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________________ भगवई हंता गोयमा ! जाव भवइ ।। ८. जया णं भंते ! जंबुद्दीवे दीवे दाहिणड्ढे अट्ठारसमुहुत्ताणंतरे दिवसे भवइ, तया णं उत्तरड्ढे वि अट्ठारसमुहुत्ताणंतरे दिवसे भवइ; जया णं उत्तरड् ढे अट्ठारसमुहुत्ताणंतरे दिवसे भवइ, तया णं जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पुरत्थिम-पच्चत्थिमे णं साइरेगा दुवालसमुहुत्ता राई भवइ ? ९. जया णं भंते ! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पुरत्थिमे णं अट्ठारसमुहुत्ताणंतरे दिवसे भवइ, तया णं पच्चत्थिमे वि अट्ठारसमुहुत्ताणंतरे दिवसे भवइ; जया णं पच्चत्थिमे अट्ठारसमुहुत्ताणंतरे दिवसे भवइ, तदा णं जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तर - दाहिणे णं साइरेगा दुवालसमुहुत्ता राई भवइ ? हंता गोयमा ! जया णं जंबुद्दीवे जाव राई हन्त गौतम ! यदा जम्बूद्वीपे यावद् रात्रिः भवइ || भवति। हंता गोयमा ! जाव भवइ ॥ १०. एवं एएणं कमेणं ओसारेयव्वं-सत्तरसमुहुत्ते दिवसे, तेरसमुहुत्ता राई । सत्तरसमुहुत्ताणंतरे दिवसे, साइरेगा तेरसमुहुत्ता राई । सोलसमुहुत्ते दिवसे चोदसमुहुत्ता राई । सोलसमुहुत्ताणंतरे दिवसे, साइरेगा चउसमुहुत्ता राई । परसमुहुत्ते दिवसे, पण्णरसमुहुत्ता राई । पण्णरसमुहुत्ताणंतरे दिवसे, साइरेगा पण्णरसमुहुत्ता राई । चोदसमुहुत्ते दिवसे, सोलसमुहुत्ता राई । चोद्दसमुहुत्ताणंतरे दिवसे, साइरेगा सोलसमुहुत्ता राई । तेरसमुहुत्ते दिवसे, सत्तरसमुहुत्ता राई । तेरस - मुहुत्ताणंतरे दिवसे, साइरेगा सत्तरसमुहुत्ता राई ॥ १२९ हन्त गौतम ! यावद् भवति। Jain Education International यदा भदन्त ! जम्बूद्वीपे द्वीपे दक्षिणार्धे अष्टादशमुहूर्त्तानन्तर: दिवसः भवति, तदा उत्तरार्धे अपि अष्टादशमुहूर्त्तानन्तरः दिवस: भवति ? यदा च उत्तरार्धे अष्टादशमुहूर्त्तानन्तर: दिवस: भवति, तदा जम्बूद्वीपे द्वीपे मन्दरस्य पर्वतस्य पौरस्त्य-पश्चिमे सातिरेका द्वादशमुहूर्त्ता रात्रिः भवति ? यदा भदन्त ! जम्बूद्वीपे द्वीपे मन्दरस्य पर्वतस्य पौरस्त्ये अष्टादशमुहूर्त्तानन्तरः दिवसः भवति, तदा पश्चिमेऽपि अष्टादशमुहूर्त्तानन्तरः दिवस: भवति ? यदा पश्चिमे अष्टादशमुहूर्त्तानन्तरः दिवसः भवति, तदा जम्बूद्वीपे द्वीपे मन्दरस्य पर्वतस्य उत्तर-दक्षिणे सातिरेका द्वादशमुहूर्त्ता रात्रिः भवति ? हन्त गौतम ! यावद् भवति। एवमनेन क्रमेण अवसारयितव्यम् - सप्तदशमुहूर्त्तः दिवस:, त्रयोदशमुहूर्त्ता रात्रिः । सप्तदशमुहूर्त्तानन्तरः दिवसः, सातिरेका त्रयोदशमुहूर्त्ता रात्रिः । षोडशमुहूर्त्तः दिवसः, चतुर्दशमुहूर्त्ता रात्रिः । षोडशमुहूर्त्तानन्तर: दिवसः, सातिरेका चतुर्दशमुहूर्त्ता रात्रिः। पञ्चदशमुहूर्त: दिवसः, पञ्चदशमुहूर्त्ता रात्रिः । पञ्चदशमुहूर्त्तानन्तरः दिवसः, सातिरेका पञ्चदशमुहूर्त्ता रात्रिः। चतुर्दशमुहूर्त्तः दिवसः, षोडशमुहूर्त्ता रात्रिः । चतुर्दशमुहूर्त्तानन्तरः दिवसः, सातिरेका षोडशमुहूर्त्ता रात्रिः । त्रयोदशमुहूर्त : दिवसः, सप्तदशमुहूर्त्ता रात्रिः । त्रयोदशमुहूर्त्तानन्तरः दिवसः, सातिरेका सप्तदशमुहूर्त्ता रात्रिः। For Private & Personal Use Only श. ५: उ. १ : सू. ७-१० हां, गौतम ! यह सब ऐसा ही है। ८. भंते! जिस समय जम्बूद्वीप द्वीप में मेरुपर्वत के दक्षिणार्द्ध भाग में अठारह मुहूर्त्त से कुछ कम परिमाण वाला दिन होता है, उस समय उत्तरार्द्ध भाग में भी अठारह मुहूर्त से कुछ कम परिमाण वाला दिन होता है ? जिस समय उत्तरार्द्ध भाग में अठारह मुहूर्त्त से कुछ कम परिमाण वाला दिन होता है, उस समय जम्बूद्वीप द्वीप में मेरुपर्वत के पूर्व-पश्चिम भाग में बारह मुहूर्त्त से कुछ अधिक परिमाण वाली रात्रि होती है? हां, गौतम ! जिस समय जम्बूद्वीप द्वीप में यावत् बारह मुहूर्त से कुछ अधिक परिमाण वाली रात्रि होती है। ९. भंते! जिस समय जम्बूद्वीप द्वीप में मेरुपर्वत के पूर्व भाग में अठारह मुहूर्त से कुछ कम परिमाण वाला दिन होता है, उस समय पश्चिम भाग में भी अठारह मुहूर्त से कुछ कम परिमाण वाला दिन होता है ? जिस समय पश्चिम भाग में अठारह मुहूर्त्त से कुछ कम परिमाण वाला दिन होता है, उस समय पश्चिम भाग अठारह मुहूर्त्त से कुछ कम परिमाण वाला दिन होता है, उस समय जम्बूद्वीप में मेरुपर्वत के उत्तर और दक्षिण भाग में बारह मुहूर्त से कुछ अधिक परिमाण वाली रात्रि होती है? हां, गौतम ! यह सब ऐसा ही है। १०. इस प्रकार इसी क्रम से अवतरित करना चाहिए सतरह मुहूर्त्त का दिन और तेरह मुहूर्त्त की रात्रि। सतरह मुहूर्त से कुछ कम परिमाण वाला दिन और तेरह मुहूर्त से कुछ अधिक परिमाण वाली रात्रि । सोलह मुहूर्त का दिन और चौदह मुहूर्त्त की रात्रि । सोलह मुहूर्त्त से कुछ कम परिमाण वाला दिन और चौदह मुहूर्त से कुछ अधिक परिमाण वाली रात्रि । पन्द्रह मुहूर्त का दिन और पन्द्रह मुहूर्त्त की रात्रि । पन्द्रह मुहूर्त्त से कुछ कम परिणाम वाला दिन और पन्द्रह मुहूर्त से कुछ अधिक परिमाण वाली रात्रि । चौदह मुहूर्त का दिन और सोलह मुहूर्त की रात्रि । चौदह मुहूर्त से कुछ कम परिमाण वाला दिन और सोलह मुहूर्त से कुछ अधिक परिमाण वाली रात्रि | तेरह मुहूर्त का दिन और सतरह मुहूर्त की रात्रि । तेरह मुहूर्त से कुछ कम परिमाण वाला दिन और सतरह मुहूर्त से कुछ अधिक परिमाण वाली रात्रि। www.jainelibrary.org
SR No.003594
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02 Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2000
Total Pages596
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size20 MB
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