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श.५ : उ.१: सू.३-१२
भगवई
११. जया णं जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स यदा जम्बूद्वीपे द्वीपे मंदरस्य पर्वतस्य दक्षि- ११. भंते ! जिस समय जम्बूद्वीप द्वीप में मेरु पर्वत के दाहिणड्ढे जहण्णए दुवालसमुहत्ते दिवसे णार्दै जघन्यकः द्वादशमुहूर्त: दिवस: भवति, दक्षिणार्द्ध भाग में बारह मुहूर्त का जघन्य दिन होता भवइ, तयाणं उत्तरड्ढे वि; जया णं उत्तरड्ढे, तदा उत्तरार्द्धऽपि, यदा उत्तरार्द्ध, तदा है, उस समय उत्तरार्द्ध भाग में भी बारह मुहर्त का दिन तया णं जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स जम्बूद्वीपे द्वीपे मंदरस्य पर्वतस्य पौरस्त्य- होता है? जिस समय उत्तरार्द्ध भाग में बारह मुहूर्त का पुरस्थिम-पच्चत्थिमे णं उक्कोसिया अट्ठारस- पश्चिमे उत्कर्षिका अष्टादशमुहूर्त्ता रात्रिः दिन होता है, उस समय जम्बूद्वीप द्वीप में मेरु पर्वत के मुहुत्ता राई भवइ? भवति।
पूर्व और पश्चिम भाग में अठारह मुहूर्त की उत्कृष्ट
रात्रि होती है? हंता गोयमा! एवं चेव उच्चारेयव्वं जाव राई हंत गौतम! एवं चैव उच्चारयितव्यं यावद् हां, गौतम ! इस प्रकार पूर्ण पाठ वक्तव्य है यावत् भवइ ॥ रात्रिर्भवति।
अठारह मुहूर्त की उत्कृष्ट रात्रि होती है।
१२.जया णं भंते ! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स यदा भदन्त ! जम्बूद्वीपे द्वीपे मंदरस्य पर्वतस्य १२. भंते ! जिस समय जम्बूद्वीप द्वीप में मेरु पर्वत के
पव्वयस्स पुरथिमे णं जहण्णए दुवालसमुहुत्ते पौरस्त्ये जघन्यकः द्वादशमुहूर्तः दिवस: पूर्व भाग में बारह मुहूर्त का जघन्य दिन होता है, उस दिवसे भवइ, तया णं पच्चत्थिमे णवि; जया भवति, तदा पश्चिमेऽपि? यदा पश्चिमे तदा समय पश्चिम भाग में भी बारह मुहूर्त का जघन्य दिन णं पच्चत्थिमे, तयाणं जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स जम्बूद्वीपे द्वीपे मंदरस्य पर्वतस्य उत्तर-दक्षिणे होता है? जिस समय पश्चिम भाग में बारह मुहूर्त का पव्वयस्स उत्तरदाहिणेण उक्कोसिया अट्ठार- उत्कर्षिका अष्टादशमुहर्ता रात्रिः भवति? जघन्य दिन होता है, उस समय जम्बूद्वीप द्वीप में मेरु समुहुत्ता राई भवई?
पर्वत के उत्तर और दक्षिण भाग में अठारह मुहूर्त की
उत्कृष्ट रात्रि होती है? हंता गोयमा! जाव राई भवइ । हंत गौतम ! यावद् रात्रि: भवति। हां, गौतम ! यावत् अठारह मुहूर्त की उत्कृष्ट रात्रि
होती है।
भाष्य
१. सूत्र ३-१२
जंबूद्वीप द्वीप में सूर्य क्रमश: उत्तर पूर्व को जाकर (उदित होकर) पूर्व-दक्षिण को आता है, याने अस्त होता है। पूर्व-दक्षिण से दक्षिण पश्चिम को अस्त होता है। दक्षिण-पश्चिम से पश्चिम-उत्तर को अस्त होता है। पश्चिम-उत्तर से उत्तरपूर्व को अस्त होता है।
दृश्यमान सूर्य जब अदृश्य होता है तब उसे व्यवहार में अस्त । कहते हैं। अदृश्य सूर्य जब दृश्य होता है तब उसे उदय कहते हैं।
जंबूद्वीप में दो सूर्य होते हैं। जब एक सूर्य मेरु पर्वत की उत्तर दिशा । में होता है तब दूसरा सूर्य मेरु पर्वत की दक्षिण दिशा में होता है। उस समय मेरु पर्वत की उत्तर दिशा और दक्षिण दिशा में दिन होता है। मेरु पर्वत की पूर्व
और पश्चिम दिशा में रात्रि होती है। जब मेरु की पूर्व और पश्चिम दिशा में दिन होता है तब उत्तर और दक्षिण दिशा में रात्रि होती है।
उत्कृष्ट दिन १८ मुहूर्त का होता है उस समय रात्रि १२ मुहूर्त की होती है। क्योंकि एक अहोरात्र में ३० मुहर्त्त होते हैं। जघन्य दिन १२ मुहूर्त का होता है, तब रात्रि उत्कृष्ट १८ मुहूर्त की होती है। सूर्य ६० मुहूर्त में मंडल को पूरा करता है। उत्कृष्ट दिन १८ मुहूर्त का होता है इसलिए १८ मुहूर्त ६० का - भाग होता है। १८ मुहूर्त के दिन के समय जम्बूद्वीप के भाग
को प्रत्येक सूर्य प्रकाशित करताहै। जंबूद्वीप की परिधि ३१६२२८ योजन की है। उसका भाग ३१६२२८४३ = ९४८६८ ४ योजन होता है। यह ताप क्षेत्र है।
मेरु पर्वत का परिक्षेप ३१६२३ योजन का है। ताप क्षेत्र में भाग होता है इसलिए ३१६२३ x 1 = ९४६४ २. योजन तापक्षेत्र होता है। जघन्य दिन १२ मुहूर्त का होता है, वह ६० मुहूर्त का भाग होता है -
। जम्बूद्वीप की परिधि ३१६२२८ योजन की है। जघन्य दिन में उसका भाग ३१६२२८ x 2 = ६३२४५६ योजन तापक्षेत्र होता है।
मेरु पर्वत का परिक्षेप ३१६२३ योजन का है। जघन्य दिन का तापक्षेत्र ३१६२३ x = ६३२४६ योजन होता है। लंबाई से जंबूद्वीप में तापक्षेत्र ४५ हजार योजन का है और लवण समुद्र में ३३३३३. योजन का है। दोनों का योग करने से ४५००० + ३३३३३ = ७८३३३. योजन का होता है।
जब दिन १८ मुहूर्त का उत्कृष्ट होता है, तब सूर्य सर्वाभ्यन्तर मंडल में रहता है। जब जघन्य दिन १२ मुहूर्त का होता है, तब वह सर्व बाह्य मंडल में होता है। सर्वाभ्यन्तर मंडल से सूर्य दक्षिण दिशा की ओर गति
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