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________________ भगवई गोयमा ! सिय ससरीरी निक्खमइ, सिय गौतम ! स्यात् सशरीरी निष्क्रामति, स्याद् असरीरी निक्खम || अशरीरी निष्क्रामतिः ५०. से केणट्ठेणं भंते ! एवं वुच्चइ — सिय ससरीरी निक्खमइ? सिय असरीरी निकखमइ ? गोयमा ! वाउयायस्स णं चत्तारि सरीरया पण्णत्ता, तं जहा - ओरालिए, वेउव्विए, तेवए, कम्मए। ओरालिय- वेउब्वियाई विप्पजहाय तेयय - कम्मएहिं निक्खमइ । से तेणद्वेणं गोयमा एवं बुच्चइ – सिय ससरीरी निक्खम, सिय असरीरी निक्ख -- मइ ॥ け १. सूत्र ४६-५० द्रष्टव्य भ. २/८-१२ का भाष्य । ओदणादीणं किंसरीरत-पदं ५१. अहणं भंते ओदणे, कुम्मासे, सुराएए णं किंसरीरा ति वतव्यं सिया ? गोयमा ! ओदणे, कुम्मासे, सुराए य जे पणे दव्वे एए णं पुब्वभावषण्णवणं पडुच्च वणस्सइजीवसरीरा। तओ पच्छा सत्थातीया, सत्थपरिणामिया, अगणिज्झामिया, अगणिझसिवा, अगणिपरिणामिया अगणिजीवसरीरा ति वत्तव्वं सिया। सुराए य जे दवे दव्वे - एए णं पुव्वभावपण्णवणं पडुच्च आउजीवसरीरा । तओ पच्छा सथातीया जाव अगणिजीवसरीरा ति बत्तन्वं सिया ।। ५२. अह णं भंते ! अये, तंबे, तउए, सीसए, उनले कसट्टिया एए णं किंसरीरा ति वतव्वं सिया ? गोयमा ! अये, तंबे, तउए, सीसए, उवले, कसट्टिया – एए णं पुल्वभावपण्णवणं पडुच्च पुढवीजीवसरीरा । तओ पच्छा सत्थातीया जाव अगणिजीवसरीरा ति वत्तव्वं सिया ।। Jain Education International १४० तत् केनार्थेन भदन्त ! एवमुच्यते - स्यात् सशरीरी निष्क्रामति ? स्याद् अशरीरी निष्क्रामति? 1 गौतम ! वायुकायस्य चत्वारि शरीराणि प्रज्ञप्तानि तद् यथा -- औदारिकं, वैक्रिय, तैजसं, कर्मकम् औदारिक- वैक्रिये विप्रहाय तैजस-कर्मकाभ्यां निष्क्रामति । अथ तेनार्थेन गौतम! एवमुच्यते स्वात् सशरीरी निष्क्रामति, स्वात् अशरीरी निष्क्रामति। , भाष्य ओदनादीनां किंशरीरत्व-पदम् अथ भदन्त ! ओदनः, कुल्माष:, सुराएते किंशरीराः इति वक्तव्यं स्यात् ? गौतम! ओदने, कुल्माषे:, सुरायां च यानि घनानि द्रव्याणि तानि पूर्वभावप्रज्ञापनां प्रतीत्य वनस्पतिजीवशरीराणि तत् पश्चात् शस्त्रातीतानि शस्त्रपरिणामितानि, अग्नि"ज्झामिया' अमिषितानि अग्निपरिणामितानि अग्निजीवशरीराणि इति वक्तव्यं स्यात् । सुरायां च यानि द्रवाणि द्रव्याणि— एतानि पूर्वभावप्रज्ञापनां प्रतीत्य अजीबशरीराणि ततः पश्चात् शस्त्रातीतानि यावद अग्निजीवशरीराणि इति वक्तव्यं स्याता " अथ भदन्त ! अय:, ताम्रम् प्रपुः, सीसकम्, उपल, कपट्टिकाः एते किंशरीरा: इति वक्तव्यं स्यात् ? गौतम ! अय:, ताम्रम्, त्रपुः, सीसकम्, उपलाः कषपट्टिकाः एते पूर्वभावप्रज्ञापनां प्रतीत्य पृथिवीजीवशरीराः । ततः पश्चात् शस्त्रातीताः यावद् अग्निजीवशरीरा: इति वक्तव्यं स्यात्। For Private & Personal Use Only श. ५: ३.२ सू.४६-५२ गौतम ! वह स्यात् सशरीर निष्क्रमण करता है, स्यात् अशरीर निष्क्रमण करता है। ५० भन्ते ! यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा हैवायुकायिक जीव स्यात् सशरीर निष्क्रमण करता है, स्यात् अशरीर निष्क्रमण करता है। गौतम! वायुकायिक जीव के चार शरीर प्रज्ञप्त हैं, जैसे—औदारिक, वैक्रिय, तैजस और कार्मण। वह औदारिक और वैक्रिय शरीर को छोड़कर तेजस ओर कार्मण शरीर के साथ निष्क्रमण करता है। गौतम ! इस अपेक्षा से यह कहा जा रहा है वह स्यात् सशरीर निष्क्रमण करता है, स्यात् अशरीर निष्क्रमण करता है। ओदन आदि 'किसके शरीर का पद ५१. 'भन्ते! ओदन, कुल्माष और सुरा इन्हें किन जीवों का शरीर कहा जा सकता है? गौतम ! ओदन, कुल्माष और सुरा में जो सघन द्रव्य हैं, वे पूर्व पर्याय- प्रज्ञापन की अपेक्षा से वनस्पतिजीवों के शरीर हैं। उसके पश्चात् वे शस्त्रातीत और शस्त्र - परिणत तथा अग्नि से श्यामल, अग्नि से शोषित और अग्नि रूप में परिणत होने पर उन्हें अभिजीवों का शरीर कहा जा सकता है। सुरा में जो द्रव द्रव्य हैं, वे पूर्व पर्याय प्रज्ञापन की अपेक्षा से जलजीवों के शरीर हैं। उसके पश्चात् शस्त्रातीत यावत् अग्नि रूप में परिणत होने पर उन्हें अग्नि-जीवों का शरीर कहा जा सकता है। ५२. भंते! लोहा, ताम्बा, रांगा, सीसा, पाषाण और कसौटी- -इन्हें किन जीवों का शरीर कहा जा सकता है? गौतम ! लोहा, तांबा, रांगा, सीसा, पाषाण और कसौटी—ये पूर्व पर्याय- प्रज्ञापन की अपेक्षा से पृथ्वी जीवों के शरीर हैं। उसके पश्चात् शस्त्रातीत यावत् अग्निरूप में परिणत होने पर उन्हें अग्नि-जीवों का शरीर कहा जा सकता है। www.jainelibrary.org
SR No.003594
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02 Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2000
Total Pages596
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size20 MB
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