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________________ बीओ उद्देसो : दूसरा उद्देशक मूल संस्कृत छाया हिन्दी अनुवाद वाउ-पदं वायु-पदम् ३१. रायगिहे नगरे जाव एवं वयासी—अत्थि राजगृहे नगरे यावद् एवमवादीद्-----अस्ति णं भंते ! ईसिं पुरेवाया पच्छा वाया मंदा भदन्त ! ईषत् पुरोवाता: पश्चाद्वाता: मन्दा: वाया महावाया वायंति? वाता: महावाता: वान्ति? वायु-पद ३१. 'राजगृह नगर में भगवान् गौतम भगवान महावीर की पर्युपासना करते हुए इस प्रकार बोले-भन्ते! ईषत् पुरोवात (पूर्वी वायु), पश्चाद्वात (पश्चिमी-वायु), मन्दवात और महावात चलते हैं? हां, गौतम!चलते हैं। हंता अत्थि॥ हन्त अस्ति। ३२. अत्थि णं भंते ! पुरत्थिमे णं ईसिं पुरेवाया अस्ति भदन्त ! पौरस्त्ये ईषत् पुरोवाता: ३२. भंते ! पूर्व में ईषत् पुरोवात, पश्चात्वात, मन्दवात पच्छा वाया मंदा वाया महावाया वायंति? पश्चाद् वाता: मन्दा: वाताः महावाता: और महावात चलते हैं? वान्ति? हंता अत्थि॥ हन्त अस्ति। हां, चलते हैं। ३३. एवं पच्चत्थिमे णं, दाहिणे णं, उत्तरे णं, एवं पश्चिमे, दक्षिणे, उत्तरे, उत्तर-पौरस्त्ये उत्तर-पुरस्थिमे णं, दाहिण-पच्चत्थिमे णं, दक्षिण-पश्चिमे, दक्षिण-पौरस्त्ये उत्तर- दाहिण-पुरत्थिमे णं, उत्तर-पच्चत्थिमे ण।। पश्चिमे। ३३. इसी प्रकार पश्चिम, दक्षिण, उत्तर, उत्तर-पूर्व (ईशान कोण), दक्षिण-पश्चिम (नैऋत्य कोण), दक्षिण-पूर्व (आग्नेय कोण) और उत्तर-पश्चिम (वायव्य कोण) में वात चलते हैं। ३४. जया णं भंते ! पुरत्थिमे णं ईसिं पुरेवाया यदा भदन्त! पौरस्त्ये ईषत् पुरोवाता: पश्चाद् ३४. भंते! जिस समय पूर्व में ईषत् पुरोवात, पश्चाद्वात, पच्छा वाया मंदा वाया महावाया वायंति, वाता: मन्दा: वाता: महावाता: वान्ति, तदा मन्दवात और महावात चलते हैं, उस समय पश्चिम तयाणं पच्चत्थिमे णवि ईसिं पुरेवाया पच्छा पश्चिमेऽपि ईषत् पुरोवाता: पश्चाद् वाता: में भी ईषत् पुरोवात, पश्चाद्वात, मन्दवात और वाया मंदा वाया महावाया वायंति; जया मन्दा: वाता: महावाताः वान्ति? यदापश्चिमे महावात चलते हैं? जिस समय पश्चिम में ईषत् णं पच्चत्थिमे णं ईसिं पुरेवाया पच्छा वाया ईषत् पुरोवाता: पश्चाद् वाता: मन्दा: वाता: पुरोवात, पश्चाद्वात, मन्दवात और महावात चलते मंदा वाया महावाया वायंति, तया णं महावाता: वान्ति, तदा पौरस्त्येऽपि? हैं, उस समय पूर्व में भी चलते हैं ? पुरत्थिमे णवि? हंता गोयमा ! जया णं पुरत्थिमे णं ईसिं हन्त गौतम ! यदा पौरस्त्ये ईषत् पुरोवाता: हां, गौतम ! जिस समय पूर्व में ईषत् पुरोवात, पुरेवाया पच्छा वाया मंदा वाया महावाया पश्चाद् वाता: मन्दा: वाता: महावाता: पश्चाद्वात, मन्दवात और महावात चलते हैं, उस वायं ति, तया णं पच्चत्थिमे णवि ईसिं वान्ति, तदा पश्चिमेऽपि ईषत् पुरोवाता: समय पश्चिम में भी ईषत् पुरोवात, पश्चाद्वात, पुरेवाया पच्छा वाया मंदा वाया महावाया पश्चाद्वाता: मंदा: वाता: महावाता: वान्ति; मन्दवात और महावात चलते हैं; जिस समय पश्चिम में वायंति; जयाणं पच्चत्थिमेणं ईसिं पुरेवाया यदा पश्चिमे ईषत् पुरोवाता: पश्चाद् वाता: ईषत् पुरोवात, पश्चाद्वात, मन्दवात और महावात Jain Education Intemational ation Intermational For Private & Personal use only For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003594
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02 Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2000
Total Pages596
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size20 MB
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