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श.५: उ.२: सू.५१-५६
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भगवई
पड़ेगा। किन्तु पक जाने पर घट के स्वरूप में रंग के सिवा और कोई अन्तर स्कन्धों में सभी वर्गों की सत्ता है, इसलिए काली मिट्टी के परमाणुओं से बना नहीं पाया जाता। उसे देखते ही हम तुरन्त पहचान जाते हैं। इसलिए घट का पात्र आग में पकाने पर लाल रंग का हो जाता है। इसकी व्याख्या के लिए नाश और घटान्तर का निर्माण नहीं माना जा सकता। घट-परमाणु उसी तरह किसी नए सिद्धान्त की स्थापना करना आवश्यक नहीं है। संलग्न रहते हैं, किन्तु उनके बीच-बीच में जो छिद्र-स्थल रहते हैं, उनमें
शब्द-विमर्श विजातीय अग्नि का प्रवेश हो जाने के कारण घट का रूप परिवर्तन हो जाता
पूर्वभाव प्रज्ञापना-अतीत पर्याय की प्ररूपणा है। इस मत का नाम 'पिठरपाक' है।'
पडुच्च-अपेक्षा से जैनदर्शन में पर्यायान्तर अथवा परिणामान्तर का सिद्धान्त मान्य
शस्त्रातीते-अग्नि-शस्त्र से अतिक्रान्त है। वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श पुद्गल के गुण हैं। इनमें प्रयोगजनित और
शस्त्रपरिणामिते-अग्नि-शस्त्र के द्वारा नए पर्याय में परिणामिता स्वाभाविक दोनों प्रकार का परिवर्तन होता है। ओदन आदि में अग्नि के
अगणिज्झामिये-अग्नि से श्यामल संयोग से होने वाला परिवर्तन प्रायोगिक परिवर्तन है। परमाणु तथा परमाणु
लवणसमुद्द-पदं
लवणसमुद्र-पदम् ५५. लवणे णं भंते ! समुद्दे केवइयं चक्क- लवणः भदन्त समुद्रः कियान् चक्रवाल- वालविक्खंभेणं पण्णते?
विष्कम्भेण प्रज्ञप्तः? एवं नेयव्वं जाव लोगट्ठिई, लोगाणुभावे॥ __एवं नेतव्यं यावल लोकस्थिति: लोकानु
भावः।
लवण समुद्र-पद ५५. भन्ते ! लवण समुद्र की चक्राकार चौड़ाई कितनी प्रज्ञप्त है? उसकी चक्राकार चौड़ाई दो लाख योजन की है यावत् जीवाभिगम (३/७०६-७९५) के लोकस्थिति लोकानुभाव तक वक्तव्य है।
५६. सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति भगवं गोयमे
जाव विहरइ॥
तदेवं भदन्त ! तदेवं भदन्त ! इति भगवान् गौतम: यावद् विहरति।
५६. भन्ते ! वह ऐसा ही है, भन्ते ! वह ऐसा ही है, इस प्रकार कह कर भगवान् गौतम यावत् विहरण कर रहे
१. भारतीय दर्शन परिचय, द्वितीय खण्ड, वैशेषिक दर्शन, पृ.१२१
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