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________________ श. ५ : ३. १ सू. १४-१८ जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पल्क्यस्स उत्तरदाहिणे णं अणंतरपच्छाकडसमयंसि वासाणं पढमे समए पडिवने भवइ? हंता गोयमा ! जया णं जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पुरत्थिमे णं एवं चैव उच्चारे यव्वं जाव पडिवन्ने भवइ || १५. एवं जहा समएणं अभिलावो भणिओ वासानं सहा अवलियाएव भाणियच्चो । आणापाणूणवि, थोवेणवि, लवेणवि, मुहुत्तेणवि, अहोरत्तेणवि, पक्खेणवि, मासेनवि, उऊनवि। एएसि सन्वेसिं जहा समयस्स अभिलावो तहा भाणियव्वो । १६. जया णं भंते । जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स दाहिणड्डे हेमंताणं पढमे समए पडिवज्जइ, जहेव वासाणं अभिलावो तहेव हेमंताण वि, गिम्हाण विभागिय जाव उऊए एवं तिणि वि। एएसि तीसं आलावा भाणियव्वा ।। जंबुद्दीवे अयणादि-वत्तव्वया-पदं १७. जया णं भंते ! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स दाहिणट्टे पढमे अयणे पडि वज्जइ, तया णं उत्तरड्ढे वि पढमे अयणे पडिवजह, जहा समएवं अभिलावो तहेब अवमेण वि भाणियव्यो जाव अनंतर पच्छाकडसमयंसि पढमे अयणे पडिवन्ने भवइ ॥ १८. जहा अयणेणं अभिलावो तहा संवच्छरेण विभाषियन्वो जुएण वि, वाससएण वि, वाससहस्त्रेण वि वासस्यसहस्सेण वि पुव्वंगेण. वि, पुव्वेण वि, तुडियंगेण वि, तुडिएण वि एवं पुव्वंगे, पुब्वे, तुडियंगे, तुडिए, अडडंगे, अडडे, अववंगे, अबवे, हने, हूहूए हूहूयंगे, उप्पलंगे, उप्पले, पडमंगे, पडणे, नलिणंगे, नलिणे, अत्थणिउरंगे, Jain Education International १३२ पर्वतस्य उत्तर - दक्षिणे अनन्तरपश्चात्कृतसमचे वर्षाणां प्रथमः समयः प्रतिपन्नः भवति ? हन्त गौतम ! यदा जम्बूद्वीपे द्वीपे मन्दरस्य पर्वतस्य पौरस्त्ये एवं चैव उच्चारयितव्यं यावत् प्रतिपन्न भवति एवं यथा समयेन अभिलापः भणित: वर्षाणां तथा आवलिकयापि भणितव्यः । आनापानाभ्यामपि स्तोकेनापि, लवेनापि, मुहूर्त्तेनापि, अहोरात्रेणापि, पक्षेणापि मासेणापि ऋतुनापि एतेषां सर्वेषां यथा समयस्य अभिलाप: तथा भणितव्यः । " यदा भवन्त ! जम्बूद्वीपे द्वीपे मन्दरस्य पर्वतस्य दक्षिणादों हेमन्तानां प्रथमः समय: प्रतिपद्यते, यथैव वर्षाणां अभिलाप:, तथैव हेमन्तानामपि ग्रीष्माणामपि भणितव्यो यावद् ऋतो एवं त्रयः अपि एतेषां त्रिंशद् आलापकाः भणितव्याः । जम्बूद्वीपे अनादि-वक्तव्यता-पदम् यदा भदन्त ! जम्बूद्वीपे द्वीपे मंदरस्य पर्वतस्य यदा भदन्त ! जम्बूद्वीपे द्वीपे मंदरस्य पर्वतस्य दक्षिणाद्ध प्रथमम् अयनं प्रतिपद्यते, तदा उत्तरार्द्धेऽपि प्रथमम् अयनं प्रतिपद्यते, यथा समयेन अभिलाप तथैव अयनेनापि भणितव्यो यावद् अन्तरपश्चात्कृतसमये प्रथमम् अयनं प्रतिपन्नं भवति । - यथा अयनेन अभिलापस्तथा संवत्सरेणापि दधा अयनेन अभिलापस्तथा संवत्सरेणापि भणितव्यः युगेनापि वर्षशतेनापि, वर्षसहस्रेणापि वर्षशतसहस्रेणापि पूर्वांगे नापि, पूर्वेणापि, त्रुटितांगेनापि, त्रुटितेनापि एवं पूर्वाङ्गम् पूर्वम्, त्रुटिताङ्गम्, त्रुटितम् अटटाङ्गम्, अटटम्, अववाङ्गम्, अववम्, हूहूकान, कम् उत्पा उत्पलम्, पद्मानम्, पद्म, नलिनात्रम्, नलिनम्, अर्थनिकुराङ्गम्, अर्थनिकुरम्, For Private & Personal Use Only भगवई द्वीप में मेरु पर्वत के उत्तर-दक्षिण भाग में वर्षा के पूर्व और अपर विदेह की वर्षा के प्रथम समय की अपेक्षा प्रथम समय के अनन्तर पश्चाद्वर्ती समय में वर्षा का प्रथम समय प्रतिपन्न होता है? हां, गौतम ! जिस समय जम्बूद्रीय द्वीप में मेरु पर्वत के पूर्व भाग में वर्षा का प्रथम समय प्रतिपन्न होता है........ इस प्रकार पूर्ण पाठ वक्तव्य है यावत् प्रथम समय प्रतिपन्न होता है। १५. इस प्रकार जैसे समय के साथ वर्षा का अभिलाप कहा गया है, उसी प्रकार आवलिका के साथ भी वर्षा का अभिलाप वक्तव्य है। आनापान स्लोक, लव मुहूर्त्त, अहोरात्र, पक्ष, मास और ऋतु इन सबके साथ भी समय की भांति ही वर्षा का अभिलाप वक्तव्य है। - १६. भंते जिस समय जम्बूद्वीप द्वीप में मेरु पर्वत के दक्षिणार्द्ध में हेमन्त का प्रथम समय प्रतिपन्न होता है। जैसे समय के साथ वर्षा का अभिलाप है वैसे ही हेमन्त, ग्रीष्म यावत् ऋतु के साथ भी वक्तव्य है। तीन ऋतुओं में इसी प्रकार वक्तव्य है। इसके सीस आलापक होते हैं। जम्बूद्वीप में अयनादि की वक्तव्यता का पद १७. भंते । जिस समय जम्बूद्रीय द्वीप में मेरु पर्वत के दक्षिणार्द्ध में प्रथम अयन (दक्षिणायन) प्रतिपन्न होता है उस समय उत्तरार्द्ध में भी प्रथम अयन प्रतिपन्न होता है, जिस प्रकार समय के साथ अभिलाप है, उसी प्रकार अयन के साथ भी वक्तव्य है। यावत् अनन्तर पश्चाद्वर्ती समय में प्रथम अयन प्रतिपन्न होता है। १८. जिस प्रकार अवन के साथ अभिलाप है उसी प्रकार संवत्सर के साथ भी अभिलाप वक्तव्य है। युग, सी वर्ष, हजार वर्ष, लाख वर्ष, पूर्वांग, पूर्व, त्रुटितांग, त्रुटि के साथ भी अभिलाप वक्तव्य है। इसी प्रकार पूर्वांग, पूर्व, त्रुटितांग, त्रुटित, अटांग, अटट, अववांग, अवव, हूहूकांग, हूहूक, उत्पलांग, उत्पल, पद्मांग, पद्म नलिनांग, नलिन, अर्धनिकुरांग, अर्धनिकुर, अयुतांग, आयुत, नवुतांग, नयुत, प्रयुतांग, प्रयुत, चूलिकांग, चूलिका, शीर्षप्रहे www.jainelibrary.org
SR No.003594
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02 Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2000
Total Pages596
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size20 MB
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