिसंवेदन परभवियाउयं पडिसंवेदे। तं समयं परभविकायुष्कं प्रतिसंवेदयति। करता है, उसी समय वह परभव के आयुष्य का
प्रतिसंवेदन करता है। जं समय परभवियाउयं पडिसंवेदेइ, तं समयं य समय परभविकायुष्कं प्रतिसंवेदयति, तं जिस समय वह परभव के आयुष्य का प्रतिसंवेदन इहभवियाउयं पडिसंवेदेइ। समयम् इहभविकायुष्कं प्रतिसंवेदयति। करता है, उसी समय वह इस भव के आयुष्य का
प्रतिसंवेदन करता है। इहभवियाउयस्स पडिसंवेदणयाए परभवि- इहभविकायुष्कस्य प्रतिसंवेदनायां परभवि- इसभव के आयुष्य का प्रतिसंवेदन करने से वह परभव याउयं पडिसंवेदेइ। कायुष्कं प्रतिसंवेदयति।
के आयुष्य का प्रतिसंवेदन करता है। परभवियाउयस्स पडिसंवेदणयाए इहभवि- परभविकायुष्कस्य प्रतिसंवेदनायाम् इह- पर भव के आयुष्य का प्रतिसंवेदन करने से वह इस याउयं पडिसंवेदेइ। भविकायुष्कं प्रतिसंवेदयति।
भव के आयुष्य का प्रतिसंवेदन करता है। एवं खलु एगे जीवे एगेणं समएणं दो आउ- एवं खलु एक: जीव: एकेन समयेन द्वे इस प्रकार एक जीव एक समय में दो आयुष्यों का याई पडिसंवेदेइ, तं जहा- इहभवियाउयं आयुषी प्रतिसंवेदयति, तद् यथा-इह- प्रतिसंवेदन करता है, जैसे—इस भव के आयुष्य का च, परभवियाउयं च ।। भविकायुष्कं च परभविकायुष्कं च।
और परभव के आयुष्य का।
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