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भगवई
श.५ : उ.१: सू.१८-२३
अत्थणिउरे, अउयंगे, अउए, णउयंगे, अयुताङ्गम्, अयुतम्, नयुताङ्गम्, नयुतम्, णउए, पउयगे, पउए, चूलियंगे, चूलिया, प्रयुताङ्गम्, प्रयुतम्, चूलिकाङ्गम्, चूलिका, सीसपहेलियंगे, सीसपहेलिया- पलि- शीर्षप्रहेलिकाङ्गम्,शीर्षप्रहेलिका—पल्योओवमेण, सागरोवमेण वि भाणियन्वो॥ पमेन, साागरोपमेनापि भणितव्यः।
लिकांग, शीर्षप्रहेलिका तथा पल्योपम, सागरोपम के साथ भी अभिलाप वक्तव्य है।
१९. जया णं भंते ! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स चदा भदन्त ! जम्बूद्वीपे द्वीपे मंदरस्य पर्वतस्य
पव्वयस्स दाहिणड्ढे पढमा ओसप्पिणी दक्षिणार्द्ध प्रथमाऽवसर्पिणी प्रतिपद्यते, तदा पडिवजइ, तया णं उत्तरड्ढे वि पढमा उत्तरार्द्धऽपि प्रथमाऽवसर्पिणी प्रतिपद्यते;
ओसप्पिणी पडिवज्जइ; जया णं उत्तरड्ढे यदा उत्तरार्द्ध प्रथमाऽवसर्पिणी प्रतिपद्यते, पढमा ओसप्पिणी पडिवज्जइ, तया णं तदा जम्बूद्वीपे द्वीपे मन्दरस्य पर्वतस्य जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पुरत्थिम- पौरस्त्य-पश्चिमे नैवास्ति अवसर्पिणी, -पच्चत्थिमेणं नेवत्थि ओसप्पिणी, नेवत्थि नैवास्ति उत्सर्पिणी, अवस्थित: तत्र काल: उस्सप्पिणी, अवट्ठिए णं तत्थ काले पण्णत्ते प्रज्ञप्त: श्रमणाऽऽयुष्मन्? समणाउसो? हंता गोयमा ! तं चेव उच्चारेयव्वं जाव हन्त गौतम ! तच्चैव उच्चारयितव्यं यावत् समणाउसो॥
श्रमणाऽऽयुष्मन्!
१९. भंते ! जिस समय जम्बूद्वीप द्वीप में मेरु पर्वत के दक्षिणार्द्ध में प्रथम अवसर्पिणी प्रतिपन्न होती है, उस समय उत्तरार्द्ध में भी प्रथम अवसर्पिणी प्रतिपन्न होती है; जिस समय उत्तरार्द्ध में प्रथम अवसर्पिणी प्रतिपन्न होती है, उस समय जम्बूद्वीप द्वीप में मेरु पर्वत के पूर्व-पश्चिम भाग में अवसर्पिणी और उत्सर्पिणी नहीं होती है, आयुष्मन् श्रमण ! वहां काल अवस्थित
हां, गौतम ! पूर्ण पाठ प्रश्नवत् वक्तव्य है यावत् आयुष्मन् श्रमण!
२०. जहा ओसप्पिणीए आलावओ भणिओ यथा अवसर्पिण्या आलापक: भणित: एवम् २०. जिस प्रकार अवसर्पिणी का आलापक कहा एवं उस्सप्पिणीए वि भाणियव्वो॥ उत्सर्पिण्यापि भणितव्यः।
गया, उसी प्रकार उत्सर्पिणी का आलापक भी वक्तव्य है।
लवणसमुद्दादिसु सूरियादि-वत्तव्वय- पदं लवणसमुद्रादिषु सूर्यादि-वक्तव्यता- लवणसमुद्रादि में सूर्यादि की वक्तव्यता का
पदम्
पद
२१. लवणे णं भंते ! समुद्दे सूरिया उदीण- लवणे भदन्त ! समुद्रे सूर्याः उदीचीन- पाईणमुग्गच्छ पाईण-दाहिणमागच्छंति, प्राचीनमुद्गत्य प्राचीन-दक्षिणमागच्छन्ति, जच्चेव जंबुद्दीवस्स वत्तव्वया सच्चेव या चैव जम्बूद्वीपस्य वक्तव्यता सा चैव सर्वा सव्वा अपरिसेसिया लवणसमुद्दस्स वि अपरिशेषिका लवणसमुद्रस्यापि भणि- भाणियव्वा, नवरं—अभिलावो इमो तव्या, नवरं—अभिलापोऽयम् ज्ञातव्यः। जाणियन्वो॥
२१. भंते ! लवण समुद्र में सूर्य उत्तर और पूर्व के मध्य उदित होकर पश्चिम और दक्षिण के मध्य आते हैं। जम्बूद्वीप में सूर्य की जो वक्तव्यता कही गई है, वह सारी अविकल रूप से लवण समुद्र के सन्दर्भ में भी वक्तव्य है। विशेषतः यह अभिलाप ज्ञातव्य है।
२२. जया णं भंते ! लवणसमुद्दे दाहिणड्ढे यदा भदन्त ! लवणसमुद्रे दक्षिणा दिवस: २२. भंते ! जिस समय लवण समुद्र के दक्षिणार्द्ध में
दिवसे भवइ, तं चेव जाव तदा णं लवण- भवति, तच्चैव यावत् तदा लवणसमुद्रे पौर- दिन होता है। वही वक्तव्यता यावत् उस समय लवण समुद्दे पुरत्थिम-पच्चत्थिमे णं राई भवति।। स्त्य-पश्चिमे रात्रि: भवति।
समुद्र के पूर्व-पश्चिम भाग में रात्रि होती है।
२३. एएणं अभिलावेणं नेयव्वं जाव जया णं एतेन अभिलापेन नेतव्यं यावद् यदा भदन्त! २३. इस अभिलाप के अनुसार ज्ञातव्य है यावत् भंते ! भंते! लवणसमुद्दे दाहिणड्ढे पढमा लवणसमुद्रे दक्षिणाढे प्रथमा अवसर्पिणी जिस समय लवण समुद्र के दक्षिणार्द्ध में प्रथम
ओसप्पिणी पडिवज्जइ, तया णं उत्तरड्ढे प्रतिपद्यते, तदा उत्तरार्द्धऽपि प्रथमा अवविपढमा ओसप्पिणी पडिवज्जइ; जया णं सर्पिणी प्रतिपद्यते; यदा उत्तरार्द्ध प्रथमा भी प्रथम अवसर्पिणी प्रतिपन्न होती है; जिस समय उत्तरड्ढे पढमा ओसप्पिणी पडिवजइ, अवसर्पिणी प्रतिपद्यते, तदा लवणसमुद्रे उत्तरार्द्ध में प्रथम अवसर्पिणी प्रतिपन्न होती है उस तया णं लवणसमुद्दे पुरत्थिम-पच्चत्थिमे पौरस्त्य-पश्चिमे नैवास्ति अवसर्पिणी, समय लवण समुद्र के पूर्व-पश्चिम भाग में अव
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