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भगवई
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श.५: उ.२: सू.३४-४१
पच्छा वाया मंदा वाया महावाया वायंति, ___ मन्दा: वाता: महावाता: वान्ति, तदा पौर- तया णं पुरत्थिमे णवि ईसिं पुरेवाया पच्छा स्त्येऽपि ईषत् पुरोवाता: पश्चाद् वाता: मन्दाः वाया मंदा वाया महावाया वायंति॥ वाता: महावाता: वान्ति।
चलते हैं, उस समय पूर्व में भी ईषत् पुरोवात, पश्चाद्वात, मन्दवात और महावात चलते हैं।
३५. एवं दिसासु, विदिसासु॥
एवं दिशासु, विदिशासु।
३५. इस प्रकार सब दिशाओं और सब विदिशाओं में वात चलते हैं।
अस्ति भदन्त ! द्वैपिका: ईषत् पुरोवाता:?
३६. अत्थिणं भंते ! दीविच्चया ईसिं पुरेवाया?
(पू.भ. ५/३१) हंता अत्थि॥
३६. भंते ! द्वीपों में उत्पन्न ईषत् पुरोवात चलते हैं? (५/३१ की तरह) हां, चलते हैं।
हन्त अस्ति।
अस्ति भदन्त ! सामुद्रिका: ईषत् पुरोवाता:?
३७. अत्थि णं भंते ! सामुद्दया ईसिं पुरेवाया?
(पू.भ.५/३१) हंता अत्थि॥
३७. भन्ते ! समुद्रों में उत्पन्न ईषत् पुरोवात चलते हैं? (५/३१ की तरह) हां, चलते हैं।
हन्त अस्ति।
३८. जया णं भंते ! दीविच्चया ईसिं पुरेवाया, यदा भदन्त ! द्वैपिका: ईषत् पुरोवाता:, तदा ३८. भंते ! जिस समय द्वीपों में उत्पन्न ईषत् पुरोवात
तया णं सामुद्दया वि ईसिं पुरेवाया, जया सामुद्रिका: अपि ईषत् पुरोवाता:? यदा सामु- चलते हैं, उस समय समुद्रों में उत्पन्न ईषत् पुरोवात णं सामुद्दया ईसिं पुरेवाया, तयाणं दीवि- द्रिका: ईषत् पुरोवाता:, तदा द्वैपिका: अपि भी चलते हैं? जिस समय समुद्रों में उत्पन्न ईषत् च्चया वि ईसिं पुरेवाया? (पू. भ.५/३१) ईषत् पुरोवाता:?
पुरोवात चलते हैं, उस समय द्वीपों में उत्पन्न ईषत्
पुरोवात भी चलते हैं? (५/३१ की तरह) णो इणढे समढे। नायमर्थः समर्थः।
यह अर्थ संगत नहीं है।
३९. से केणटेणं भंते ! एवं वुच्चइ–जया णं तत्केनार्थेन भदन्त! एवमुच्यते यदा द्वैपिकाः ३९. भन्ते ! यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा है
दीविच्चया ईसिं पुरेवाया, णो णं तया ईषत् पुरोवाता:, नो तदा सामुद्रिका: ईषत् जिस समय द्वीपों में उत्पन्न ईषत् पूरोवात चलते हैं, सामुद्दया ईसिं पुरेवाया, जया णं सामुद्दया पुरोवाता: , यदा सामुद्रिका ईषत् पुरोवाता:, उस समय समुद्रों में उत्पन्न ईषत् पुरोवात नहीं चलते? ईसिं पुरेवाया, णो णं तया दीविच्चया ईसिं नो तदा द्वैपिका: ईषत् पुरोवाता: ? जिस समय समुद्रों में उत्पन्न ईषत् पुरोवात चलते हैं, पुरेवाया? (पू. भ. ५/३१)
उस समय द्वीपों में उत्पन्न ईषत् पुरोवात नहीं चलते?
(५/३१ की तरह) गोयमा! तेसि णं वायाणं अण्णमण्ण- गौतम ! तेषां वातानाम् अन्योन्यविव्यत्यासेन गौतम ! द्वीपोत्पन्न और समुद्रोत्पन्न वात परस्पर विवच्चासेणं लवणसमुद्दे वेलं नाइक्कमइ। लवणसमुद्रः वेलां नातिक्रामति।
विपरीत रूप से चलते हैं, इसीलिए लवण समुद्र वेला
का अतिक्रमण नहीं करता। से तेणटेणं जाव णो णं तया दीविच्चया तत् तेनार्थेन यावन्नो तदा द्वैपिका: ईषत् पुरो- इस अपेक्षा से यह कहा जा रहा है जिस समय ईसिं पुरेवाया पच्छा वाया मंदा वाया वाता: पश्चाद् वाता: मन्दा: वाता: महावाता: समुद्रों में उत्पन्न ईषत् पुरोवात चलते हैं यावत् उस महावाया वायंति॥ वान्ति।
समय द्वीपों में उत्पन्न ईषत् पुरोवात, पश्चाद्वात, मन्दवात और महावात नहीं चलते।
४०. अत्थि णं भंते ! ईसिं पुरेवाया पच्छा अस्ति भदन्त ! ईषत् पुरोवाता: पश्चाद् वाता: ४०. भन्ते ! क्या ईषत् पुरोवात्, पश्चाद्वात, मन्दवात वाया मंदा वाया महावाया वायंति? मन्दा: वाता: महावाता: वान्ति?
और महावात चलते हैं? हंता अत्थि॥ हन्त अस्ति।
हां, वे चलते हैं।
४१. कयाणं भंते! ईसिं पुरेवाया जाव वायंति?
कदा भदन्त ! ईषत् पुरोवाता: यावद् वान्ति?
४१. भन्ते ! ईषत् पुरोवात यावत् कब चलते हैं?
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